प्रक्रिया में पाठ्यक्रम की आवश्यकता एवं महत्त्व की विवेचना कीजिए । BEd 2nd year



पाठ्यक्रम विकास एवं आकलन Bed 2year पेपर 2 के लिए 

प्रश्न 2 . शैक्षिक प्रक्रिया में पाठ्यक्रम की आवश्यकता एवं महत्त्व की विवेचना कीजिए ।

 उत्तर - प्रत्येक विद्यालय में शिक्षा विद्यालय में शिक्षा के निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये कुछ विशेष साधनों का रो । पाठयक्रम भी एक ऐसा ही साधन है जिसकी सहायता से प्रत्येक विद्यार्थी को के मदपयोग एवम ज्ञानार्जन की दिशा में सजग रखा जा सकता है । इसके साथ ही साथ को भी उनके कर्तव्यों की पूर्ति हेतु सही दिशा मिलती रहती है । इस प्रकार शिक्षा की प्रक्रिया में पाठ्यक्रम का विशेष महत्त्व है । पाठ्यक्रम ही सपा क्रिया का आधार होता है । पाठ्यक्रम के अभाव में शिक्षण कार्य न तो सफलतापर्वक समान है , न ही अपने उद्देश्यों को प्राप्त कर सकता है । दूसरे शब्दों में , हम कह सकते हैं कि मि में पाठ्यक्रम केन्द्र - बिन्दु का कार्य करता है , जिसके चारों ओर शिक्षक एवम् शिक्षार्थीगण अपने की पर्ति व उद्देश्यों की प्राप्ति के लिये प्रयत्नशील रहते हैं । पाठ्यक्रम के द्वारा ही विद्यालय का कार्य संगठित व संतुलित रूप से चल सकता है । पाठ्यक्रम का महत्त्व उसके द्वारा संपादित किये जाने वाले कार्यों के रूप में समझा जा सकता है । संक्षेप में पाठ्यक्रम की आवश्यकता , महत्त्व एवं कार्य इस प्रकार है।
( 1 ) शैक्षिक उद्देश्यों की प्राप्ति में सहायक - प्रत्येक अवधारणा का निर्माण कुछ निश्चित उद्देश्यों की पूर्ति के लिये किया जाता है । उद्देश्यों के अभाव में कोई भी प्रक्रिया सही मार्ग पर नहीं चल सकती है । शिक्षण प्रक्रिया के संबंध में भी यह बात सत्य सिद्ध होती है । बिना उद्देश्यों के चलने वाली शिक्षण प्रक्रिया ठीक उसी प्रकार होती है , जैसे - पतवार के बिना नाव । इन उद्देश्यों को प्राप्त करने में पाठ्यक्रम ही सहायता करता है । यह एक ऐसा साधन है जिसके माध्यम से हम शैक्षिक उद्देश्यों की प्राप्ति के लिये प्रयत्नशील रहते हैं तथा उपयुक्त पाठ्यक्रम के अभाव में हम शिक्षा के उद्देश्य प्राप्त करने के बारे में कल्पना भी नहीं कर सकते हैं ।

( 2 ) शिक्षण सामग्री के निर्धारण में सहायक - प्रत्येक विद्यालय में शिक्षा व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने के लिये समय - सारणी का निर्माण किया जाता है । जिसके अन्तर्गत प्रत्येक विषय के लिये निश्चित समय का आवंटन किया जाता है । इस प्रकार प्रत्येक विषय एवं विषय - वस्तु का शिक्षा प्रक्रिया में विशेष महत्व है । जब तक शिक्षक व शिक्षार्थी विषय वस्तु या अध्ययन वस्तु से अनभिज्ञ रहते हैं तथा इस बात का उन्हें ज्ञान नहीं होता कि उन्हें क्या पढ़ना है , तब तक वे अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने की दिशा भी प्राप्त नहीं कर सकते । इस प्रकार पाठ्यक्रम ही शिक्षण - सामग्री के निर्धारण में सहायक होता है ।

