शैक्षिक तकनीकी एवं प्रवन्ध BEd 2nd year

शैक्षिक तकनीकी एवं प्रवंधन BEd 2nd Year  की परीक्षा के लिए ।


शिक्षा के तकनीकी आधार 
[ TECHNOLOGICAL FOUNDATION OF EDUCATION ) 



भूमिका ( Introduction ) 
आज का युग विज्ञान का युग है । विज्ञान विषय के महत्व से आजकल सभी भली - भाँति परिचित हैं । शिक्षा शब्द का प्रयोग भी हम दिन प्रति - दिन की भाषा में करते हैं । आजकल शिक्षा को एक स्वतन्त्र विषय के रूप में माना जाने लगा है । कुछ दिनों से शिक्षा के अन्तर्गत भी शैक्षिक तकनीकी नामक शब्द का प्रयोग भी किया जाने लगा है । विज्ञान व तकनीकी के समुचित प्रयोग द्वारा आज कृषि , उद्योग , स्वास्थ्य आदि अन्य क्षेत्रों में अत्यधिक प्रगति हो रही है । विद्वानों का मत है कि यदि विज्ञान तथा तकनीकी का शिक्षा के क्षेत्र में उचित प्रयोग किया जाए तो शिक्षण , अधिगम तथा परीक्षण के क्षेत्र में भी आश्चर्यजनक परिणाम प्राप्त किए जा सकते हैं । इसलिए आवश्यक यह है कि शैक्षिक तकनीकी को समझने से पहले शिक्षा ( Education ) , विज्ञान ( Science ) तथा तकनीकी ( Technology ) शब्दों का अर्थ समझ लिया जाए । 

शिक्षा का अर्थ ( Meaning of Education ) 
शिक्षा शब्द ' शिव ' धातु से निकलता है । शाब्दिक अर्थों में ' शिक्ष ' का अर्थ है विद्या प्राप्त करना या ज्ञान प्राप्त करना । इस प्रकार शिक्षा ज्ञान प्राप्त करने की एक प्रक्रिया हुई । शिक्षा अथवा ( Education ) शब्द की व्युत्पत्ति लैटिन ( Latin ) भाषा के एड्केटम ( Educatum ) शब्द से हुई है । 
लैटिन भाषा में एड्केटम ( Educatum ) का अर्थ है शिक्षित करना । ' E ' का अर्थ है ' अन्त में ' और ' Catum ' का अर्थ है ' आगे बढ़ाना , या अग्रसर करना । इस प्रकार शाब्दिक अर्थों में शिक्षा का अर्थ ' बालक की आन्तरिक शक्तियों ' , प्रतिभाओं और क्षमताओं को बाहर की ओर अग्रसर कर विकसित करना है ।

 शिक्षा का व्यापक अर्थ ( Wider Meaning of Education ) .
 व्यापक अर्थ में शिक्षा जीवन भर चलने वाली प्रक्रिया है । यह व्यक्ति के जन्म से प्रारम्भ होकर मृत्यु तक चलती रहती है । वास्तव में देखा जाए तो समस्त विश्व ही व्यापक शिक्षा का क्षेत्र है ।

 जे . एस . मैकेन्जी ( U . S . Mackenzie ) के अनुसार - " व्यापक अर्थ में शिक्षा जीवन पर्यन्त चलने वाली प्रक्रिया है और जीवन के प्रत्येक अनुभव के द्वारा इसका विकास होता है । " " 
In wider sense it is a process that goes on through out life and that is promoted by almost every experience in life . " - J . S . Mackenzie .

शिक्षा का संकुचित अर्थ ( Narrower Meaning of Education ) 
संकुचित अर्थ में विद्यालय शिक्षा को ही शिक्षा की संज्ञा दी जाती है । संकुचित अर्थ के अनुसार वयस्क वर्ग विद्यार्थी को कुछ निश्चित ज्ञान का एक निश्चित पूर्व योजना के अनुसार किसी निश्चित विधि से निश्चित समय के अन्दर देने का प्रयास करता है । 
जे . एस , मैकेन्जी के अनुसार - " संकुचित अर्थ में शिक्षा का अर्थ बालक की शक्तियों के विकास और सुधार के लिए चेतनापूर्वक किए गए प्रयासों से लिया जाता है । " 
" In narrower sense , it may be taken to mean by consciously directed offorts to deviop and cultivate our powers . " - J.S . Mackenzic
 वास्तविक अर्थ में शिक्षा संकुचित तथा व्यापक दोनों अंगों में प्रगतिशील समन्वय है । कारण यह है कि संकुचित अर्थ में शिक्षा परिवर्तन विरोधी ( Conservative ) तथा सीमित हो जाती है । इस प्रकार शिक्षा द्वारा छात्र की रुचि , क्षमता , आवश्यकता आदि । की तरफ कोई ध्यान नहीं दिया जाता है । व्यापक अर्थ में शिक्षा अधिक उदार ( Liberally हो जाती है । इससे छात्र का सामाजिक तथा आध्यात्मिक विकास पूर्ण रूप से नहीं हो पाता है । अत : शिक्षा के संकुचित तथा व्यापक अर्थों का समन्वय आवश्यक है । इस समन्वय से शिक्षा एक ऐसी प्रगतिशील प्रक्रिया हो जाती है जो छात्र की व्यक्तिगत रुचि , क्षमता , योग्यता तथा आवश्यकता का ध्यान रखते हुए उसे आवश्यकतानुसार स्वतन्त्रता प्रदान कर उसका बौद्धिक , सामाजिक , सांस्कृतिक तथा आध्यात्मिक विकास करती । है तथा उसके व्यवहार में इस प्रकार परिवर्तन करती है कि व्यक्ति और समाज दोनों की उन्नति होती रहती है । प्रसिद्ध शिक्षाशास्त्री टी . रेमान्ट का विचार है कि - " शिक्षा उस विकास का नाम है जो शैशव अवस्था से प्रौढ़ अवस्था तक होता ही रहता है . अर्थात् शिक्षा विकास का वह क्रम है जिससे मानव अपने को आवश्यकतानुसार भौतिक । सामाजिक तथा आध्यात्मिक वातावरण के अनुकूल बना लेता है । " 
Education is the process of development in which consists the passag | fhuman being from infancy to naturity , the process whereby he adape | himselj gradually in various ways to his playsical , social and spiritual environment . " - T . Raymont 

विज्ञान का अर्थ ( Meaning of Science ) - विज्ञान हमारे सम्मुख ज्ञान को क्रमबद्ध तथा सुनियोजित एवं व्यवस्थित रूप में प्रस्तुत करके कारण ( Cause ) तथा प्रभाव ( Effect ) में सम्बन्ध स्थापित करता है । इससे हमारे अन्दर वैज्ञानिक दृष्टिकोण ( Scientific Attitude ) विकसित होता है । वास्तव में जैसे - जैसे व्यक्ति में वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित होता जाता है उसके सभी निर्णयों तथा निष्कर्षों में वस्तुनिष्ठता ( Objectivity ) आती जाती है । क्रम - बद्ध विचारों को बढ़ावा मिलता है तथा पूर्वाग्रहीं । ( Prejudices ) तथा धारणाओं से मुक्ति मिलती है । इस प्रकार हम कह सकते हैं कि

" विज्ञान किसी वस्तु का वह क्रम - बद्ध ज्ञान है जो मानवीय परीक्षण तथा अनुभव से प्राप्त होता है । "
 " Science is the systematised knowledge of substance gained by human observation and exprerience . 

" तकनीकी क्या है ? ( What is Technology ) 
विज्ञान के सृजन तथा निर्माण को जितना बढ़ावा दिया है वह सब तकनीकी के माध्यम से ही हुआ है । अमेरिका , रूस , जापान आदि देशों में विकास विज्ञान तथा तकनीकी के बल पर ही हुआ है । सामान्य भाषा में तकनीकी का तात्पर्य शिल्प अथवा कला विज्ञान से है । तकनीकी विज्ञान का कला में प्रयोग है , इसका सम्बन्ध कौशल ( Skill ) तथा दक्षता ( Expertise ) से है । वास्तव में यह एक प्रकार का परिवर्तन है जो सुजन , निर्माण तथा उत्पादन में सहायक है । दूसरे शब्दों में वैज्ञानिक ज्ञान के व्यवहार रूप में प्रयोग को तकनीकी कहते हैं । जैकेटा ब्लूमर के शब्दो में - " तकनीकी वैज्ञानिक सिद्धान्त का प्रयोगात्मक लक्ष्यों में प्रयोग मात्र है । " 
" Technology is the application of scientific theory to practical ends . " - Jacuqetta Bloomer 

ओफीश ( Ofiesh ) महोदय के अनुसार - " तकनीकी , विज्ञान का कला में प्रयोग हैं । " दूसरे शब्दों में जब वैज्ञानिक ज्ञान को व्यावहारिक कार्यों में प्रयोग किया जाता है , तो उसे तकनीकी कहते हैं । साधारणत : व्यक्ति ' तकनीकी ' शब्द की मशीन अथवा ' मशीन सम्बन्धी प्रत्ययों ' से जोड़ते हैं । किन्तु यह आवश्यक नहीं कि तकनीकी में मशीन का हमेशा प्रयोग किया हो जाए । इसका तात्पर्य तो किसी भी ऐसे प्रयोगात्मक कार्य से है , जिसमें वैज्ञानिक ज्ञान या सिद्धान्तों का प्रयोग किया जाए । 

डॉ . दास के अनुसार - " किसी भी वांछित उद्देश्य की प्राप्ति के लिए अन्तर सम्बद्ध अवयवों को वैज्ञानिक ढंग से सुसंगठित करने की प्रणाली को तकनीकी कहा जा सकता है । 
" Arry system of interrelated parts which are organized in a scientific manner as to attain some desired objective could be called ' Technology ' . 
" वास्तव में देखा जाए तो विज्ञान सिद्धान्तों पर बल देता है जबकि तकनीकी सिद्धान्तों के प्रयोगात्मक पक्ष पर विशेष बल प्रदान करती है । विज्ञान हमें यह बताता है कि किसी वस्तु अथवा सिद्धान्त को जानना ( Know - why ) चाहिए ? जबकि तकनीकी इस तथ्य पर बल देती है कि उस वस्तु अथवा सिद्धान्त को कैसे जाना ( Know - how ) जाए ? 
तकनीकी की प्रमुख विशेषताएँ ( Chief Characteristics of Technology ) तकनीकी की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं 
( 1 ) तकनीकी का आधार विज्ञान है । 
( 2 ) तकनीकी के द्वारा सृजन , उत्पत्ति तथा उत्पादन सम्भव है ।
 ( 3 ) समाज का विकास , उन्नति तथा प्रगति तकनीकी पर आधारित है । 
( 4 ) तकनीकी का सम्बन्ध कौशल तथा दक्षता से है । 
( 5 ) तकनीकी द्वारा मानव की बहुत - सी समस्याओं को सुलझाया जा सकता है तथा उसके सुख तथा समृद्धि में वृद्धि की जा सकती है । 
( 6 ) तकनीकी के द्वारा प्रभावशाली शिक्षण विधियों , प्रविधियों , युक्तियों एवं दृश्य - श्रव्य सामग्री का निर्माण सम्भव हुआ है । 
( 7 ) तकनीकी शिक्षा प्रक्रिया को सरल स्पष्ट तथा प्रभावशाली बनाती है । 
( 8 ) इसके माध्यम से कक्षा शिक्षण को अधिक वस्तुनिष्ठ तथा प्रभावपूर्ण बनाया जा सकता है । 
( 9 ) तकनीकी के प्रयोग से शिक्षण के नए प्रतिमान ( Models ) तथा सिद्धान्तों का प्रतिपादन सम्भव हो सका है । 

विज्ञान तथा तकनीकी का परस्पर सम्बन्ध ( Relationship between Science and Technology ) - विज्ञान तथा तकनीकी में घनिष्ठ सम्बन्ध है । इन दोनों में अन्तर होते हुए भी परस्पर एक - दूसरे से सम्बन्धित है तथा एक दूसरे के लिए आधार प्रदान करते हैं । विज्ञान केवल सिद्धान्त है और तकनीकी उन सिद्धान्तों का प्रयोगात्मक व व्यावहारिक पक्ष है अर्थात् तकनीकी का सम्बन्ध दक्षता से है । विज्ञान के साथ - साथ तकनीकी का ज्ञान भी आवश्यक है । वास्तव में विज्ञान का ज्ञान तभी सार्थक है जब वह प्रयोगात्मक तथा व्यावहारिक रूप लेकर तकनीकी में बदल जाए । तभी कोई देश अथवा राष्ट्र सुख समृद्ध तथा विकसित हो सकता है । जिन राष्ट्रों ने विज्ञान तथा तकनीकी पर बल दिया है । उन्होंने अत्यधिक प्रगति की है । जैसे - रूस , अमेरिका , जापान , फ्रान्स आदि । हमारे देश में विज्ञान के नियम तथा सिद्धान्त तो छात्रों को बताए तथा रटाए जाते हैं , लेकिन उन्हें उन नियम तथा सिद्धान्तों के व्यावहारिक ज्ञान से अलग रखा जाता । है । भौतिक तथा रसायन शास्त्र का ज्ञान प्राप्त करने के पश्चात् हमारे छात्र दैनिक जीवन में काम आने वाले उपकरणों जैसे - रेडियो , ट्रान्जिस्टर , घड़ी , मशीन तथा अन्य पुर्जी की खराबी को ठीक नहीं कर सकता है । इसका कारण तकनीकी के ज्ञान का अभाव है । इसके विपरीत एक अनपढ़ मिस्त्री तकनीकी के ज्ञान की जानकारी के कारण इन उपकरणों की खराबी को ठीक कर देता है । अत : यह आवश्यक है कि हम अपने छात्रों को विज्ञान के ज्ञान के साथ - साथ तकनीकी का ज्ञान भी अवश्य कराएँ तथी उनकी समाज व राष्ट्र की उन्नति हो सकती है । 
शिक्षा एवं तकनीकी भी परस्पर घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित है । शिक्षा बालक की मूल प्रवृत्तियों में शोधन और परिमार्जन कर उसके व्यवहार में वांछित परिवर्तन लाती है । मूल प्रवृत्तियों के परिमार्जन में मनोविज्ञान , तकनीकी तथा विज्ञान अपना प्रभावपूर्ण योगदान शिक्षा के क्षेत्र में प्रदान करते हैं । इस प्रकार शिक्षा स्वयं एक स्वतन्त्र या में इसमें आत्म निर्भर प्रत्यय न होकर तकनीकी विज्ञान से सम्बन्धित है । तकनीकी विज्ञान बालकों । के व्यवहार के अध्ययन में शिक्षा की सहायता करता है , साथ ही उसमें शोधन अथवा परिमार्जन के लिए दशा निर्देश भी प्रदान करता है ।

 शैक्षिक तकनीकी शिक्षा - दर्शन , शिक्षा मनोविज्ञान , शिक्षा - समाजशास्त्र की भाँति शिक्षा जगत् में एक नवीन क्षेत्र है । विगत कुछ वर्षों में शिक्षा तथा प्रशिक्षण में तकनीकी का विकास हुआ है । इसमें सीखने के लक्ष्यों ( Learming objectives ) को प्राप्त करने के लिए अधिगम अथवा सीखने के स्रोतों ( Learning resources ) का नियोजन ( Planing ) तथा संगठन ( Organisation ) किया जाता है । 
शैक्षिक - तकनीकी के प्रयोग से शिक्षा क्षेत्र में महत्वपूर्ण विकास एवं प्रगति हो सकी है । 

शैक्षिक तकनीकी का अर्थ ( Meaning of Educational Technology ) 
शैक्षिक तकनीकी शिक्षा की वर्तमान प्रक्रिया को उन्नत करने का क्रमबद्ध प्रयत्न है । इसके द्वारा शिक्षा के उद्देश्य पाठयक्रम , विधि , सहायक सामग्री तथा मूल्यांकन आदि को विकसित एवं उन्नत किया जाता है । जे . के . गालबेथ ( J . K . Galbraith ) ने प्रत्येक तकनीकी को दो प्रमुख विशेषताएं बताई हैं 
( 1 ) वैज्ञानिक ज्ञान का व्यावहारिक कार्यों में क्रमबद्ध प्रयोग । 
( 2 ) व्यवहार के कार्यों का खण्ड - उपखण्ड में विभाजन करना । शिक्षा के क्षेत्र में जो भी विषय इन मापदण्डों की विशेषताओं को पूरा करता है उसे शैक्षिक तकनीकी कहते हैं । शैक्षिक तकनीकी शिक्षा के उद्देश्यों को निर्धारित नहीं करती है । यह कार्य सामाजिक , राजनैतिक कार्यकर्ता तथा विचारों का है । शैक्षिक तकनीकी शिक्षण के उद्देश्यों को व्यावहारिक रूप ( Behavioural terms ) में अवश्य परिभाषित करती है । वास्तव में देखा जाए तो शिक्षण के उद्देश्य निर्धारित हो जाने के पश्चात् शैक्षिक तकनीकी अस्तित्व में आती है । शैक्षिक तकनीकी एक ऐसा विज्ञान है जिसके आधार पर शिक्षण के निर्धारित उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए विभिन्न विधियों ( Methods ) तथा प्रविधियों ( Techniques ) का निर्माण एवं विकास किया जाता है । यदि उद्देश्यों की प्राप्ति नहीं होती है तो शिक्षण की नीतियों तथा प्रविधियों में सुधार किया जाता है ताकि शिक्षण के उद्देश्य प्राप्त हो सके । शैक्षिक तकनीकी में तीन प्रक्रियाएँ निहित होती हैं 

( 1 ) शिक्षण अधिगम प्रक्रिया का कार्यात्मक विश्लेषण ( Functional Analysis ) इसमें शिक्षक उन समस्त तत्वों ( Components ) को देखता है जिन्हें अदा ( Input ) के द्वारा लगाया जाता है तथा जो प्रदा ( output ) के द्वारा प्रकाश में आते हैं । 
( 2 ) अदा ( Input ) तथा प्रदा ( output ) के बीच शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में प्रयोग किए जाने वाले तत्वों की प्रथक् अथवा संयुक्त खोज तथा विश्लेषण । 
( 3 ) प्राप्त किए गए सीखने के अनुभवों ( Learning Experiences ) को अनुसंधान के परिणामों के रूप में प्रस्तुत करना । 

शैक्षिक तकनीकी में शिक्षण उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए निम्न पदों ( Step ) का पालन करना पड़ता है । 
( 1 ) शिक्षण के उद्देश्य । 
( 2 ) पाठ्यवस्तु । 
( 3 ) शिक्षण सामग्री ।
( 4 ) शैक्षिक वातावरण । 
( 5 ) छात्रों का आचरण । 
( 6 ) शिक्षक का व्यवहार । 
( 7 ) शिक्षक और छात्रों के बीच होने वाली अन्त : - प्रक्रिया ( Interaction ) ! इस प्रकार शिक्षण तकनीकी शिक्षण तथा अधिगम के विभिन्न पदों का विश्लेषण तथा सुधार करती है , शैक्षिक कुशलता का विकास तथा विद्यालय के समस्त वातावरण में विकास एवं सुधार लाती है । 

शैक्षिक तकनीकी की परिभाषा ( Definition of Educational Technology ) 
शैक्षिक तकनीकी की कुछ महत्वपूर्ण परिभाषाएँ नीचे दी जा रही है 

( 1 ) गालबेथ ( J . K . Galbraith ) के अनुसार - " शैक्षिक तकनीकी से तात्पर्य वैज्ञानिक या अन्य संगठित ज्ञान के व्यवहार प्रयोग से है । इसमें व्यावहारिक कार्य का खण्ड - उपखण्ड में विभाजन किया जाता है । " 
" Ethicational Technology meerus the systematic application of scientific or other organised knowledge to practical task forming the division and sub - division of any such task into its component parts . " | 
( 2 ) जी , ओ , लेथ ( G . O . Leith ) के अनुसार - " शैक्षिक तकनीकी सीखने और सिखाने की दिशाओं में वैज्ञानिक ज्ञान का प्रयोग है जिसके द्वारा शिक्षण एवं प्रशिक्षण को प्रभावपूर्णता तथ दक्षता में सुधार लाया जाता है । "
 " Educational Technology is the application of scientific knowledge abour learning and the conditions of learning to improve the effectiveness and efficiency of teaching and training . "
( 3 ) रोबर्ट ए . कोक्स ( Robert A . Cox ) के अनुसार - " मानव के सीखने की परिस्थितियों में वैज्ञानिक प्रक्रिया के प्रयोग को शैक्षिक तकनीकी कहते हैं । "
 " Educational Technology is the application of scientific process to man ' s learning conditions . " - Robert A . Cox . 
( 4 ) जॉन पी . डेसिको ( John P . Dececeo ) के अनुसार - " शैक्षिक तकनीकी को प्रयोगात्मक और व्यावहारिक शिक्षण समस्याओं को समझने व सुलझाने हेतु सीखने के विज्ञान का विस्तृत प्रयोग माना है । " 
“ Educational Technology is a form of detailed application of the psychology of learning to practical teaching problems . " - John P . Dececco , 
( 5 ) तकाशी सकामाटो के अनुसार - “ शैक्षिक तकनीकी का प्रमुख उद्देश्य कुछ आवश्यक तत्वों जैसे शैक्षिक उद्देश्य , पाठ्यवस्तु , शिक्षण सामग्री , विधि , वातावरण , छात्रों व निर्देशकों के व्यवहार तथा उनके मध्य होने वाली अन्तः प्रक्रिया को नियन्त्रित करके अधिकतम शैक्षिक प्रभाव उत्पन्न करता है । " 
Educational Technology is an applied or practical study which aims ar maximising athicational effect by Controlling such relevant facts as acchicational purpases , ethicational environment , contact of students , behaviour ofinstructors and interrelations behuwen students and instructors . - Takashi Sakamato 

भारत में शैक्षिक तकनीकी के विकास के लिए राष्ट्रीय शैक्षिक तकनीकी परिषद INETC ) का गठन किया गया है । इसी के फलस्वरूप राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसन्धान एवं प्रशिक्षण परिषद् ( NCERT ) में शैक्षिक तकनीकी का एक अलग विभाग स्थापित किया गया है । शैक्षिक तकनीकी के विकास हेतु बड़ौदा , हिमाचल तथा मेरठ विश्वविद्यालयों में महत्वपूर्ण कार्य किया जा रहा है । 

( 6 ) एम , एस . कुलकर्णी ( S . S . Kulkarni ) के अनुसार - " तकनीकी तथा विज्ञान के आविष्कारों तथा नियमों का शिक्षा की प्रक्रिया में प्रयोग को शैक्षिक तकनीकी कहा जाता है । " 
" Educational Technology may be defined as thepplication of the laws as well as recent discoveries of science and lechnology to the process of onshucational . " - S . S . Kulkarni 

( 7 ) एस , के , मित्रा ( S . K . Mitra ) के अनुसार - " शैक्षिक तकनीकी को उन विधियों तथा प्रविधियों का ज्ञान माना जा सकता है जिसके द्वारा शैक्षिक उद्देश्यों को प्राप्त किया जा सके । " 
" Educational Technology can be conceived as a science of techniques and methods by which educational goals could be realized . " - S . K . Mitra .

 उपर्युक्त परिभाषाओं से यह स्पष्ट है कि शैक्षिक तकनीकी का क्षेत्र बहुत विस्तृत है । जिस प्रकार शिक्षा शब्द में शिक्षण , अधिगम , निर्देश , प्रशिक्षण आदि सम्मिलित हैं उसी प्रकार शैक्षिक तकनीकी में व्यापार तकनीकी निर्देशन तकनीकी , शिक्षण तकनीकी , प्रणाली पद्धति , दृश्य - श्रव्य तकनीकी , अभिक्रमित अध्ययन , शिक्षण मशीन , शिक्षण व अधिगम आदि सभी सम्मिलित हैं । उपर्युक्त परिभाषाओं से हम शैक्षिक तकनीकी को निम्न विशेषताओं की ओर संकेत कर सकते हैं 

शैक्षिक तकनीकी की प्रमुख विशेषताएँ ( Main Characteristics of Eductional Technology ) 
( 1 ) शैक्षिक तकनीकी का आधार विज्ञान है । 
( 2 ) शैक्षिक तकनीकी के अन्तर्गत विज्ञान तथा तकनीकी का प्रयोग किया जाता है । अत : यह विज्ञान का व्यावहारिक रूप है । 
( 3 ) वैज्ञानिक ज्ञान का शिक्षण तथा प्रशिक्षण में प्रयोग किया जाता है । 
( 4 ) शैक्षिक तकनीकी निरन्तर विकासशील , प्रगतिशील एवं प्रभावोत्पादक विधि है ।
( 5 ) शैक्षिक तकनीकी मनोविज्ञान , विज्ञान , कला , तकनीकी , दृश्य - श्रव्य सामग्री तथा मशीन आदि से बहुत सहायता लेती है । 
( 6 ) शैक्षिक तकनीकी के प्रयोग से शिक्षण विधि , नीतियों / उमेश्य , पाठ्यवस्तु तथा वातावरण द्वारा छात्र व अध्यापकों के व्यवहार में अपेक्षित परिवर्तन लाया जाता है । 
( 7 ) शैक्षिक तकनीकी द्वारा कक्षा शिक्षण को वैज्ञानिक , वस्तुनिष्ठ , सरल तथा प्रभावोत्पादक बनाया जा सकता है । 
( 8 ) शैक्षिक तकनीकी विद्यालय को एक प्रणाली अथवा क्रम के रूप में मानती है । विद्यालय का भवन , कक्ष , फर्नीचर , शिक्षक , लागत अथवा अदा ( Input ) का कार्य करते हैं । विधियाँ , प्रविधियाँ , युक्तियाँ , दृश्य - श्रव्य सामग्री का प्रयोग कक्षा शिक्षण , परीक्षा आदि प्रक्रिया ( Process ) उत्पादन अथवा प्रदा ( Output ) wों की योग्यता अथवा सीखने के अनुभव माने जाते हैं । 
( 9 ) शैधिक तकनीकी के द्वारा शिक्षा के क्षेत्र में अभिक्रमित अध्ययन ( Programmed Learning ) सूक्ष्म शिक्षण ( Micro Teaching ) , सौमुलेटेड शिक्षण ( Simulated Teaching ) , अन्तः प्रक्रिया विश्लेषण ( Interaction Analysis ) , श्रव्य - दृश्य सामग्री ( Audio - visual aids ) , वीडियोटेप ( Vidiotape ) , टेपरिकार्डर ( Tape Recorder ) , प्रोजेक्टर ( Projector ) तथा कम्प्यूटर ( Computor ) आदि नवीन अवधारणाओं ( Innovations ) का जन्म हुआ है । 
( 10 ) शैक्षिक तकनीकी शिक्षा सम्बन्धी मूल्यांकन तथा निर्देशन में वैज्ञानिक रूप से सुधार करती है । 
( II ) शैक्षिक तकनीकी मानव के विकास , प्रगति एवं उनकी सुविधाओं को बढ़ाने तथा जीवन की विभिन्न समस्याओं का समाधान करने में सहायता करती है । 
( 12 ) शैक्षिक तकनीकी शिक्षक का स्थान नहीं ले सकती क्योंकि अदा ( Input ) शिक्षक के द्वारा ही हो सकता है । साथ ही भावात्मक पक्ष का विकास भी शिक्षक छात्रों के मध्य अन्तः प्रक्रिया द्वारा ही सम्भव है । 

शैक्षिक तकनीकी का महत्व एवं उपयोगिता ( Importance and Utility of Educational Technology ) 
शैक्षिक तकनीकी के महत्व के कारण ही आज विश्व का प्रत्येक देश अपनी शैक्षिक व्यवस्था में इसे लागू कर रहा है । शैक्षिक तकनीकी के महत्व तथा उपयोगिता को निम्न रूप से प्रस्तुत किया जा सकता है 
( 1 ) शैक्षिक तकनीकी के माध्यम से जन साधारण के लिए शिक्षा , अनिवार्य , प्राथमिक शिक्षा , प्रौढ़ शिक्षा तथा अनवरत शिक्षा ( Continuous education ) आदि कार्यक्रमों का सफलतापूर्वक प्रसार तथा विकास किया जा सकता है । 
( 2 ) शिक्षा के संगठन , प्रशासन व प्रबन्ध की समस्याओं का वैज्ञानिक ढंग से अध्ययन तथा विकास किया जा सकता है । 
( 3 ) राष्ट्रीय स्तर पर शिक्षा के स्तर ( Standards of education ) को ऊँचा किया । जा सकता है ।
( 4 ) नवीन शिक्षण उपकरणों , विधियों तथा मशीनों के प्रयोग से शिक्षण को सार्थक व्यावहारिक तथा प्रभावोत्पादक बनाया जा सकता है । 
( 5 ) शैक्षिक तकनीकी के प्रयोग के द्वारा शिक्षण ( Teaching ) के स्वरूप को समझा जा सकता है । शिक्षण सिद्धान्तों का प्रतिपादन तथा शिक्षण के प्रतिमान ( Teaching Models ) विकसित किए जा सकते हैं तथा शिक्षण अधिगम को नया रूप प्रदान किया जाता है । 
( 6 ) शिक्षण व सीखने की प्रक्रिया को सरल , सार्थक तथा सुनिश्चित बनाया जा सकता है । 
( 7 ) शैक्षिक तकनीकी के द्वारा शिक्षक की कार्यकुशलता ( Efficiency ) में वृद्धि की जा सकती है । यह शिक्षक के कार्य में सहायक तथा पूरक है । 
( 8 ) शैक्षिक तकनीकी के प्रयोग से शिक्षक का कार्य सरल , स्पष्ट , प्रभावपूर्ण तथा रुचिपूर्ण बन जायेगा । 
( 9 ) शिक्षक का दृष्टिकोण वैज्ञानिक , मनोवैज्ञानिक तथा वस्तुनिष्ठ हो जायेगा । 
( 10 ) शैक्षिक तकनीकी की सहायता से शिक्षक एक प्रबन्धक के रूप में छात्रों के एक बड़े समूह को कम समय तथा खर्चे पर अच्छी शिक्षा प्रदान कर सकता है । 
( 11 ) शैक्षिक तकनीकी का प्रमुख आधार व्यवहार है इसलिए यह शिक्षक तथा छात्रों के व्यवहार में अपेक्षित परिवर्तन लाती है । 
( 12 ) छात्रों के सीखने की उपलब्धि ( Learning outcomes ) को बढ़ाया जा सकता है । 
( 13 ) अभिक्रमित अध्ययन ( Programmed Learning ) द्वारा व्यक्तिगत विभिन्नता की समस्या का समाधान तथा छात्रों में स्वतः अध्ययन की प्रवृत्ति का विकास किया जा सकता है । 
( 14 ) नवीन शिक्षण प्रतिमान , शिक्षण उपकरण एवं विधियों से शिक्षण को प्रभावशाली बनाया जा सकता है । 
( 15 ) रेडियो , टेलीविजन , कम्प्यूटर , प्रोजेक्टर आदि के प्रयोग से जनशिक्षा का प्रसार किया जा सकता है । 
( 16 ) सूक्ष्म - शिक्षण ( Micro - teaching ) सीमुलेटिड शिक्षण ( Simulated Teaching ) अनुकरणीय शिक्षण ( Role - playing ) आदि के माध्यम से प्रशिक्षण को प्रभावशाली बनाया जा सकता है । 
( 17 ) शैक्षिक तकनीकी के प्रयोग से शिक्षा में अनुसन्धान एवं शोध कार्य का सुधार हो सकेगा ।

 अतः यह कहा जा सकता है कि शैक्षिक तकनीकी आज के तकनीकी युग में शिक्षक की उपादेयता बढ़ाती है , छात्रों व छात्राध्यापकों को प्रभावशाली विधि से सिखाती है और समाज के लिए ज्ञान के संचयन , प्रचार , प्रसार तथा विकास के लिए अत्यन्त उपयोगी है । भारत सरीखे विकासशील देश में जनशिक्षा का प्रसार एवं प्रचार हेतु शैक्षिक तकनीकी अवश्य वरदान सिद्ध हो सकती है । 

विगत कुछ वर्षों में शिक्षा तथा प्रशिक्षण में तकनीकी का विकास हुआ है । शैक्षिक तकनीकी में अधिगम के लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए अधिगम के स्रोतों ( Learning Resources ) को नियोजन तथा संगठन किया जाता है । दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि मानव के सीखने की परिस्थितियों में वैज्ञानिक प्रक्रिया के प्रयोग को शैक्षिक तकनीकी कहते हैं । शैक्षिक तकनीकी शिक्षण को कला और अधिगम के विज्ञान में समन्वय स्थापित करती है ।