( 3 ) शिक्षण - विधियों के निर्धारण में सहायक - सफल शिक्षण के लिये यह आवश्यक है कि अध्यापक को उचित शिक्षण - विधियों का ज्ञान हो । यह ज्ञान अध्यापक को पाठयक्रम ही प्रदान करता है । पाठ्यक्रम ही विभिन्न कक्षाओं के लिये विभिन्न प्रकार की शिक्षण सामग्रियों का निर्धारण करता है तथा उन विभिन्न प्रकार की शिक्षण सामग्रियों के लिये विभिन्न प्रकार की शिक्षण - विधियों का निरूपण करता है । प्रत्येक विषय को पढ़ाने के लिये अलग - अलग प्रकार की शिक्षण - विधियों का प्रयोग किया जाता है । पाठ्यक्रम के अभाव में शिक्षक को इस बात का ज्ञान नहीं हो सकता है कि किस कक्षा में किस प्रकार की विषय - वस्तु को किस विधि से पढ़ाना है । इस प्रकार पाठ्यक्रम शिक्षण - विधियों के निर्धारण में सहायक होता है ।

( 4 ) विषय - सामग्री के विभाजन में सहायक - पाठ्यक्रम ही विषय - सामग्री का निर्धारण करता है तथा साथ ही साथ इस बात का भी निर्धारण करता है कि वह विषय - वस्तु विभिन्न स्तरों के अनुरूप किस प्रकार की हो । पाठ्यक्रम छोटी कक्षाओं के लिये सरल व रोचक विषय - वस्तु का सझाव देता है । माध्यमिक कक्षाओं के लिये तर्कपूर्ण व ज्ञानवर्द्धक अध्ययन वस्तु का निर्देशन करता है तथा उच्च कक्षाओं के लिये गहन व चिन्तनशील तथा प्रयोगात्मक अध्ययनक्रम की रूपरेखा रखता है । विभिन्न स्तरों के अनुरूप विषयवस्तु का विभाजन वैज्ञानिक एवम् उचित ढंग से करने में पाठयक्रम ही सहायता । करता है । पाठ्यक्रम के अभाव में ऐसा तर्कसम्मत विभाजन होना संभव नहीं है ।

( 5 ) चरित्र - निर्माण में सहायक - जसा कि हमें ज्ञात है कि पाठ्यक्रम एक व्यापक व वृहद् । अवधारणा है । इसके अन्तर्गत केवल पाठ्यविषय ही नहीं बल्कि विभिन्न पाठ्य सहायक गतिविधियाँ व पाठयेत्तर क्रिया - कलाप भी सम्मिलित होते हैं । इसके अन्तर्गत अनेक खेलों का आयोजन , एन . सी . सी . स्काउटिंग का निर्धारण तथा विभिन्न पौं व विशेष महत्त्व के दिवसों का आयोजन किया जाता है जिसका उद्देश्य बालक पाठ्यक्रम चरित उत्तम गुणों का विका के प्रमुख उद्देश्यों में से एक व्यक्तित्व के विभिन्न पहल व्यावसायिक तथा सांस्कतिक करता है । उचित विषयों पाठ्य सहायक गतिविधियों द्वारा विषयों के ज्ञान एवं सही दिशा पपर - पाठ्यक्रम विकास एण देण्य बालकों का चरित्र - निर्माण एवं उचित नागरिकता का विकास करना है । इस प्रकार उचित चरित्र विकास में सहायक होता है । दूसरे शब्दों में , चरित्र - निर्माण व नागरिकता के लिए गों का विकास पाठ्यक्रम के द्वारा ही संभव है ।

( 6 ) यक्तित्व के विकास में सहायक - बालक के व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास करना शिक्षा देखयों में से एक है । इस उद्देश्य को प्राप्त करने में पाठ्यक्रम अपना पूर्ण योगदान करता है । विभिन्न पहलू होते हैं , यथा - शारीरिक , मानसिक , सामाजिक , बौद्धिक , नैतिक , आध्यात्मिक , तथा सांस्कृतिक आदि । पाठ्यक्रम विभिन्न खेलकूद की प्रवृत्तियों द्वारा शारीरिक विकास नित विषयों के अध्यापन - निरूपण द्वारा मानसिक व बौद्धिक विकास करता है । विभिन्न गतिविधियों द्वारा नैतिक , आध्यात्मिक व सांस्कृतिक विकास करता है तथा आवश्यक नान एवं सही दिशा - निर्देशन के द्वारा व्यावसायिक विकास करता है । इस प्रकार पाठ्यक्रम के व्यक्तित्व के विकास में सहायता करता है ।