 शैक्षिक तकनीकी के उद्देश्य एवं कार्य निम्नलिखित हैं शैक्षिक तकनीकी के उद्देश्य ( Objectives of Educational Technology ) 
( 1 ) शिक्षा के उद्देश्यों का निर्धारण तथा उन्हें व्यावहारिक रूप से परिभाषीकरण करना एवं लिखना । 
( 2 ) शैक्षिक तकनीकी का उद्देश्य शिक्षण , अधिगम एवं मूल्यांकन प्रक्रिया में सुधार करके शिक्षक छात्रों के व्यवहार में वांछित सुधार करना है । 
( 3 ) सीखने की विधियों तथा प्रविधियों को क्रमबद्ध करके उनको अधिक प्रभावशाली एवं आधुनिक बनाना है । 
( 4 ) शैक्षिक तकनीकी का उद्देश्य कक्षा शिक्षण को सरल , स्पष्ट , वैज्ञानिक , वस्तुनिष्ठ तथा प्रभोवात्पादक बनाना है । 
( 5 ) शैक्षिक तकनीकी का उद्देश्य शिक्षा , प्रशासन , संगठन की समस्याओं का वैज्ञानिक ढंग से अध्ययन तथा विकास करना है । 
( 6 ) शिक्षक के व्यवहार को मनोवैज्ञानिक तथा वस्तुनिष्ठ बनाना है । 
( 7 ) शैक्षिक तकनीकी का उद्देश्य मानव जीवन को जटिल से जटिल समस्याओं का समाधान कर उसका निरन्तर विकास करना है । 


शैक्षिक तकनीकी के कार्य ( Functions of Educational Technology ) 

शैक्षिक तकनीकी के महत्वपूर्ण कार्य निम्नलिखित है 
( 1 ) शैक्षिक उद्देश्यों के सन्दर्भ में व्यावहारिक उद्देश्यों को सीखने की परिस्थितियों में परिवर्तित करना । 
( 2 ) सीखने वालों ( Learners ) की विशेषताओं , क्षमताओं तथा गुणों का विश्लेषण करना । 
( 3 ) पाठ्यवस्तु ( Content ) को व्यवस्थित करना । 
( 4 ) पाठ्यवस्तु के प्रस्तुत करने की विधियों , साधनों तथा माध्यमों की संरचना करना । 
( 5 ) शिक्षा के प्रसार के साथ ही साथ शैक्षिक सामग्री के संचित करने में सहायता प्रदान करना । 
( 6 ) छात्रों के व्यवहार में सुधार करने के लिए पुनर्वलन ( Reinforcement ) तथा पृष्ठ पोषण ( Feed - back ) देना । 
( 7 ) छात्रों की उपलब्धियों ( Achievement ) का मूल्यांकन करना । 
( 8 ) शैक्षिक तकनीकी शैक्षिक संगठन , प्रशासन , प्रबन्ध तथा निर्देशन की रूपरेखा तथा विकास करने में महत्वपूर्ण योगदान प्रदान करती है । 


शैक्षिक तकनीकी के महत्त्वपूर्ण लक्ष्य 

 1. शिक्षा के उद्देश्यों को निर्धारित करने , परिभाषित करने तथा व्यावहारिक बनाने में मदद करना ।
 2. शिक्षा अधिगम की प्रक्रिया में अपेक्षानुकूल सुधार लाना । 
3. शिक्षा के पूर्व निर्धारित उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु समुचित व्यूह रचनाओं का चयन तथा उनका प्रयोग करना ।
 4. छात्र की उपलब्धियों का समय - समय पर मूल्यांकन करना ।
 5. शिक्षण हेतु पाठ्य - वस्तु का विश्लेषण करना एवं तथ्यों का क्रमबद्ध तरीके से प्रस्तुत करना । 
6. अर्जित ज्ञान को संग्रह करना , उसका प्रचार एवं प्रसार करना तथा उसमें उत्तरोत्तर विकास करना ।  

शैक्षिक तकनीकी के प्रमुख पक्ष ( Main Aspects of Educational Technology ) 
आजकल के तकनीकी वेत्ता शिक्षा को एक उद्योग मानते हैं और शिक्षक को एक प्रबन्धक अथवा व्यवस्थापक मानते हैं । एक तकनीकी वेत्ता को परिस्थिति विशेष में मनोविज्ञान का उचित उपयोग करना है जिससे वांछित लक्ष्यों की प्राप्ति सम्भव हो सके । जिस प्रकार किसी उद्योग में कच्चे माल ( Input ) को प्रक्रिया ( Process ) द्वारा उत्पादन ( Output ) के रूप में परिणित करते हैं ठीक यही व्यवस्था शिक्षा में भी प्रयुक्त की जा सकती है । शिक्षण प्रक्रिया के शिक्षक एक प्रबन्धक ( Manager ) का कार्य करता है । शैक्षिक तकनीकी के तीन प्रमुख पक्ष होते हैं 

( 1 ) अदा / लागत ( Input ) - इसमें छात्रों का आरम्भिक व्यवहार ( Entering behaviour ) ज्ञात किया जाता है । इस व्यवहार में छात्रों के पूर्व ज्ञान , उनकी क्षमताएँ , निव्यत्ति आदि सम्मिलित होते हैं । साथ ही लागत में शिक्षक पढ़ाने के कमरे , फर्नीचर . दृश्य श्रव्य सामग्री सम्मिलित होती है । लागत में शिक्षण की पूर्व क्रिया अवस्था सम्मिलित होती है । जिसमें पाठ्यवस्तु का नियोजन , कार्य विश्लेषण , उद्देश्यों व शिक्षण बिन्दुओं का चयन , विधियों , प्रविधियों , युक्तियों तथा नीतियों का चयन आदि आते हैं ।

( 2 ) प्रक्रिया ( Process ) - प्रक्रिया का सम्बन्ध शिक्षक व छात्रों के मध्य पाठ्यवस्तु पर अन्तः प्रक्रिया से होता है । इसमें शिक्षक व छात्रों का कक्षागत व्यवहार सम्मिलित होता है । यह शिक्षण की वास्तविक स्थिति है इसमें शिक्षक शिक्षण व्यूह रचना तथा युक्तियों का प्रभावशाली ढंग से प्रयोग करना , सम्प्रेषण प्राविधियों ( Communication Strategies ) का उपयोग करना , अभिप्रेरणा की समुचित प्रविधियों का प्रयुक्त करना , शिक्षक का प्रश्न पूछना उसका शाब्दिक तथा अशाब्दिक व्यवहार व कथन तथा छात्रो के उत्तर तथा उनका प्रश्न पूछना आदि क्रियाएँ आती हैं । 

( 3 ) प्रदा / उत्पादन ( Output ) - इस पक्ष को छात्रों का अन्तिम व्यवहार ( Terminal Behaviour ) भी कहते हैं । प्रदा या उत्पादन का तात्पर्य प्रक्रिया द्वारा प्राप्त उपलब्धि ( Outcome ) से होता है । इसमें यह देखा जाता है छात्रों की उपलब्धि क्या हुई या उनके आरम्भिक व्यवहार में कोई परिवर्तन हुआ या नहीं । इसका पता मूल्यांकन द्वारा लगाया जाता है । शिक्षक मापन की विधियों का चयन करता है तथा मानदण्ड परीक्षा की रचना करता है । मूल्यांकन द्वारा शिक्षक अपने कार्य के प्रति सन्तोष अथवा असन्तोष व्यक्त करता है तथा आगे का शिक्षण इसी आधार पर नियोजित करता है । इन तीनों पक्षों का विस्तृत रूप ही शैक्षिक तकनीकी कहलाता है इन पक्षों के आधार पर ही शिक्षण की क्रियाओं तथा उसके स्वरूप को निर्धारित किया जाता है ।

शैक्षिक तकनीकी का विकास ( Development of Educational Technology ) - विज्ञान के सिद्धान्तों , नियमों आदि का सहारा लेकर यदि किसी वस्त . उपकरण , कार्यविधि या प्रक्रिया का आविष्कार कर मानव जीवन की किसी समस्या का हल अथवा मानव जीवन की सुख सुविधा एवं समाज के विकास में सहायता मिलती है तो उसे तकनीकी कहते हैं । विज्ञान सैद्धान्तिक तथा तकनीकी उसका व्यावहारिक रूप है । शैक्षिक तकनीकी का क्षेत्र बड़ा विस्तृत है । इसके अन्तर्गत वे सभी प्रयल खोजें तथा आविष्कार आ जाते हैं जो शिक्षा के किसी भी अंग को सुदृढ़ एवं अधिक प्रभावपूर्ण बनाते हैं । 
वैज्ञानिक क्षेत्र में हुए आविष्कारों एवं खोजों का मानव जीवन के हर क्षेत्र में प्रभाव पड़ा है । शिक्षा के क्षेत्र में इन आविष्कारों का प्रभाव पड़ना स्वाभाविक था । शैक्षिक तकनीकी का सर्वप्रथम उपयोग 1926 ई . में अमेरिका में सिडनी प्रेसी ( Sidney Pressey ) ने ओहियो राज्य विश्वविद्यालय ( Ohio State University ) में शिक्षण मशीन ( Teaching Mechine ) के निर्माण द्वारा प्रारम्भ किया । यह मशीन एक शिक्षण युक्ति ( Teaching Teetics ) के रूप में जाँच हेतु तैयार की गई थी । इसके पश्चात् ( 1930 40 ) के आस - पास लम्सडेन ( Lumsdain ) तथा ग्लेजर ( Glasser ) आदि तकनीकीवेत्ताओं ने शिक्षण को यंत्रवत बनाने का प्रयास किया । यह कार्य कुछ विशेष प्रकार की पुस्तकों कार्ड तथा बोडों की सहायता से किया गया । किन्तु शैक्षिक तकनीकी के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्य 1950 के लगभग श्री बी . एफ . स्किनर ( B . F . Skinner ) द्वारा किए गए प्रयोगों के परिणामस्वरूप हुआ । उसने जानवरों पर किए गए परीक्षणों का प्रयोग शिक्षा में सीखने के लिए किया । इस प्रकार अभिक्रमित अध्ययन ( Programmed Learning ) का विकास हुआ जो शैक्षिक तकनीकी का एक महत्वपूर्ण अंग माना जाता का का प्रयोग है । इंग्लैण्ड में सर्वप्रथम 1950 में बाइनमोर ( Brynmor ) ने शैक्षिक तकनीकी का प्रयोग किया । 1950 के पश्चात् ही शैक्षिक तकनीकी का विशेष रूप से विकास एवं उन्नति हुई । 1950 के लगभग ही यूरोप तथा अमेरिका में औद्योगिक क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर क्रान्ति हुई । इन देशों की क्रान्ति के कारण ही अन्य देशों ने भी शैक्षिक तकनीकों के क्षेत्र में विशेष प्रगति की । इस समय अनेक प्रकार की तकनीकियों का विकास हुआ जिनका प्रयोग उद्योग , वाणिज्य , सुरक्षा , स्वास्थ्य तथा शिक्षा आदि क्षेत्रों में स्वतन्त्र रूप से किया जाने लगा । वास्तव में यह सब दृश्य - श्रव्य ( Audio - visual ) साधना , रेडियो ( Radio ) , दूरदर्शन ( T . V . ) , प्रोजेक्टर ( Projector ) , टेप रिकार्डर ( Tape - Recorder ) , कम्प्यूटर ( Computor ) तथा प्रणाली विश्लेषण ( System Analysis ) आदि के आविष्कारा से सम्भव हुआ । इस सबका प्रभाव शिक्षा पर भी पडा और शिक्षा के क्षेत्र में शौक्षिक तकनीकी , व्यवहार तकनीकी आदि क्षेत्रों में शोध कार्यों के परिणामस्वरूप अनेक शिक्षण सिद्धान्तों , प्रतिमानों तथा डिजाइनों का प्रतिपादन अमेरिका तथा अन्य विकसित देशा में किया गया ।

 1967 ई . में अमेरिका में विश्वविद्यालयों के शिक्षा , मनोविज्ञान तथा विज्ञान विभागों द्वारा शैक्षिक तकनीकी एक राष्ट्रीय परिषद् ( National Council Educational Technology ) की स्थापना की गई । साथ ही बन्द सर्किट टेलीविजन ( C . CT . V . ) 4 अन्य दृश्य - श्रव्य सामग्री का उपयोग किया गया ।

व्यवहार तकनीकी के क्षेत्र में एमिडन ( Amidon ) , फ्लैंडर्स ( Flanders ) एवं स्मिथ ( Smith ) आदि शिक्षाशास्त्रियों ने अमेरिका में कक्षा शिक्षण अन्त : क्रिया को संख्यात्मक रीति से शिक्षक के शाब्दिक ( Interaction ) तथा अशाब्दिक ( Nonverbal ) व्यवहार को मापने की खोज की तथा कई उपकरणों ( Tools ) का निर्माण किया । इस प्रकार हम देखते है कि शैक्षिक तकनीकी का प्रारम्भ अमेरिका तथा रूस से हुआ और धीरे - धीरे यूरोप , इंग्लैण्ड तथा भारत तक पहुंच गई । 

भारत में विज्ञान व तकनीकी का सर्वप्रथम उपयोग सेना व सुरक्षा कार्यों के लिए किया गया । बाद में अन्य क्षेत्रों में भी इसका उपयोग किया जाने लगा । भारत में सर्वप्रथम 1966 में भारतीय अभिक्रमित अनुदेशन संगठन ( Indian Association of Programmed Learning ) की स्थापना की गई । इसके माध्यम से शैक्षिक तकनीकी के विकास के प्रयल विभिन्न संस्थाओं में किए गए । राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसन्धान एवं प्रशिक्षण परिषद N . C . E . R . T . ) में शैक्षिक तकनीकी का एक अलग विभाग स्थापित किया गया है । उच्च शिक्षा संस्थान बड़ौदा , मेरठ व शिमला विश्वविद्यालयों में एम . एड . तथा शोध कार्यों को बढ़ावा दिया गया ।

 राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसन्धान एवं प्रशिक्षण परिषद् ( N . C . E . R . T ) के अन्तर्गत एक शैक्षिक तकनीकी केन्द्र ( Centre for Educational Technology ) स्थापित किया गया है । 

शैक्षिक तकनीकी का क्षेत्र ( Scope of Educational Technology ) 
जैसा कि पहले बताया जा चुके हैं कि शैक्षिक तकनीकी का आधार विज्ञान है । शैक्षिक तकनीकी आज जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में प्रविष्ट होती जा रही है । तक्शी सकामाटा ( Takshi Salamata ) ने बताया कि शैक्षिक तकनीकी प्रमुख रूप से शिक्षा के तीन पहलुओं - अदा , प्रदा तथा प्रक्रिया ( Input , output and process ) को व्यवस्थित करती है । मैथिस बी . सी . ( B . C . Mathis ) शिक्षण व्यूह रचनाओं , शिक्षण पद्धतियों तथा विधिर्यों एवं तकनीकियों के विज्ञान को शैक्षणिक तकनीकी का नाम देता है । डेविस शैक्षिक तकनीकी के क्षेत्र में शिक्षा और प्रशिक्षण की समस्त समस्याओं के अध्ययन और विभिन्न अधिगम स्रोतों को महत्वपूर्ण मानता है । लूम्सडेन , मैथिस एवं डेसिको आदि ने शैक्षिक तकनीकी के क्षेत्र को दो प्रमुख भागों में बाँटा है - ( 1 ) कठोर शिल्प शैक्षिक तकनीकी ( Hardware Educational Technology ) . ( 2 ) कोमल शिल्प शैक्षिक तकनीकी ( Software Educational Technology ) 

शैक्षिक तकनीकी का क्षेत्र बड़ा विस्तृत होता जा रहा है । इसके अन्तर्गत वे सभी प्रयत्न आविष्कार तथा खोजें आ जाती है जो शिक्षा के किसी भी अंग को सुदृढ़ एवं अधिक प्रभावपूर्ण बनाने में सम्बन्ध रखती है । जिस प्रकार शिक्षा शब्द के अन्तर्गत शिक्षण , अधिगम अनुदेशन , प्रशिक्षण आदि सभी कुछ सम्मिलित होता है उसी प्रकार शैक्षिक तकनीकी का क्षेत्र भी विस्तृत तथा व्यापक है । इसके अन्तर्गत अनेक प्रकार की तकनीकी उत्पन्न होती गई । ये निम्न प्रकार है 
( 1 ) व्यवहार तकनीकी ( Behavioural Technology ) 
( 2 ) अनुदेशन तकनीकी ( Instructional Technology ) 
( 3 ) शिक्षण तकनीकी ( Teaching Techonology )
( 4 ) पाठ्यक्रम तकनीकी ( Curriculam Technologs ) 
( 5 ) अनुदेशन की रूपरेखा ( Instructional Design ) 
( 6 ) प्रशिक्षण मनोविज्ञान ( Training Pycholop ) 
( 7 ) प्रशासन तकनीकी ( Administration Technology ) 
( 8 ) पृष्ठपोषण मनोविज्ञान ( Cybematic Psycholog ) 
( 9 ) प्रणाली विश्लेषण ( System Analysis ) 

अतः यह रहा जा सकता है कि शैक्षिक तकनीकी आज के तकनीकी . . शिक्षक की उपादेयता बढ़ाती है . प्रों व छात्राध्यापकों को प्रभावशाली विधि से मि है और समाज के लिए ज्ञान के संचयन , प्रचार , प्रसार तथा विकास के लिए मार उपयोगी है । भारत सरीखे विकासशील देश में जन - शिक्षा के प्रसार एवं प्रवर शैक्षिक तकनोको अवश्य वरदान सिद्ध हो सकती है । 

शैक्षिक तकनीकी के विभिन्न रूप - आइवर के . डेबीज ( Ivor K . Davies ने अपनी पुस्तक सीखने की व्यवस्था ( The management of Learning ) मे तुम्योर ( Luisdaine 1964 ) द्वारा बताए गए शैक्षिक तकनीकी के तीन रूपों का वर्णन किय है । ये तीन रूप निम्नलिखित है 

( 1 ) शैक्षिक तकनीकी प्रथम अथवा हार्डवेयर उपागम ( Educational Technology lor Hardware Approach ) - शैक्षिक तकनीकी प्रथम को मुख्य का से हार्डवेयर उपागम कहा जाता है । इसमें शिक्षण की सहायक सामग्री पर विशेष महत्ता । दिया जाता है । इसका प्रारम्भ भौतिक विज्ञान ( Physical Science ) तथा अभियन्त्रण तकनीकी ( Engineering Technology ) का शिक्षा तथा प्रशिक्षण प्रणाली में प्रयोग से हुआ । दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि शिक्षण प्रक्रिया का धीरे - धीरे मशीनीकरण किया जा रहा है । इसका उद्देश्य यह है कि कम से कम समय में , कम खर्च दरा अधिकाधिक छात्रों को प्रभावशाली ढंग से शिक्षित किया जा सके । ताकि शिक्षण के उद्देश्यों की अधिकाधिक प्राप्ति हो सके । इसमें शिक्षण सहायक सामग्री ( Audio - visual Aid ) का विशेष महत्व है । इस तकनीकी को अभियन्त्रण अथवा मशीन की तकनीकी कहकर भी सम्बोधित करते हैं । इसमें शिक्षण मशीन ( Teaching Machine ) ही एकमात्र सहायक सामग्री है जिसका आविष्कार शिक्षण के लिए विशिष्ट रूप से किया गया है ।

 शिक्षण प्रशिक्षण में अन्य सहायक सामग्री के अन्तर्गत चलचित्र ( Cinema ) , रेडियो ( Radio ) , टेलीविजन ( T . V . ) , ग्रामोफोन ( Gramophone ) , टेपरिकाडर ( Taperecorder ) , प्रोजेक्टर ( Projector ) . कम्प्यू टर ( Computer ) , बन्द सर्किट टेलीविजन भाषा प्रयोगशाला आदि आते है । ( Closed Circuit Television ) , इलेक्ट्रोनिक वीडियो टेप ( Electronic Video - Tape ) भाषा प्रयोगशाला आदि आते है ।

मशीन यन्त्रवत् है और अनुदेशन का कार्य करती है । इसका सम्बन्ध अनुदेशन ( Instruction ) क ज्ञानात्मक पक्ष ( Cognitive Domain ) से है । मशीन एक प्रकार स निष्क्रिय यन्त्र है । यह क्लिष्ट व्यवस्था तथा कार्य केन्द्रित ( Task Centred ) होता हा मशीनों के प्रयोग से शिक्षा की प्रक्रिया का यन्त्रीकरण हुआ है ।

मानवीय ज्ञान के तीन पक्ष होते है 
( 1 ) ज्ञान का संचय ( Preservation of Knowledge ) 
( 2 ) ज्ञान का हस्तान्तरण Transmission of Knowledge ) 
( 3 ) ज्ञान का विकास ( Development of Knowledge ) 

 मशीनों अथवा सहायक सामग्री के माध्यम से जान के तीनों पक्षों में सहायता मिलती है । छापने की मशीनों से ज्ञान को पुस्तकों के रूप में संचित किया जाता है तथा पुस्तकालयों में उनको रखा जाता है । टेपरिकार्डर तथा फिल्म द्वारा बहुत - सा ज्ञान संचित किया जाता है । ज्ञान के प्रसार में रेडियो , टेलीविजन , माइक का सहारा लिया जाता है तथा असंख्य छात्रों को घर बैठे ही लाभ होता है । पत्राचार , पाठ्यक्रम द्वारा शिक्षा तथा खुले विश्वविद्यालय ( Open University ) भी शैक्षिक तकनीकी प्रथम के माध्यम से ही सम्भव हो सके हैं । ज्ञान के विकास के लिए शोध कार्यों की व्यवस्था की जाती है । शोध कार्यों में प्रदत्तों ( Data ) का संकलन एवं उसका विश्लेषण ( Analysis ) किया जाता है । इसके लिए शोधकर्ता बिजली की मशीन तथा कम्प्यूटर ( Computer ) आदि का प्रयोग करता है । इस प्रकार हम देखते हैं कि ज्ञान के तीनों पक्षों में अब मशीनों का प्रयोग होने लगा है । इस प्रकार शिक्षण की प्रक्रिया का यन्त्रीकरण हो गया है । शिक्षण की प्रक्रिया के इस यन्त्रीकरण को भी शैक्षिक तकनीकी प्रथम हार्डवेयर उपागम कहा जाता है । डेवीज ( Davies ) ने यह माना है कि हार्डवेयर उपागम शिक्षण प्रक्रिया का क्रमशः मशीनीकरण करके शिक्षा के द्वारा खर्च तथा कम समय में अधिक छात्रों को शिक्षित करने का प्रयास है । डेविड ( David ) के अनुसार - यह तकनीकी शिक्षण और प्रशिक्षण के लिए अत्यन्त आवश्यक है । 

( 2 ) शैक्षिक तकनीकी द्वितीय अथवा सॉफ्टवेयर उपागम ( Educational Techonology - 2 or Software Approach ) - इसे शैक्षिक तकनीकी नम्बर दो कहा जाता है । इसको अनुदेशन तकनीकी ( Instructional Technology ) , शिक्षण तकनीकी Teaching Technology ) तथा व्यवहार तकनीकी ( Behavioural Technology ) भी कहते हैं । इस तकनीकी का आधार मनोविज्ञान है । इसलिए इसे व्यवहार प्रणाली या व्यवहार तकनीकी के नाम से पुकारा जाता है । शैक्षिक तकनीकी द्वितीय में मशीनों का प्रयोग नहीं किया जाता है वरन् शिक्षण तथा सीखने के मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों का प्रयोग किया जाता है जिससे छात्रों के व्यवहार में , अपेक्षित परिवर्तन किया जा सके । शिक्षण में पाठ्यवस्तु के कुछ निश्चित उद्देश्यों ( Objectives ) की प्राप्ति हेतु शिक्षक विभिन्न प्रकार की विधियों , प्रविधियों , नीतियों तथा युक्तियों का प्रयोग करके छात्रों को सीखने के अनुभव ( Learning Experiences ) प्रदान करता है जिससे कि उनके व्यवहार में अपेक्षित परिवर्तन ( Desirable Behaviour Change ) हो सके । मशीनों का प्रयोग यदि किया भी जाता है तो यह केवल पाठ्यवस्तु को प्रभावशाली बनाने के लिए किया जाता है । बी . एफ . स्किनर ( B . F . Skinner ) ने शैक्षिक तकनीकी को व्यवहार तकनीकी पर आधारित है , माना है । इसी प्रकार आर्थर मेल्टन ( Arther Melton ) ने कहा है कि शैक्षिक तकनीकी अधिगम के मनोविज्ञान पर आधारित है और यह अनुभव प्रदान करके वांछित व्यवहार परिवर्तन की प्रक्रिया का प्रारम्भ करती है । 
जॉन पी . डेसीको के अनुसार - व्यवहार प्रणाली सीखने के मनोविज्ञान का वैज्ञानिक रीति से व्यावहारिक समस्याओं में प्रयोग है । 
" It is the application of the psychology of learning to practical problems in a scientific sense . " - John P . Dececco , 

इस तकनीकी का सम्बन्ध शिक्षण के सिद्धान्तों , शिक्षण की विधियों तथा प्रविधियों . उद्देश्यों के व्यावहारिक रूप में लिखने , अनुदेशन प्रणाली के पुनर्वलन ( Reinforcement ) तथा पृष्ठपोषणा की उक्तियों ( Feed - back Devices ) तथा मूल्यांकन से होता है । 

आइवर के . डेवीज के अनुसार - " शैक्षिक तकनीकी का मुख्य सम्बन्ध अभिक्रमित अध्ययन के आधुनिक सिद्धान्तों से निकटतम रहा है । इसमें कार्य विश्लेषण , उद्देश्यों का संक्षिप्तीकरण करके लेखन , उपयुक्त अधिगम नीतियों का चयन , सही अनुक्रिया के लिए पुनर्वलन तथा सतत् मूल्यांकन निहित रहते हैं । " 
" This view of educational technology is closely associated with the modern principles of programmed learning , and is characterized by Tast Analysis , writingprecise objectives selection of appropriate learning strategies , reinforcement of correct responses and constant evaluation " - Ivork . Davies . 
इस प्रकार इस तकनीकी में अदा ( Input ) , प्रक्रिया ( Process ) तथा प्रदा ( Output ) तीनो पक्षों को विकसित करने का प्रयास किया जाता है । 

( 3 ) शैक्षिक तकनीकी तृतीय या प्रणाली विश्लेषण ( Educational Technology - 3 or System Analysis ) - इसे शैक्षिक तकनीकी तृतीय या प्रणाली विश्लेषण कहते हैं । द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात् एक नवीन प्रबन्ध तकनीकी ( Management Technology ) का जन्म हुआ जिससे प्रबन्ध , प्रशासन , व्यापार , उद्योग , सेना सम्बन्धी समस्याओं के सम्बन्ध में निर्णय लेने के लिए वैज्ञानिक आधार प्रदान किया । अब इस तकनीकी का प्रयोग शिक्षा के अन्तर्गत शैक्षिक प्रशासन एवं प्रबन्ध की समस्याओं , शैक्षिक संगठन , निर्देशन की समस्याओं में वैज्ञानिक ढंग से अध्ययन किया जाता है । इसके प्रयोग से शैक्षिक प्रणाली , शैक्षिक प्रशासन एवं प्रशासन को प्रभावशाली एवं कम खर्चीला बनाया जा सकता है । 

प्रणाली विश्लेषण मशीन तकनीकी तथा व्यवहार तकनीकी अथवा तकनीकी प्रथम तथा तकनीकी द्वितीय का एकीकरण एवं समन्वय है । 

शैक्षिक प्रक्रिया के दो प्रमुख पक्ष होते हैं - शिक्षण और अधिगम । शिक्षण एक कला ( Art ) है तथा अधिगम एक विज्ञान ( Science ) है । शैक्षिक तकनीकी का प्रमुख कार्य दोनों पक्षों अर्थात् शिक्षण की कला तथा अधिगम के विज्ञान में मध्यस्थता करना है । इस प्रकार यह कला तथा विज्ञान में समन्वय स्थापित करती है । 

शैक्षिक तकनीकी के विभिन्न प्रकार ( Kinds ) - हम शैक्षिक तकनीकी को मुख्य रूप से तीन भागों में बाँट सकते हैं 
( 1 ) व्यवहार तकनीकी ( Behavioural Technology ) 
( 2 ) अनुदेशन तकनीकी ( Instructional Technology ) 
( 3 ) शिक्षण तकनीकी ( Teaching Technology )

व्यवहार तकनीकी ( Behavioural Technology ) 
शैक्षिक परिस्थितियाँ कक्षागत व्यवहार को जन्म देती हैं इसलिए शिक्षक व छात्र के व्यवहार का अध्ययन आवश्यक हो जाता है । साथ ही वैयक्तिक विभिन्नताओं ( Individual differences ) तथा छात्रों अथवा मानव में निहित क्षमताओं तथा कुशलताओं का पता लगाने के लिए व्यवहार तकनीकी का अध्ययन आवश्यक होता है । इस प्रकार इस तकनीकी का प्रमुख उद्देश्य शिक्षक तथा छात्र के कक्षागत व्यवहार में वांछित परिवर्तन व सुधार करना है । 
आज की शिक्षा बालकेन्द्रित है । अतः प्रत्येक शिक्षक के लिए यह आवश्यक है कि वह बाल मनोविज्ञान अर्थात् छात्रों की आयु , स्तर , मानसिक क्षमता , योग्यता एवं व्यक्तिगत विभिन्नताओं का स्पष्ट ज्ञान रखें । तभी यह शिक्षण के उद्देश्यों ( Teaching Objectives ) को प्राप्त करने के लिए सीखने के अनुभव ( Leaming Experiences ) उत्पन्न करके अपेक्षित व्यवहार परिवर्तन ( Desired behavioural change ) कर सकेगा । व्यवहार तकनीकी अधिगम के क्षेत्र में प्रगति , उन्नति एवं विकास करना चाहती है तथा सीखने की प्रक्रिया को सुगम तथा प्रभावशाली बनाना चाहती है । 

व्यवहार तकनीकी की परिभाषा ( Definition of Behavioural Techno logy ) - व्यवहार तकनीकी की कुछ महत्वपूर्ण परिभाषाएँ नीचे दी जा रही हैं 
( 1 ) " व्यवहार तकनीकी का प्रमुख उद्देश्य मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों का शिक्षण प्रशिक्षण में प्रयोग है । " 
" The main objective of behavioural technology is the application of Psychological principles in teaching and training . " 
( 2 ) " व्यवहार तकनीकी एक वैज्ञानिक उपागम है जो शिक्षण तथा सीखने की प्रक्रिया द्वारा व्यवहार परिवर्तन के सम्बन्ध में इंगित करती है । " 
" Behavioural technology is scientific approach which indicates about the change of behaviour through the teaching learning process . " 
( 3 ) " व्यवहार तकनीकी शैक्षिक तकनीकी की वह शाखा है जिसका उद्देश्य वैज्ञानिक ढंग से शिक्षक के व्यवहार का निरीक्षण , विश्लेषण तथा मूल्यांकन करना है । " 
" Behavioural technology is that branch of educational technology which aims to observe , analyse and evaluate the classroom behaviour of the teacher in a scientific way . "

 बी . एफ , स्किनर ( B . F . Skinner ) ने व्यवहार तकनीकी का उल्लेख अपनी पुस्तक में किया है । व्यवहार तकनीकी को आगे बढ़ाने का श्रेय भी उसी को जाता है । उसने शिक्षा मनोविज्ञान के क्षेत्र में प्रयोगों द्वारा सीखने के सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया । स्किनर ने अपने सक्रिय अनुकूलन सिद्धान्त ( Operant Conditioning Theory ) द्वारा यह सिद्ध कर दिया कि केवल पशुओं के व्यवहार को ही नहीं वरन् मानव के व्यवहार को भी परिवर्तित तथा नियन्त्रित किया जा सकता है । बी . एफ . स्किनर के अनुसार शिक्षण एक अन्तःप्रक्रिया ( Interaction ) है । यह छात्र व शिक्षक के बीच पाठ्यवस्तु ( Content ) का आदान - प्रदान ( communication ) है । शिक्षक पाठ्यवस्तु को छात्रों के सम्मुख तीन स्तरों पर प्रस्तुत कर सकता है । ये स्तर है - ( 1 ) स्मृति स्तर ( M . Level ) ( 2 ) बोध स्तर ( Understanding Level ) , ( 3 ) चिन्तन स्तर ( Reflective सफल शिक्षण के लिए यह आवश्यक है कि शिक्षक छात्रों को अपने विचार करने की पूर्ण स्वतन्त्रता दे तभी उनके व्यवहार में अपेक्षित परिवर्तन लाया जा सकता है।
शिक्षक व छात्रों का कक्षागत व्यवहार दो प्रकार का हो सकता है 