( 7 ) अनसंधान एवं आविष्कार में सहायक - जैसा कि हमें पूर्वविदित है , पाठ्यक्रम केवल तक ही सीमित न होकर एक व्यापक अवधारणा है । वर्तमान पाठ्यक्रम में बालक को का भावी जीवन की तैयारी के उद्देश्य से , सभी आवश्यक कार्यक्रमों को संगठित किया जात . जीवन के सभी पक्षों को प्रभावित करके , उनके संतुलित विकास में सहायता करता है । पाठयक्रम अनभवों , क्रियाओं तथा जीवन की उन परिस्थितियों का योग है , जिनके माध्यम से बालक ज्ञान अर्जित करता है । पाठ्यक्रम उच्च स्तर पर छात्रों का अनुसंधान एवं नित्य नवीन खोज करने के लिये विषय - वस्त . क्षमता एवं पूर्ण सहयोग प्रदान करता है ।

( 8 ) दर्शन और शिक्षा की प्रवृत्तियों को दर्शाने में सहायक – भारत देश में अनेकों दर्शन की धारायें प्रचलन में रही हैं । अनेकों दार्शनिक शिक्षक भी रहे हैं । यथा - महात्मा गांधी , अरबिन्दो , रवीन्द्र नाथ टैगोर आदि । इन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में अपने महत्त्वपूर्ण दार्शनिक विचार रखे । इन्होंने अपने विचारों द्वारा बालकों के लिये पाठ्यक्रम की अवधारणा का निरूपण किया , जिसमें इनके दार्शनिक विचारों की झलक प्राप्त होती है । इसी प्रकार वैदिक काल से लेकर वर्तमान कल तक , गुलामी के समय तथा स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद शिक्षा व्यवस्था विभिन्न परिवर्तनों से गुजरी है , उन सब की भी झलक हमें पाठ्यक्रम द्वारा प्राप्त होती है । इस प्रकार पाठ्यक्रम शिक्षा की विभिन्न प्रवृत्तियों तथा विभिन्न दर्शनों के परिवर्तनों को दर्शाता है ।

( 9 ) तत्कालीन घटनाओं के ज्ञान में सहायक - वर्तमान युग में औद्योगीकरण का युग है । विज्ञान व तकनीकी अपने चरम पर है । देशों के मध्य की दरियाँ घट रही हैं व उनके मध्य अनेकों ' सम्बन्ध व समझौते हो रहे हैं । विकसित व विकासशील दोनों ही प्रकार के देश अपने आप को सक्षम नान म जुट हए है । ऐसे में आज के यवक - यवतियों के लिये यह अत्यंत आवश्यक हो गया है कि उन्ह मान युग का तत्कालीन घटनाओं का पर्ण व सटीक ज्ञान हो । इन उद्देश्यों की प्राप्ति वर्तमान वक्रम कद्वारा की जा सकती है । अपने सामाजिक व भौतिक वातावरण की समझ प्रदान करने के का विषया व पाठयेत्तर क्रियाओं का सहारा लिया जाता है . देश - विदेश की विभिन्न घटनाओं गत कराया जाता है , तथा पाठयक्रम के दारा उन्हें प्रत्येक भौतिक व सामाजिक परिस्थितियों स कराया जाता है , ताकि बालक अपने आप को तेजी से बदलते हए भौतिक परिवेश में ढाल सक , या भावा जीवन के लिये तैयार होकर अपने देश व समाज को सक्षम बन सका । विवचन स यह स्पष्ट हो जाता है कि पाठयक्रम अनेकों महत्त्वपूर्ण कार्य सम्पादित करता सम्पूर्ण शिक्षा - प्रक्रिया में अपना एक विशिष्ट महत्व है । उपरोक्त कायों को करन के मागता स्पष्ट हो जाती है । पाठयक्रम के द्वारा ही शिक्षण - अधिगम की प्रक्रिया सुचारू चलता रहती है । इसके अभाव में ऐसा होना संभव नहीं हैं । परिचित कराया जाता है , ताकि है । पाठ्यक्रम का सम्पूर्ण शिक्षा - प्रत्रि कारण इसकी उपयोगिता स्पष्ट हो जाती है रूप से चलती रहती है । इसके अभाव में ऐसा होना संभव नही है ।

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