( 1 ) शाब्दिक - इसमें शिक्षक का प्रश्न पूछना तथा छात्रों द्वारा प्रश्न का , देना । शिक्षण की प्रक्रिया का बड़ा भाग शाब्दिक व्यवहार ही होता है । 


( 2 ) अशाब्दिक - अशाब्दिक व्यवहार सांकेतिक होता है इसमें शिक्षक र अपने चेहरे के हावभाव , इशारों , संकेतों , मुद्रा प्रदर्शन , शरीर के अंगों के प्रयोग अन्य संकेतों से पाठ के विकास में सहायता करते हैं । सफल शिक्षण के लिए शिक्षा व अत्रों के बीच अधिकाधिक अन्त : प्रक्रिया होनी चाहिए । 
आधुनिक समय में छात्र व शिक्षक के कक्षा के शाब्दिक व्यवहार को संख्यात्मक व गुणात्मक रीति एवं वस्तुनिष्ठता से मापने का प्रयत्न किया गया है । अमेरिका इस क्षेत्र में अनेक अनुसंधान एवं शोध कार्य किए गए हैं । जिनके आधार पर का उपकरण ( Tools ) का विकास करके छात्रों व शिक्षकों के व्यवहार का पता लगाकर उनमें अपेक्षित परिवर्तन सम्भव हुआ है । यह कार्य अध्ययन की विधियों , प्रविधियों बनाने का प्रयत्ल किया जा रहा है । एवं उक्तियों में परिवर्तन कर कक्षा शिक्षण व सीखने को उच्च स्तर का एवं प्रभावशाली बनाने का प्रयत्न किया जा रहा है । 
शिक्षक व्यवहार की पाठ्यवस्तु एवं नवीन अवधारणाएँ ( Content of Behaviour Technology and New Innovations ) - व्यवहार तकनीकी एक और . यह बताती है कि छात्रों के व्यवहार में अपेक्षित परिवर्तन कैसे किया जा सकता है वहीं दूसरी ओर इसमें शिक्षक के कक्षा सम्बन्धी व्यवहार का निरीक्षण , विश्लेषण , व्याख्या तथा विकास की प्रविधियों का उल्लेख किया जाता है । शिक्षक के कक्षागत व्यवहार में परिवर्तन की दृष्टि से व्यवहार तकनीकी की पाठ्यवस्त के सम्बन्ध में बी . एफ . स्किनर , डी . जी . रायन , फिलैण्डर आदि ने निम्नलिखित तत्वों को सम्मिलित किया है 

( 1 ) शिक्षक व्यवहार का अर्थ एवं परिभाषा । 
( 2 ) शिक्षक व्यवहार के सिद्धान्त । 
( 3 ) शिक्षक व्यवहार की निरीक्षण विधियाँ । 
( 4 ) शिक्षक व्यवहार का स्वरूप एवं विश्लेषण । 
( 5 ) शिक्षक व्यवहार का मूल्यांकन । 
( 6 ) शिक्षक व्यवहार के प्रतिमान । 
( 7 ) शिक्षक व्यवहार को विकसित करने की प्रविधियाँ । 
इन प्रविधियों अथवा नवीन अवधारणाओं में निम्नलिखित अधिक महत्वपूर्ण हैं 
( i ) सूक्ष्म - शिक्षण ( Micro - Teaching )
( ii )  टी - समूह प्रशिक्षण ( T - Group Training ) 
( iii ) सीमुलेटेड शिक्षण ( Simulated Soni P00
( iv ) अन्तःप्रक्रिया विश्लेषण ( Interaction Analysis ) 
( v ) अभिक्रमित अध्ययन ( Programmed Instruction ) 
हमारे देश में भी अब इन प्रविधियों के प्रयोग की ओर प्रयास हो रहे हैं । इस प्रकार शैक्षिक तकनीकी के विकास में बी . एफ . स्किनर के अतिरिक्त एन . ए . फिलैण्डर , ओवर , एमीडीन आदि प्रमुख विद्वानों ने महत्वपूर्ण कार्य किए । 

व्यवहार तकनीकी की विशेषताएँ एवं उपयोग ( Characteristics and Utility of Behavioural Technology ) - व्यवहार तकनीकी की निम्नलिखित विशेषताएँ है
 ( 1 ) शिक्षक व्यवहार का निरीक्षण एवं वस्तुनिष्ठ रूप से अध्ययन किया जा सकता है । 
( 2 ) व्यवहार तकनीकी व्यवहार परिवर्तन की प्रक्रिया की विधि है । 
( 3 ) व्यवहार तकनीकी शिक्षक व्यवहार को नियोजित एवं उद्देश्यपूर्ण बनाती है । 
( 4 ) शिक्षक व्यवहार का विश्लेषण एवं मापन किया जा सकता है । 
( 5 ) व्यवहार तकनीकी द्वारा शिक्षण के विशिष्ट कौशल ( Skill ) का विकास किया जा सकता है । 
( 6 ) शिक्षक के व्यवहार में सुधार किया जा सकता है तथा व्यवहार के सुधार के लिए सुझाव भी दिए जा सकते हैं । 
( 7 ) इस तकनीकी के प्रयोग से छात्राध्यापकों को शिक्षण अभ्यास ( Teaching Practice ) काल में पुनर्वलन ( Reinforcement ) तथा पृष्ठ पोषण ( Feed - back ) दिया जा सकता है । जिससे प्रभावशाली शिक्षक तैयार किए जा सकते हैं । 
( 8 ) यह तकनीकी शिक्षक सिद्धान्तों ( Te - ching Theories ) के विकास में सहायक होती है । 
( 9 ) छात्राध्यापकों के प्रशिक्षण के समय उनकी व्यक्तिगत क्षमताओं और योग्यताओं के अनुसार कौशल के विकास के लिए अवसर दिया जा सकता है । 
( 10 ) व्यवहार तकनीकी द्वारा शिक्षण की निष्पत्तियों का मूल्यांकन वस्तुनिष्ठ ढंग से किया जा सकता है । अनुदेशन तकनीकी ( Instructional Technology ) शैक्षिक तकनीकी का एक प्रमुख प्रकार अनुदेशन अथवा निर्देशन तकनीकी है । 

अनुदेशन का अर्थ उन क्रियाओं से होता है जो अधिगम में सुविधाएँ प्रदान करती है । पत्र शिक्षक और छात्र के मध्य अन्तःप्रक्रिया आवश्यक नहीं होती । सामान्यतया शिक्षण और अनुदेशन में कोई अन्तर नहीं किया जाता है । अनुदेशन और शिक्षण दोनों में छात्रों को सीखने की प्रेरणा दी जाती है । अनुदेशन का अर्थ है सूचना प्रदान ( Communication of Information ) करना है , जबकि शिक्षण में शिक्षक और छात्रों के बीच अन्तःप्रक्रिया ( Interaction ) का होना अति आवश्यक है परन्तु अनुदेशन में छात्र अभिक्रमित अनुदेशन ( Programmed Instruction ) द्वारा स्वयं भी सीख सकता है । शिक्षण में भी अनुदेशन का प्रयोग किया जाता है , इसलिए शिक्षण को तो अनुदेशन कहा जा सकता है परन्त अनुदेशन को शिक्षण नहीं कहा जा सकता , क्योंकि अनुदेशन में शिक्षक और छात्र के  मध्य अन्त : प्रक्रिया होना आवश्यक नहीं है । अनुदेशन तकनीकी मशीन तकनीकी ( Hardware Approach ) पर आधारित है । इसके अन्तर्गत विभिन्न प्रकार की दृश्य श्रव्य सामग्री जैसे - रेडियो , टेलीविजन . रिकार्ड प्लेयर , प्रोजैक्टर आदि सामग्री आती है जिसकी सहायता से विद्यार्थियों के बड़े - बड़े समूह को कम से कम समय तथा थोड़े खर्च में ज्ञान दिया जा सकता है । 

अनुदेशन तकनीकी की परिभाषा ( Definition of Instructional Techno logy ) - एस , एस , मैकमूरिन ने अनुदेशन तकनीकी परिभाषा निम्न प्रकार दी है  
" अनुदेशन तकनीकी शिक्षण और सीखने की समस्त प्रक्रिया को विशिष्ट उद्देश्यों के अनुसार रूपरेखा तैयार करने , चलाने तथा उसका मूल्यांकन करने को एक क्रमबद्ध रीति है । यह शोधकार्य तथा मानवीय सीखने एवं आदान - प्रदान करने पर आधारित है । इसमें शिक्षण को प्रभावपूर्ण बनाने के लिए मानवीय तथा अमानवीय साधनों का प्रयोग किया जाता है । "
 " Instructional technology is a systematic way to designing , carrying our and evaluating the total process of learning and teaching in terms of specific objectives , based on research on human learning and communication and employing a combination of human and non - human resources to bring about more effective instruction " - S . M . Mc Murrin . 

उपर्युक्त परिभाषा से यह स्पष्ट है कि 
( 1 ) अनुदेशन तकनीकी में सीखने की प्रक्रिया सम्बन्धी उद्देश्यों की रूपरेखा सम तैयार करने , उसको प्रेरित करने , आगे बढ़ाने और पाठ को प्रस्तुत करने के लिए अनेक विधियों , प्रविधियों , युक्तियों तथा दृश्य - श्रव्य सामग्री का प्रयोग किया जाता है और अन्त में उदेश्यों की प्राप्ति का मूल्यांकन करके आवश्यकतानुसार परिवर्तन किया जा सकता है , जिससे उद्देश्यों की प्राप्ति हो सके । होती | 
( 2 ) अनुदेशन तकनीकी मानवीय सीखने के आदान - प्रदान सम्बन्धी शोधकार्य पर आधारित है ।  
( 3 ) अनुदेशन तकनीकी में शिक्षण को प्रभावपूर्ण बनाने के लिए मानवीय तथ छात्र अमानवीय दोनों साधनों का उपयोग किया जाता है ।

 ए . आर . शर्मा ( 1985 ) के अनुसार - " अनुदेशन तकनीकी का तात्पर्य प्रविधियाँ अथवा विधियों के उस समूह से जो किसी सुनिश्चित अधिगम लक्ष्यों को प्राप्त करता है । 
" Instructional technology means a net work of techniques or devices employed to accomplish certain set of learning objective .

" इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि शैक्षिक तकनीकी का तात्पर्य उन समान विधियों , प्रविधियों एवं युक्तियों की व्यवस्था मनोवैज्ञानिक , सामाजिक तथा बैज्ञानिक सिद्धान्तों का अनुदेशन में प्रयोग है जिसकी सहायता से अधिगम उद्देश्यों की प्राप्ति की जा सके । 
 अनदेशन तकनीका का प्रमुख आधार मनोविज्ञान ही है । बी . एफ . स्किनर राबर्ट ग्लेसर , क्रोइडर गिलबर्ट ए . लुम्स डैन आदि मनोवैज्ञानिकों का इसके विकास में महत्वपूर्ण योगदाने ना सका प्रमुख उदाहरण अभिक्रमित अनुदेशन ( Programmed Instruction ) है । 

अनदेशन तकनीकी की अवधारणाएँ ( Assumptions of Instructional Technology ) 

अनुदेशन तकनीकी की अवधारणाएँ निम्न प्रकार है 
( 1 ) अनुदेशन तकनीकी में पाठ्य वस्तु का प्रस्तुतीकरण स्वतन्त्र रूप से एवं पाठ्य वस्तु को छोटे - छोटे तत्वों में विभाजित करके किया जा सकता है । 
( 2 ) पाठ्यवस्तु के छोटे - छोटे तत्वों की सहायता से समुचित अधिगम की परिस्थितियाँ उत्पन्न की जा सकती हैं । 
( 3 ) पाठ्यवस्तु का चुनाव उसके उद्देश्यों को ध्यान में रखकर किया जा सकता है । 
( 4 ) शिक्षण और सीखने की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने में सहायक होती है । 
( 5 ) अनुदेशन की सहायता से छात्रों को अपनी व्यक्तिगत विभिन्नताओं के अनुसार सीखने का अवसर प्रदान किया जा सकता है । 
( 6 ) अनुदेशन तकनीकी में पाठ्यवस्तु के प्रस्तुतीकरण में अनेक विधियों प्रविधियों एवं दृश्य - श्रव्य सामग्री की सहायता से अधिगम के उद्देश्यों की प्राप्ति की जा सकती है । 
( 7 ) अनुदेशन सामग्री की सहायता से छात्रों को सीखने के लिए दिशा एवं उनको समुचित पुनर्वलन ( Reinforcement ) प्रदान किया जा सकता है । 
( 8 ) शिक्षक की अनुपस्थिति में भी छात्र स्वयं अध्ययन द्वारा सीख सकता है । 
( 9 ) अनुदेशन तकनीकी छात्रों में अपेक्षित व्यवहार परिवर्तन लाने में सहायक होती है । 

अनुदेशन तकनीकी की पाठ्य वस्तु ( Content of Instructional Techno logy ) - अनुदेशन तकनीकी का प्रमुख उदाहरण अभिक्रमित अध्ययन ( Programmed Learning ) है । इसमें पाठ्यवस्तु को छोटे - छोटे पदों में विभाजित किया जाता है और छात्र प्रत्येक पद को सक्रिय होकर स्वतन्त्र रूप से अध्ययन करते हैं । अनदेशन तकनीकी के अन्तर्गत निम्नलिखित पाठ्य वस्तु सम्मिलित की जाती है 
( 1 ) अनुदेशन तकनीकी का अर्थ , परिभाषा एवं विकास । 
( 2 ) अभिक्रमित अनुदेशन का अर्थ एवं परिभाषा । 
( 3 ) शाखीय तथा रेखीय अभिक्रमित अनुदेशन का अर्थ , स्वरूप एवं अवधारणाएं । 
( 4 ) कम्प्यूटर की सहायता द्वारा अनुदेशन । 
( 5 ) व्यक्तिगत विभिन्नता के लिए समायोजन प्रविधियाँ । 
( 6 ) नियम एवं उदाहरण प्रणाली द्वारा अनुदेशन ।

अनुदेशन तकनीकी का महत्व एवं विशेषताएँ ( Importance and Characteristics of Instructional Technology ) 

अनुदेशन तकनीकी का महत्व एवं विशेषताएँ निम्नलिखित हैं 
( 1 ) अनुदेशन का तात्पर्य केवल ज्ञान व सूचना प्रदान करना है । इसलिए इस तकनीकी द्वारा ज्ञानात्मक ( Cognitive Objectives ) उद्देश्यों की प्राप्ति की जाती है । 
( 2 ) अनुदेशन तकनीकी शिक्षण का एक साधन है जो शिक्षण को प्रभावशाली बनाती है । 
( 3 ) अनुदेशन तकनीकी दृश्य - श्रव्य सामग्री ( Hardware approach ) पर आधारित है । इसलिए शिक्षण धीरे - धीरे यंत्रवत् ( Mechanised ) होता जा रहा है । 
( 4 ) इसमें निर्देशन केवल शिक्षण के स्मृति स्तर ( Memory level ) पर आधारित होता है । 
( 5 ) इसमे छात्रों को उनकी व्यक्तिगत विभिन्नताओं के अनुसार सीखने का अवसर प्रदान किया जाता है । 
( 6 ) यह तकनीकी मनोवैज्ञानिक तथा अधिगम के सिद्धान्तों पर आधारित है । 
( 7 ) इसमें छात्रों को सही अनुक्रिया ( Correct Response ) की पुष्टि कर निरन्तर पुनर्वलन ( Reinforcement ) दिया जाता है । 
( 8 ) अनुदेशन विभिन्न प्रकार की दृश्य - श्रव्य सामग्री , विधियों , प्रविधियों द्वारा प्रदान किया जाता है । 
( 9 ) इस तकनीकी में शिक्षक - छात्र सम्बन्धों का अभाव रहता है तथा शिक्षक का स्थान एक सहायक के रूप में होता है । 
( 10 ) इस तकनीकी के क्षेत्र में विभिन्न प्रयोगों एवं शोध कार्यों की सहायता से महत्वपूर्ण अनुदेशनात्मक सिद्धान्तों का विकास किया जा सकता है । जिससे अनुदेशन को प्रभावशाली बनाया जा सकता है । 

शिक्षण तकनीकी ( Teaching Technology ) 

शिक्षण विकास की एक प्रमुख प्रक्रिया है जो शिक्षक - छात्र की अन्त : प्रक्रिय द्वारा सम्पन्न होती है । शिक्षण को सोद्देश्य प्रक्रिया माना गया है जिसका अन्तिम लक्ष्य । बालक का पूर्ण विकास करना है । 

शिक्षण के दो प्रमुख तत्व होते हैं - पाठ्यवस्तु ( Content ) तथा ( 2 ) कक्षागत व्यवहार अथवा सम्प्रेषण ( Communication ) | शिक्षण तकनीकी के अन्तर्गत पार वस्तु तथा कक्षा व्यवहार दोनों ही तत्व सम्मिलित किए जाते हैं । इस प्रकार शिक्षण तकनीकी में अनुदेशन तकनीकी तथा व्यवहार तकनीकी दोनों ही आती है । 
शिक्षण एक कला है । आजकल इसे विज्ञान भी मानने लगे हैं क्योंकि शिक्षा तकनीकी इस कला की वैज्ञानिक नियमों व सिद्धान्तों के प्रयोग द्वारा अधिक सर स्पष्ट , व्यावहारिक तथा वस्तुनिष्ठ बनाती है । इस प्रकार सीखने का स्वरूप वैज्ञानिक तथा मनोवैज्ञानिक हो गया है । अब छात्र द्वारा सीखने पर अधिक बल दिया । शिक्षण की तुलना एक उद्योग से की जाती है । जिसमें शिक्षक एक प्रबन्धक ( Manager ) होता है जो छात्रों के सीखने को व्यवस्था करता है । 

शिक्षाण तकनीकी के विकास में आइवर के . डेवीज , एन . एल . गेज , बनर . जाती है । जिसमें शिक्षक एक व्यवस्थापक अथवा की व्यवस्था करता है । 

शिक्षण तकनीकीकी परिभाषाएं ( Definitions ofTeaching Technology ) 
शैक्षिक तकनीकी को कुछ प्रमुख परिभाषाएँ नीचे दी जा रही हैं 

( 1 ) आइवर के . डेबीज के अनुसार - " शिक्षण तकनीकी समस्त पाठ्य वस्त को क्रमशः चार सोपानों नियोजन , व्यवस्था , अग्रसरण तथा नियन्त्रण में विभाजित कर अध्ययन किया जाता है ।
 In teachine technology all the content is studied by deviding in into four steps - planning , organizing . leading and controlling respectiveliy " - Ivor K . Davies . 

( 2 ) जैकसन के अनुसार - " शिक्षण तकनीकी के अन्तर्गत समस्त शिक्षण क्रियाएँ तीन अवस्थाओं पूर्व क्रिया , अन्तः क्रिया तथा उत्तर अवस्था में विभाजित की जा सकती है । " 
" In teaching technology all the teaching activities may be classified in the three stages as Pre - active , Inter - active and post active . " - Jackson . 

( 3 ) बी . एफ . स्किनर के अनुसार - " शिक्षण तकनीकी शिक्षक की उपलब्धि में वृद्धि करती है । वास्तव में समस्त शिक्षण प्रक्रिया को इससे लाभ होता है । हम शिक्षा को केवल इसके प्रति सहमति रखकर नीति परिवर्तन करके तथा इसके प्रशासनिक ढाँचे को सुव्यवस्थित करके उसमें सुधार नहीं कर सकते । हमें स्वयं शिक्षण में सुधार करना होगा और इसके लिए केवल एक प्रभावोत्पादक शिक्षण तकनीकी ही समस्या का समाधान कर सकती है । " 
" Atechnology of teaching by its very nature maximises the teacher ' s Lachievement . The whole establishment gains . We can not improve education Simple by increasing its support shanging its policies and reorganising its administrative structure . West Parve structure . We must improve teaching itself and for this nothing short of oneffective technology of teaching will solve the problem . H - B . F . Skinner . 

शिक्षण तकनीकी की पाठ्यवस्तु ( Content of Teaching Technology ) 
शक्षण तकनीकी में पाठ्यवस्तु को निम्न चार सोपानों में विभाजित करके अध्ययन किया जाता है 

( 1 ) शिक्षण का नियोजन ( Planning of Teaching ) - नियोजन शिक्षण अधिगम व्यवस्था का एक महत्वपूर्ण अंग है । इसके अन्तर्गत शिक्षक पाठ्यवस्तु का विश्लषण साखन क उद्देश्यों को निर्धारित एवं परिभाषित करना तथा इन उद्देश्यों को स्पष्ट शब्दा में लिखने की क्रियाएँ आती है । 

( 2 ) शिक्षण की व्यवस्था ( Organization of Teaching ) - शिक्षक सीखने के अनुभवों के लिए शिक्षण विधियों , प्रविधियों , युक्तियों एवं सहायक सामग्री का चयन करता है । 

( 3 ) शिक्षण का अग्रसरण ( Leading of Teaching ) - इसमें शिक्षण प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए विभिन्न अभिप्रेरणा ( Motivation ) की प्रविधियों का चयन किया जाता है । 

( 4 ) शिक्षण का नियन्त्रण ( Controlling of Teaching ) - इसमें शिक्षण का मूल्यांकन किया जाता है । शिक्षण तकनीकी की अवधारणाएँ ( Assumptions of Teaching Technology ) शिक्षण तकनीकी निम्न अवधारणाओं पर आधारित है 

( 1 ) शिक्षण कला ( Art ) के साथ एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है । 
( 2 ) इस प्रक्रिया के दो तत्व पाठ्यवस्तु ( Content ) तथा सम्प्रेषण ( Communi cation ) है । 
( 3 ) सफल शिक्षण शिक्षक व छात्र के मध्य अन्तःप्रक्रिया द्वारा सम्भव होता है । इसमें शिक्षा व छात्र दोनों ही सक्रिय रहते हैं । 
( 4 ) शिक्षण की क्रियाओं द्वारा सीखने के उद्देश्य की प्राप्ति की जा सकती है । 
( 5 ) मिश्रण व अधिगम में घनिष्ठ सम्बन्ध स्थापित किया जा सकता है । 
( 6 ) शिक्षण की क्रियाओं में विकास व सुधार किया जा सकता है । 
( 7 ) शिक्षक एक व्यवस्थापक अथवा प्रबन्धक के रूप में कार्य करता है । 

शिक्षण तकनीकी की विशेषताएँ ( Characteristies of Teaching Technology ) 

( 1 ) शिक्षण तकनीकी सीखने के स्परूप को वैज्ञानिक , सामाजिक तथा मनोवैज्ञानिक मानती है । 
( 2 ) शिक्षण तकनीकी का सम्बन्ध अदा ( Input ) , प्रक्रिया ( Process ) तथा प्रदा ( Output ) तीनों पक्षों से होता है । 
( 3 ) शिक्षण तकनीकी में ज्ञानात्मक , भावात्मक तथा क्रियात्मक तीनों उद्देश्यों की प्राप्ति की जाती है । होती है । 
( 4 ) शिक्षण तकनीकी में स्मृति , बोध तथा चिन्तन स्तर तक के शिक्षण की व्यवस्था दोनों तत्वों में समन्वय स्थापित करती है । 
( 5 ) शिक्षण तकनीकी पाठ्यवस्तु ( Content ) तथा सम्प्रेषण ( Communication ) 
( 6 ) शिक्षण तकनीकी में विभिन्न शिक्षण सिद्धान्तों के प्रतिपादन पर बल दिया जाता है । 
( 7 ) शिक्षण तकनीकी के ज्ञान से छात्राध्यापक ( Pupil - teacher ) तथा सेवारत अध्यापक ( Inservice - teachers ) अपने शिक्षण में सुधार एवं विकास कर सकते हैं ।

"शिक्षण तकनीकी , अनुदेशन तकनीकी तथा व्यवहार तकनीकी का पारस्परिक अन्तर एवं तुलनात्मक विवेचन "
 शिक्षक के लिए शिक्षण तकनीकी की उपयोगिता ( Utility of Teaching Technology for a Teacher ) 
( 1 ) शिक्षण तकनीकी के ज्ञान के फलस्वरूप शिक्षक मनोवैज्ञानिक , सामाजिक तथा वैज्ञानिकों सिद्धान्तों तथा अधिनियमों का शिक्षण प्रक्रिया में प्रयोग करना सीख जाते है ।
( 2 ) शिक्षण तकनीकी शिक्षण को एक प्रबन्धक के रूप में मानती है । इस प्रकार शिक्षक अपने चार प्रमुख कार्यों नियोजन , व्यवस्था , अग्रसरण तथा नियन्त्रण को भली - भाँति समझ लेता है और अपने शिक्षण को प्रभावशाली बना सकता है । 
( 3 ) शिक्षक की कार्य कुशलता ( Efficiency ) में वृद्धि होती है । 
( 4 ) शिक्षक का कार्य सरल तथा उसके कार्य स्तर का विकास होता है । 
( 5 ) शिक्षक के शिक्षण में गुणात्मक ( Qualitative ) सुधार सम्भव होगा । 
( 6 ) शिक्षक स्वयं निर्देशन प्राप्त कर सकता है । 
( 7 ) शिक्षण तकनीकी शिक्षक के बौद्धिक विकास को प्रेरित कर सकती है । 
( 8 ) शिक्षक इसके प्रयोग से विद्यालय में उपलब्ध साधनों का अधिकतम उपयोग कर सकता है । 
( 9 ) शिक्षण तकनीकी के माध्यम से शिक्षक , शिक्षण के ज्ञानात्मक , भावात्मक तथा क्रियात्मक उद्देश्यों की प्राप्ति कर सकता है । 
( 10 ) शिक्षक स्मृति ( Memory ) , बोध ( Understanding ) तथा चिन्तन स्तर ( Reflective Level ) का शिक्षण कर सकता है । 
( 11 ) शिक्षक सत्रों के व्यवहार में अपेक्षित व्यवहार परिवर्तन लाने में समर्थ हो सकता है । 
( 12 ) शिक्षक शिक्षण के स्वरूप को सरलतापूर्वक समझ सकता है और शिक्षण के सिद्धान्त ( Theories of Teaching ) तथा नए शिक्षण प्रतिमान ( Teaching Models ) विकसित कर सकता है । 
( 13 ) शिक्षण तकनीकी के ज्ञान से शिक्षक पाठ्यवस्तु को विभिन्न उपकरणों व विधियों तथा प्रविधियों के माध्यम से प्रभावशाली बना सकता है और शिक्षा के स्तर को ऊँचा उठा सकता है । 

शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में अनुदेशन के प्रारूपों का विशेष महत्व है । अनुदेशन के प्रारूप को समझने से पूर्व हमें अनुदेशन तथा प्रारूप को समझना आवश्यक है । 

अनुदेशन का अर्थ ( Meaning of Instruction ) - सामान्यतया अनुदेशन का अर्थ छात्रों को सूचना प्रदान करना होता है । यह कार्य शिक्षक अथवा किसी अन्य व्यक्ति द्वारा सम्पन्न किया जा सकता है । इस प्रकार कहा जा सकता है कि शिक्षण में अनुदेशन सम्मिलित है । एम . स्टीफन कोरे के अनुसार , " अनदेशन वह प्रक्रिया है

 जिसमें व्यक्ति के वातावरण को इस प्रकार स्थापित किया जाता है जिससे वह सीख सके अथवा वह विशिष्ट परिस्थितियों व दशाओं में विशिष्ट प्रकार से व्यवहार कर सके । 
Trnstruction is a process whereby the environment of an individuat is deliberately manipulated to enable him to learn or to emit or engage in specified behaviours under specified conditions and responses to specified situations . " - M . Stephen Corey . 

प्रारूप का अर्थ ( Meaning of Design ) - प्रारूप विधि वैज्ञानिक रीति से जाँच किए गए सिद्धान्तों पर आधारित है । शोधकर्ता किसी भी शोध कार्य को कुछ धारणाओं ( Assumptions ) के आधार पर प्रारम्भ करता है और परिकल्पनाओं ( Hypotheses ) को वैज्ञानिक रीति से जाँच करके निष्कर्ष निकलता है । प्रत्येक शोधकार्य का एक प्रारूप होता है जो कुछ सिद्धान्तों ( Principles ) पर कार्य करता है । प्रारूप के द्वारा ही हम प्रतिमान ( Model ) विकसित करते हैं और अन्त में उनको सिद्धान्तों ( Theories ) के रूप में स्थापित करते हैं ।

 प्रारूप के अंग ( Design Components ) - ग्लेशर महोदय ने प्रत्येक अनुदेशन प्रारूप के चार अंग बताए हैं । प्रारूप बनाते समय इन अंगों पर ध्यान देना चाहिए । 

( 1 ) पाठ्यवस्तु ( Content ) - यह प्रारूप का मुख्य केन्द्र बिन्दु होता है । 
( 2 ) विश्लेषण अथवा निदान ( Analysis or Diagnosis ) - इसमें छात्रों को क्रियाओं का विश्लेषण किया जाता है तथा उनके व्यवहारों का पता लगाया जाता है जिससे उपयुक्त शैक्षिक वातावरण स्थापित किया जा सके । 
( 3 ) प्रक्रिया ( Process ) - प्रक्रिया का सम्बन्ध विधियों , प्रविधियों , युक्तियों तथा नौतियों एवं अन्य सहायक सामग्री के चयन से होता है । 
( 4 ) मूल्यांकन ( Evaluation ) - इसमें सीखने की उपलब्धियों का मूल्यांकन किया जाता है । 
 इस प्रकार प्रारूप को हम एक प्रक्रिया अथवा उपलब्धि मात्र कह सकते है ।

 अनुदेशन के प्रारूप की परिभाषा ( Definition of Instructional Design ) 
अनुदेशन के प्रारूप का अर्थ आधुनिक शिक्षण विधियों , युक्तियों तथा कौशलों का शिक्षण में प्रयोग करने से होता है । ग्लेशर ने बताया कि अनुदेशन के प्रारूप की सहायता से व्यावसायिक क्षमताओं का विकास किया जाता है । शिक्षण के अन्तर्गत अनुदेशन के प्रारूप का महत्वपूर्ण स्थान है । पहले से ही शिक्षण सीखने के सिद्धान्तों पर आधारित रहा है । इससे अपेक्षित उपलब्धि नहीं हो पा रही थी । अत : छात्रों के व्यवहार में अपेक्षित परिवर्तन लाने के लिए सीखने के सिद्धान्तों के साथ - साथ शिक्षण की परिस्थितियों , शिक्षा उपकरणों तथा नए - नए उपागों ( Approaches ) को अधिक महत्व दिया जाने लगा है । इन्हीं सबके सम्मिलित रूप को अनुदेशन की रूपरेखा अथवा प्रारूप ( Instructional ) कहते हैं ।
( 1 ) एम . डी . अनविन के अनुसार - " अनुदेशन प्रारूप का सम्बन्ध आधुनिक कौशल तथा प्रविधियों का शिक्षण तथा प्रशिक्षण की आवश्यकताओं के लिए प्रयोग है । इसमें विभिन्न विधियों , प्रविधियों , दुव्य - श्रव्य सामग्री तथा नीतियों , युक्तियों के द्वारा शिक्षण वातावरण को नियन्त्रित करके सीखने अथवा अधिगम को सुगम बनाया जाता है।
" Instructional disign is concerned with the application of modern skills and techniques to requirement of education and training . This includes the facilitation of learning by manipulation of media and methods and the control of emvironment in so far as this reflects on learning . " M . Derick Unwin .

 इस परिभाषा से यह स्पष्ट है कि अनुदेशन प्रारूप का प्रत्यक्ष सम्बन्ध कौशल द्वारा सीखने के कार्य को सुगम तथा प्रभावशाली बनाना है । इससे शिक्षण तथा प्रशिक्षण दोनों ही प्रभावित होती है । 

( 2 ) एम . डेविड मेरिल के अनुसार - " अनुदेशन प्रारूप विशिष्ट वातावरण सम्बन्धी परिस्थितियाँ निश्चित एवं उत्पन्न करने की प्रक्रिया है जिससे सत्र में ऐसी अन्त : क्रिया होती है कि उसके व्यवहार में एक विशिष्ट प्रकार का परिवर्तन सम्भव होता है । "
 " Instructional design is the process of specifying and producing particular ervironmental situations which cause the learner to interact in such a way that a specified change occurs in his behaviour . " - M . David Merrill .

 अनुदेशन के प्रारूप की आवश्यकता ( Need of Instructional Design )
एक शिक्षक को कक्षा शिक्षण में प्रभावशाली बनाने के लिए अनुदेशन के प्रारूप की आवश्यकता होती है । अनुदेशन के प्रारूप को बनाते समय वह कुछ महत्वपूर्ण तथ्यों को ध्यान में रखता है तभी वह अपने शिक्षण को प्रभावशाली सरल एवं वस्तुनिष्ठ ढंग प्रदान कर सकता है । शिक्षक के लिए अनुदेशन के प्रारूप की आवश्यकता निम्नलिखित कारणों से है 
( 1 ) शिक्षक विशिष्ट शिक्षण वातावरण व परिस्थितियाँ उत्पन्न कर सकता है । 
( 2 ) शिक्षक पाठ्यवस्तु का विश्लेषण स्पष्ट रूप से कर लेता है । 
( 3 ) शिक्षक छात्रों की प्रकृति उनके पूर्व ज्ञान एवं कौशल का विश्लेषण सरलतापूर्वक कर लेता है । 
( 4 ) शिक्षक सीखने के उद्देश्यों को ध्यान में रखकर उद्दीपन प्रस्तुत कर छात्रों को सही अनुक्रिया के लिए प्रेरित कर सकता है । 
( 5 ) छात्रों में विभिन्न क्षमताओं तथा कौशलों का विकास करने के लिए विभिन्न शिक्षण - विधियों , प्रविधियों , युक्तियों तथा नीतियों एवं अन्य शिक्षण सामग्री का चयन तथा पुनर्बलन ( Reinforcement ) की प्रविधि का चयन कर लेता है । इससे व्यवहार में अपेक्षित परिवर्तन कर सकता है । 
( 6 ) छात्रों की क्षमताओं तथा कुशलताओं के विकास में सफलता का पर के लिए मूल्यांकन करता है । 
( 7 ) शिक्षण अधिगम को सरल व सुगम बनाने के लिए अनुदेशन प्रास आवश्यकता होती है । 
( 8 ) शिक्षक की व्यावसायिक क्षमताओं का विकास किया जा सकता है ।
( 9 ) छात्रों की वांछित उपलब्धि ( Achievement ) में यह प्रारूप सहायक होता है । 
( 10 ) छाप्राध्यापक ( Pupil - teacher ) को अपने पाठ के नियोजन । अग्रसरण तथा नियन्त्रण में सहायता मिलती है । इससे उसका शिक्षण वैज्ञानिक केन्द्रित तथा सुसम्बद्ध हो सकेगा । इससे शिक्षक व छात्रों के व्यवहार में अपेक्षित परिक हो सकेगा तथा शिक्षण अधिगम उद्देश्यों की प्राप्ति हो सकेगी । 

अनुदेशन के प्रमुख प्रारूप ( Main Instructional Designs ) 
अनुदेशन के प्रमुख प्रारूप अथवा नवीन प्रवृत्तियाँ निम्नलिखित हैं 
( 1 ) प्रशिक्षण मनोविज्ञान ( Training Psychology ) 
( 2 ) सम्प्रेषण मनोविज्ञान ( Cybernetic Psychology ) 
( 3 ) प्रणाली विश्लेषण ( System Analysis ) 

( 1 ) प्रशिक्षण मनोविज्ञान ( Training Psychology ) - प्रशिक्षण मनोविज्ञान , शिक्षण व सीखने की एक प्रमुख विधि है । इसका जन्म प्रशिक्षण की जटिल समस्याओं तथा परिस्थितियों पर किए गए शोध कार्यों के परिणामस्वरूप हुआ । वास्तव में प्रशिक्षण मनोविज्ञान का उदय व्यक्तियों को प्रशिक्षित करने के उद्देश्य से किया गया ।

 प्रशिक्षण मनोविज्ञान का अर्थ एवं परिभाषा ( Meaning and Definition of Training Psychology ) 
प्रशिक्षण मनोविज्ञान शिक्षण - अधियम के लिए एक महत्वपूर्ण उपागम ( Approach ) | है । यह एक क्रिया केन्द्रित विधि हैं । इससे मानव अथवा छात्र के विभिन्न अंगों का विकास किया जा सकता है । इसमें उन क्रियाओं को विशेष महत्व दिया जाता है जिनका । छात्र सीखते समय करता है । शिक्षण - अधिगम की समस्याओं का निराकरण अधिगम सिद्धान्तों से नहीं हो सका है । इसलिए शिक्षण ( Teaching ) की प्रक्रियाओं में सुधार करके ही अधिगम में सुधार एवं विकास किया जा सकता है । 

प्रशिक्षण मनोविज्ञान की परिभाषा ( Definition ) - " प्रशिक्षण मनोविज्ञान का विश्लेषण व परस्पर सम्बद्ध प्रशिक्षण अंगों के प्रारूप पर ध्यान केन्द्रित करता । 
  
 प्रशिक्षण मनोविज्ञान का उद्देश्य ( Objectives of Training Psychology )

प्रशिक्षण मनोविज्ञान इस तथ्य पर बल देता है कि प्रशिक्षण के समस्त कार्यों को चार भागों में विभाजित करना चाहिए । दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि प्रशिक्षण मनोविज्ञान के निम्न चार उद्देश्य है 
( 1 ) प्रशिक्षण सम्बन्धी कार्यों की रूपरेखा तैयार करना । 
( 2 ) कार्य विश्लेषण ( Task Analysis ) करना । 
( 3 ) कार्य के तत्वों को क्रम ( Sequence ) में विभाजित किया जाए जिससे अपेक्षित उद्देश्य प्राप्त हो जाए । 
( 4 ) अन्त में उपलब्धि ( Achievement ) का पता लगाना ।
 इस उपागम में कार्य विश्लेषण ( Task Analysis ) पर विशेष बल दिया जाता है ।

 प्रशिक्षण मनोविज्ञान की विशेषताएँ ( Characteristics of Training Psychology )

प्रशिक्षण मनोविज्ञान की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं

( 1 ) प्रशिक्षण मनोविज्ञान शिक्षण व अधिगम की एक महत्वपूर्ण विधि है । 
( 2 ) प्रशिक्षण मनोविज्ञान कार्य - विश्लेषण पर विशेष बल देता है । 
( 3 ) यह उपागम प्रशिक्षण में गुणात्मक सुधार लाने का एक महत्वपूर्ण साधन है । 
( 4 ) इसमें प्रशिक्षण तथा सीखने की शुद्धता पर बल दिया जाता है । 
( 5 ) यह मनोविज्ञान कार्यों तथा उपलब्धि उद्देश्यों की रूपरेखा पर केन्द्रित है । 
( 6 ) इससे शिक्षण अधिक लक्ष्य केन्द्रित तथा सुसम्बद्ध बनता है ।
 प्रशिक्षण मनोविज्ञान पर आधारित शैक्षिक प्रतिमान ( Educational Models Based on Training Psychology ) 
प्रशिक्षण मनोविज्ञान पर आधारित कुछ शिक्षण प्रतिमान निम्नलिखित हैं 
( 1 ) जार्जिया प्रतिमान ( The Georgia Model ) - यह प्रतिमान प्राथमिक शिक्षकों के प्रशिक्षण हेतु बनाया गया है । इसमें निम्नलिखित सोपान होते हैं । 
( I  ) प्राथमिक स्कूल के लक्ष्यों ( Goals ) का निर्धारण । यह कार्य समाज की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर किया जाता है ।
 ( ii ) उद्देश्यों ( Objectives ) का निर्धारण करना । उद्देश्यों का निर्धारण प्रशिक्षण संस्थाओं की सिफारिशों तथा शैक्षिक तकनीकी के ज्ञान पर आधारित होता है । 
( iii ) छात्र सीखने के व्यवहारों तथा शिक्षक के शिक्षण व्यवहारों का निर्धारण उपर्युक्त ( I ) व ( ii ) पर आधारित ] । 
( iv ) शिक्षक व्यवहार पर आधारित कार्य ( Job ) विश्लेषण । हम इसके आधार र पदों का क्रम निम्न प्रकार दे सकते हैं

 लक्ष्य उद्देश्य छात्र - व्यवहार शिक्षक - व्यवहार

( 2 ) शैक्षणिक निर्देश ( Instructional Guides ) - जार्जिया के शिक्षकों प्रशिक्षण के लक्ष्यों के आधार पर कुशलता अथवा दक्षता निर्देश ( Proficiency modules ) के प्रात्यय का विकास किया । शैक्षणिक निर्देश शिक्षक के कार्य एवं उपलब्धि , पत्रों के सीखने के कार्यों का वर्णन तथा क्रमों का विशिष्टीकरण कर अत्र विशेष के व्यवहारों को निर्देशन प्रदान करती है । दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि शैक्षणिक निर्देश शिक्षक के कार्यों की उपलब्धि एवं पात्रों के सीखने के कार्यक्रम को एक सफल कुंजी होती है । शैक्षणिक निर्देश एक . प्रकाशित सामनी होती है ।

( 3 )  विसकोनसिन विश्वविद्यालय प्रतिमान ( Wisconsin University Model ) इस प्रतिमान का प्रयोग भी प्राथमिक शिक्षकों की उपलभि एवं निर्देश के विकास के लिए किया जाता है । यह सीखने की क्रिया का एक क्रम है । जिसका सम्बन्ध कार्य विश्लेषण से है । यह प्रतिमान भी जार्जिया प्रतिमान के अनुरूप ही है ।

प्रशिक्षण मनोविज्ञान का शिक्षा में प्रयोग 
जैसा कि ऊपर बताया जा चुका है कि प्रशिक्षण मनोविज्ञान शिक्षण और सीखने की एक महत्वपूर्ण विधि है इसलिए इसका प्रयोग शिक्षकों के प्रशिक्षण हेतु सरलतापूर्वक किया जा सकता है । वास्तव में देखा जाए तो प्रशिक्षण मनोविज्ञान का विशेष महत्व अध्यापक शिक्षा ( Teacher Education ) के क्षेत्र में ही है । 

इसका एक महत्वपूर्ण कारण यह है कि आधुनिक प्रशिक्षण कार्य डांवाडोल एवं अनिश्चित अवस्था में है । आजकल बहुत - से प्रशिक्षण विभागों के प्राध्यापक यह नहीं जानते कि छात्र अध्यापकों को क्या सिखाना है , कैसे सिखाना है तथा उनमें किन - किन कुशलताओं एवं दक्षताओं का विकास करना है । इसलिए यह आवश्यक है कि प्रशिक्षण विभागों के अध्यापक , प्रशिक्षण मनोविज्ञान ( Training Psychology ) का अध्ययन करें जिससे ये शिक्षण के उद्देश्यों को निर्धारित करने , कार्य का विश्लेषण करने एवं कार्य विश्लेषण के सिद्धान्त के आधार पर पाठ्यक्रम के विकास करने के सिद्धान्तों को समझ किया जा सकता है । सकें । इस उपागम का उपयोग दैनिक पाठ योजनाओं को विकसित करने के लिए भी किया जाता है ।

सम्प्रेषण मनोविज्ञान ( Cybernetic Psychology ) 

( 1 ) अर्थ ( Meaning ) - काइबरनेटिक ग्रीक भाषा के ' काइबरनेट ' ( Kybernet ) शब्द से लिया गया है । जिसका अर्थ गवर्नर पाइलेट से है जिसका कार्य शासन करना अथवा आगे बढ़ना है । ( सम्प्रेषण संचार एवं नियन्त्रण करने की प्रणाली अथवा विज्ञान है । ) 
Pybernetic is a science or system of communication and control . 
" संचार किसी भी क्रम का एक ढाँचा होता है और वह सूचना की मात्रा का बोध करता है । यह एक गतिशील अवस्था होती है ।

 नियन्त्रण ( Control ) से यहाँ पर तात्पर्य सम्बन्धीकरण ( Connectiveness ) तथा नियमीकरण ( Regulation ) से है । व्यवस्था जब गतिशील अवस्था में होती है । तब यह अनन्तकाल तक एक अवस्था से दूसरी अवस्था में गुजरती है ।

 व्यवस्था अथवा प्रणाली ( System ) - संचार तथा नियन्त्रण के सभी अंगों का कुल योग होता है जो स्वतन्त्र एवं कार्य मिलकर कार्य करती है ।
 किसी भी व्यवस्था का तन्तुजाल ( Net work ) ही संचार की ओर संकेत करता है । सम्प्रेषण की संरचना तथा सूचना की प्रकृति व्यवस्था के तत्वों के माध्यम से ही आगे बढ़ती है ।
 सम्प्रेषण मनोविज्ञान प्रशिक्षण मनोविज्ञान का ही एक अंग है जो व्यक्ति को एक मशीन के रूप में मानता है । इसके साथ ही यह इस बात पर भी बल देता है कि प्रत्येक व्यक्ति अपने व्यवहार को नियन्त्रित और परिवर्तित करने के लिए इन्द्रियों द्वारा पृष्ठ पोषण ( Feed Back ) की प्रक्रिया को प्रयोग में लाता है । इस प्रकार यह मनोविज्ञान व्यक्ति को एक पृष्ठ पोषण प्रणाली के रूप में मानता है जो अपनी क्रियाओं को स्वतः उत्पन्न एवं नियन्त्रित करता है । इस प्रकार सम्प्रेषण मनोविज्ञान का सम्बन्ध व्यक्ति के व्यवहार को संचारित एवं नियन्त्रित करने से होता है । इस प्रकार इसे पृष्ठ पोषण मनोविज्ञान भी कहा जाता है ।

" संचार नियन्त्रण क्रिया सूचनाओं का एक मजबूत ताना - बाना है । " " Aghernatic system is a lightly knit net work of information . " 

काइबरनेटिक प्रणाली के आधारभूत तत्व ( Basic Elements of Cybernetic System ) 

सम्प्रेषण अथवा काइबरनेटिक प्रणाली के भी अन्य प्रणालियों के समान तीन मुख्य तत्व होते है 

( 1 ) अदा ( Input ) - यह वह इकाई है जिसके अन्तर्गत सभी सूचनाएँ तथा सामग्री सम्मिलित की जाती है जो उस प्रणाली की प्रक्रिया में प्रवेश के लिए आवश्यक होती है । 
( 2 ) प्रक्रिया ( Process ) - यह वह इकाई होती है जिसमें सूचनाओं तथा सामग्री पर सभी क्रियाएँ सम्पादित की जाती है । इस प्रकार सूचना तथा सामग्री में सुधार अथवा संशोधन किया जाता है । 
( 3 ) प्रदा ( Output ) - इससे उत्पादन अथवा उपलब्धि ( Output ) का बोध होता है ।

 सम्प्रेषण प्रणाली के प्रकार ( Types of Cybernetic System ) 

सम्प्रेषण प्रणाली के दो प्रकार होते हैं 

( 1 ) खुली कड़ी प्रणाली ( Open Loop System ) - खुली कड़ी प्रणाली में उपलब्धि या प्रदा ( Output ) का भविष्य की उपलब्धि अथवा प्रयोग पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है । इस प्रकार प्रदा ( Output ) पुनः प्रणाली में नहीं आती है ।
 in the open loop ystem the output of the system has no effect on future input nor on subsequent output . "

 ( 2 ) बन्द कड़ी प्रणाली ( Closed Loop System ) - बन्द कड़ा प्रणाली में पर या उपलब्धि प्रणाली में पुन : लौट आता है । उसका एक अंग बन जाता है और भवि की उपलब्धि को प्रभावित करता है । बन्द कड़ी प्रणाली को अक्सर सम्प्रेषण मनोविज्ञान ( Cybernetic system ) कहा जाता है ।
 " In the closed loop system the outpur is returned to the system and करते . subsequently affects future output of the system closed loopsistems are offent वां referred to arobernetic systems . "

 एम . डेविड मेरिल के अनुसार - " जब किसी प्रणाली की उपलब्धि प्रदा ( Outpur ) हे सम अदा ( Input ) के रूप में लौट कर आती है तब वह भविष्य की उपलब्धि को नियन्त्रित श्य करती है तो वह पृष्ठ पोषण ( Feed back ) कहलाती है । 
 " The output from a system which is returned as input to control future output is called feed back " - M . David Murrill

 अतः सम्प्रेषण मनोविज्ञान को पृष्ठ पोषण प्रणाली ( Feed Back System ) के नाम से भी पुकारते हैं । 

जब कोई छात्र उत्तर देता है तो उसमें दो प्रकार के उद्दीपक ( Stimulus ) उत्पन्न होते हैं । सर्वप्रथम छात्र अनुभव करता है . सनता है अथवा तथ्यों की जानकारी प्राप्त करता है । इस प्रकार उद्दीपक के प्रयोग का परिणाम एवं आधार उत्तर होता है । इसको हम पृष्ठ पोषण के नाम से पुकारते हैं । प्रयुक्त उद्दीपक जो कि छात्र को वातावरण । में परिवर्तन उत्पन्न करने की प्रकृति का बोध करता है । परिणाम का ज्ञान ( Knowledge of Result ) कहलाता है । 
" The stimulus input which indicates to the learner the nature of the 3 change produced in the environment is called knowledge of results . " 

यही दोनों ( Sensory inputs ) छात्र को पृष्ठ पोषण ( Feed Back ) प्रदान करते हैं । इससे छात्र को बाद के अन्य उत्तरों के संशोधन एवं परिवर्तन में सहायता मिलती है । इस प्रकार के उत्तर संशोधन की प्रक्रिया को सौखने ( Learning ) के नाम से पुकारते हैं ।

 अनुदेशन एक सम्प्रेषण प्रणाली ( Instruction as a Cybernetic System ) 
अनुदेशन को एक सम्प्रेषण प्रणाली समझा जा सकता है । सम्प्रेषण प्रणाली में । अनुदेशन प्रारूप निम्न प्रकार होता है 
( 1 ) अदा ( Input ) , ( 2 ) प्रदा ( Output ) , ( 3 ) प्रक्रिया ( Frocess ) । 
( 1 ) अदा ( Inputy ) - इस क्रिया में प्रथम आवश्यक अदा ( Input ) पाठ्यवस्तु ( Content ) या पाठ्यवस्तु का प्रस्तुतीकरण है जैसे पुस्तकालय सामग्री या पुस्तकालय निवेश ( Input ) जिसमें लिखित - मुद्रित सामग्री के साथ - साथ दृश्य - श्रव्य सामग्री . अभिक्रमित अनुदेशन ( Programmed instruction ) , आलेख ( Diagrams ) तथा चार्ट ( Charts ) आदि आते हैं ।
दूसरा महत्वपूर्ण तत्व अदा लक्ष्यों ( Objectives ) का होता है जिन्हें यह प्रणाली प्राप्त करना चाहती है , तीसरा अदा या निवेश है छात्रों की निजी विशेषताओं के अनुसार निर्देश देना । चौथा निवेश है छात्रों के उत्तर प्रयुक्त पृष्ठ पोषण ( Feed Back ) का कार्य करते हैं । यह इसलिए आवश्यक है ताकि उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए उनके व्यवहार में वांछित परिवर्तन सम्भव हो सके ।

( 2 ) प्रदा ( Output ) - इस अनुदेशनात्मक प्रणाली में महत्वपूर्ण प्रदा है । छात्र के सम्मुख प्रदर्शन ( Display ) करना जिसे व्याख्यान ( Lecture ) या वर्णन ( Explanation ) , दृश्य सामग्री ( Visual material ) , लिखित ( Written ) सामग्री आदि । इनके प्रदर्शन का उद्देश्य यह होता है कि उद्दीपक परिस्थिति उत्पन्न या प्रदर्शित करके छात्रों से वांछित अनुक्रिया ( Response ) प्राप्त की जा सके । 
प्रदा की दूसरी अवस्था में छात्रों के सम्मुख परिणाम का ज्ञान ( Knowledge of Results ) प्रस्तुत किए जाते हैं । 

( 3 ) प्रक्रिया ( Process ) - प्रक्रिया का अर्थ उस तन्त्र ( Mechanism ) से है जो तथ्यों को किसी रेखीय ढंग ( Linear fashion ) से एक के बाद एक प्रदर्शित करता है । इस प्रणाली के प्रमुख उदाहरण चलचित्र ( Movie ) तथा फिल्म स्ट्रिप्स ( Filmstrips ) है । 

सम्प्रेषण मनोविज्ञान का शिक्षा में प्रयोग ( Implications of Cyhernetics in Education ) 

( 1 ) सम्प्रेषण मनोविज्ञान के कुछ प्रत्पयों ( Concepts ) का उपयोग शिक्षण अधिगम ( Teaching - learning ) के लिए किया जा सकता है । यदि इन प्रत्पयों तथा सिद्धान्तों ( Principles ) का प्रयोग समूह तथा व्यक्तिगत शिक्षण दोनों में किया जाए तो छात्रों का अधिगम अधिक स्थाई तथा कार्यात्मक ( Functional ) बनाया जा सकता है । 
( 2 ) सम्प्रेषण उपागम से शिक्षक अधिगम के नियन्त्रण की तकनीकी एवं प्रविधियों को समझ सकता है और अपने शिक्षण को अधिक व्यवस्थित एवं प्रभावशाली बना सकता है । 
( 3 ) सम्प्रेषण उपागम का महत्वपूर्ण प्रत्पय पृष्ठपोषण ( Feed back ) है । यह छात्र के अधिगम को नियन्त्रित करती है । इससे अधिगम में वृद्धि होती है । 
( 4 ) सम्प्रेषण मनोविज्ञान का प्रत्यय स्वशिक्षा ( Self - education ) का आधार है । इसके सिद्धान्तों तथा प्रत्पयों से ऐसे शिक्षण की व्यवस्था की जाती है जिससे सभी छात्रों को अपने ढंग से सीखने का अवसर मिलता है । रेखीय अभिक्रमिक अध्ययन Linear programmed learning ) इसका सबसे उपयुक्त उदाहरण है । इसमें छात्र अपने उत्तर की सही उत्तर से जाँच अथवा मिलान करता चलता है । सही उत्तर अथवा अनुक्रिया सही होने पर छात्र को पृष्ठ पोषण प्रदान करती है तथा उसका मार्ग दर्शन करती है । और छात्र को निर्देशित करती है । इस प्रकार पृष्ठ पोषण छात्र के आगे के व्यवहार को नियन्त्रित करती है । इस प्रकार मानवीय विकास तथा उन्नति में पृष्ठपोषण एक महत्वपूर्ण सिद्धान्त है ।
( 5 ) सम्प्रेषण का एक दूसरा बड़ा सिद्धान्त समायोजन और सम्बद्धता ( Cohesivensess and connectiveness ) का है । यह सिद्धान्त सम्प्रेषण को एक यन्त्र ( Machine ) मानता है । जो अधिक तत्वों से मिलकर बना है । प्रत्येक तत्व एक - दूसरे के सहयोग से कार्य करता है । कक्षा शिक्षण , विद्यालय निर्देश , अधिक्रम आदि को गतिशील यंत्र कहा जा सकता है । यह सिद्धान्त इस बात पर बल देता है कि अधिगम शक्तियों के संगठन , कारकों तथा दशाओं की परस्पर अन्तः क्रियाओं का परिणाम है । यह हमारे सम्मुख शिक्षण के सार्वभौमिक तथा सम्पूर्ण दृष्टिकोण को प्रस्तुत करता है तथा शिक्षण का वैज्ञानिक रीति से विश्लेषण करता है । 
( 6 ) पृष्ठपोषण को सहायता से छात्राध्यापकों ( Pupil - teachers ) में सूक्ष्म शिक्षण ( Micro - teaching ) का अनुकरणीय शिक्षण ( Simulated Teaching ) द्वारा वांछित शिक्षण कौशल का विकास किया जा सकता है । इस प्रकार पृष्ठ पोषण प्रविधियों की सहायता से प्रशिक्षण संस्थाएँ योग्य एवं प्रभावशाली शिक्षक तैयार कर सकती है ।
( 7 ) अदा , प्रदा तथा प्रक्रिया के सिद्धान्त शिक्षक को शिक्षण प्रक्रिया का वैज्ञानिक ढंग से विश्लेषण करने में सहायक होते हैं । अधिगम का संगठन उसका प्रभावशाली होना तथा यथार्थवादी शिक्षण का प्रारूप उसका नियोजन तथा सार्थक होना तभी सम्प्रेषण उपागम का परिणाम है । 

प्रणाली विश्लेषण ( System Analysis
प्रणाली का अर्थ ( Meaning of System ) - प्रणाली शब्द का अर्थ यहाँ पर विश्लेषण तथा विकास से है । सामान्यतः प्रणाली का तात्पर्य क्रमबद्ध सम्पूर्ण के संगठन से माना जाता है । जिसमें प्रत्येक अंग का दूसरे अंग से सम्बन्ध स्पष्ट होता है । इससे सम्पूर्ण का निर्माण होता है । डैरिक अनविन के अनुसार , " एक प्रणाली विभिन्न भागों अथवा अंशों का योग है जो आधारित आवश्यकताओं पर अभीष्ट फल की उपलब्धि के लिए स्वतन्त्र तथा साथ मिलकर कार्य करते हैं । 
" Asystem is the sum total of parts , working independently and working together to achieve required results of outcomes based on needs . " . - M . Derick Unwin . 
इस आधार पर विद्यालय , कक्षा , शैक्षिक कार्यक्रम या शैक्षिक प्रक्रिया एक प्रणाली मानी जाती है । यदि किसी तथ्य का कोई उद्देश्य है , कोई संगठन है तो वह एक प्रणाली अथवा व्यवस्था मानी जाती है । व्यवस्था का एक नियन्त्रण केन्द्र ( Control Centre ) होता है जो सूचनाओं के आधार पर व्यवहार का निर्णय लेता है , उदाहरण के लिए आँख , मस्तिष्क , हाथ ( Eye - Brain - Hand ) प्रणाली में मस्तिष्क निर्णय केन्द्र होता है । यह सभी प्रकार के ऐच्छिक व्यवहार का निर्धारण करता है । शैक्षिक व्यवस्था में यह नियन्त्रण केन्द्र शिक्षक होता है ।

प्रणाली विश्लेषण का अर्थ ( Meaning of System Analysis ) 
प्रणाली विश्लेषण अथवा उपागम शब्द अनेक सन्दर्भो में प्रयुक्त किया जाता है । अधिकांश विद्वान यह मानते है कि इस प्रणाली में समस्या समाधान ( Problem Solving ) निहित होता है ।
 " सामान्य अर्थों में प्रणाली उपागम एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा किसी संगठन की आवश्यकताओं की पहचान की जाती है , समस्या का चयन किया जाता है । समस्या समाधान की आवश्यकताओं को पहचाना जाता है । अनेक वैकल्पिक तरीकों में से परिस्थितियों का चयन किया जाता है , साधन प्राप्त किए जाते हैं तथा उनको उपयोग में लाया जाता है । परिणामों का मूल्यांकन किया जाता है तथा प्रणाली में आवश्यक संशोधन किए जाते हैं जिससे कि संगठन या प्रणाली की आवश्यकता पूरी हो सके । "
 " A system approach in general , is a process by which needs of ary organization are identified . Problems selected , requirements for problem solution are identified , solutions are chosen from alternatives , methods and means are obtained and implemented , results are evaluated and required revisions to all or part of the system are made so that the needs are eliminated . " 
वास्तव में प्रणाली विश्लेषण तो एक प्रकार से तार्किक ( Logical ) समाधान प्रक्रिया है जो प्रमुख शिक्षा समस्याओं की पहचान तथा समाधान करती है । यह एक उपकरण ( Tool ) है , शिक्षा की आवश्यक उपलब्धियों ( Outcomes ) को अधिक प्रभावपूर्ण तथा कुशलतापूर्वक प्राप्त करने के लिए विचार करने का तरीका है । यह चिन्तन का एक तरीका है जो समस्या की पहचान तथा उसका समाधान प्रस्तुत करती है । 
" A system approach is atype of logical problem solving process which is applied to identifying and resolving important educational problems A Systems approach is a tool , a way of thinking more effectively and effeiciently achieving required educational outcomes . It is a mode of thinking which emphasizes problem identifiocation and problem solution "
 शैक्षिक प्रशासन के क्षेत्र में प्रणाली विश्लेषण प्रशासक को समस्याओं के सम्बन्ध में निर्णय लेने के लिए वैज्ञानिक , परिमाणात्मक आधार प्रदान करती है । शिक्षा के क्षेत्र में प्रणाली विश्लेषण में क्रमबद्ध रूप में नियोजन , व्यवस्था , कार्यान्वयन , मूल्यांकन तथा पुनरावलोकन आदि क्रियाएँ सम्मिलित होती हैं । प्रणाली उपागम के अनुसार शिक्षण - अधिगम को प्रक्रिया क्रम के अंगों के मध्य एक प्रकार का आदान - प्रदान , संचार तथा नियन्त्रण मात्र है । शिक्षक , संचार एवं नियन्त्रण करने वाले यन्त्र है ।

 प्रणाली विश्लेषण की रूपरेखा ( Procedure for System Analysis ) 
प्रणाली विश्लेषण में निम्न सोपान होते हैं 
( 1 ) सर्वप्रथम समस्या की पहचान करना ( Identification of Problem )
( 2 ) शैक्षिक साधनों की आवश्यकताओं व विकल्पों का पता लगाना ( Identification of Alternatives and Needs of Educational Means ) 
( 3 ) लक्ष्यों का विश्लेषण ( Analysis of objectives ) 
( 4 ) प्रत्येक लक्ष्य की उपलब्धि हेतु विश्लेषण करना ( Functional Analysis 
( 5 ) कार्य विश्लेषण करना ( Task Analysis ) 
( 6 ) विधि साधन ( Method Means )
 प्रणाली विश्लेषण का शिक्षा में प्रयोग ( Application of System Analysite in Education )
शिक्षा प्रक्रिया में प्रणाली विश्लेषण का विशेष महत्व है । इस प्रणाली का शिक्षा निम्न प्रकार प्रयोग किया जा सकता है
( 1 ) इस प्रणाली से शैक्षिक प्रक्रिया सम्बन्धी प्रारूप के निर्माण करने में सहायत मिलती है । 
( 2 ) प्रणाली विश्लेषण शिक्षण के नियोजन ( Planning of Instruction ) में प्रयोग की जा सकती है । 

अनुदेशन देने के लिए शिक्षक को दो महत्वपूर्ण कार्य भी करने पड़ते हैं 
( 1 ) अनुदेशन का नियोजन ( Planning of Instruction ) 
( 2 ) अनुदेशन का कार्यान्वयन ( Implementation of Instruction )
 इस प्रकार इस प्रणाली को शिक्षण की व्यवस्था , विश्लेषण , निर्देश , नियोजन तथा व्यवस्था , विकास आदि के लिए अपनाया जा सकता है । इस प्रकार इस प्रणाली के प्रयोग एवं विकास से बहुत - सी उपयुक्त युक्तियाँ व प्रविधियाँ प्राप्त की जा सकती हैं । जैसे - शिक्षण तन्त्र ( Teaching Machine ) , स्वयं - शिक्षक ( Automatic Tutor ) स्वयं - निर्देश विधि ( Auto - Instructional Devices ) , प्रतियोगिता पुस्तक ( Scrambled Boods ) आदि । इस प्रकार प्रणाली विश्लेषण निर्देशात्मक मॉडल बनाने में सहायक हो सकती है । 
( 3 ) प्रणाली विश्लेषण सीखने तथा शिक्षण सम्बन्धी समस्याओं के समाधान के एक वैज्ञानिक विधि है । 
( 4 ) यह सीखने के व्यवहारों को नियन्त्रित करने की एक वस्तुनिष्ठ विधि है । 
( 5 ) इसे परीक्षा प्रणाली के प्रारूप के निर्माण में प्रयुक्त किया जा सकता है 
( 6 ) अध्यापक शिक्षा के प्रतिमान के निर्माण में भी प्रयुक्त किया जा सकता है । 
( 7 ) नवीन शैक्षिक प्रतिमान के निर्माण में भी सहायक हो सकती है । 
( 8 ) प्रणाली विश्लेषण शैक्षिक सामग्री की तैयारी , शैक्षिक वातावरण के नियन्त्रण तथा प्रबन्ध करने में काफी सहायक सिद्ध हुई है ।

अनुदेशन प्रारूप में अंतर एवं उनका तुलनात्मक अध्ययन
Author
आलोक वर्मा ( कृषि परास्नातक )
सस्य विज्ञान, बीएड 
Email :- yashrajinfoedu@gmail.com










परीक्षा से संबंधित किसी भी कोई भी प्रश्न हमसे आप पूछ सकते है "

हमारी वेबसाइट www.yashrajeducation.com पर आप UPTET, CTET, BEd से संबंधित प्रश्न को पढ़ सकते है UPTET, CTET, BEd से संबंधित मैंने बहुत कुछ लिखा है जिसे आप पढ़े

और दूसरों को भी शेयर करेताकि दूसरो को भी सहायता हो सके 
हमारे टेलीग्राम चैनल से भी जुड़ सकते है !
 @yashrajeducation
हमारे व्हाट्सप्प ग्रुप से जुड़ने के लिए क्लिक करे !

हमारी अन्य वेबसाइट :- 

"हमारी वेबसाइट अभी नई है अगर कोई भूल चूक हो जाती है तो मैं क्षमा चाहता हूं , लेकिन हमारी उस भूल को हमे Email करे , Email करने के लिए नीचे Option दिया गया है "
                             धन्यवाद