पाठ्यक्रम का आशय , प्रकृति , अवधारणा तथा मूल प्रच्छन्न पाठ्यक्रम ( Meaning , Nature , Concpet and of Curriculum and Core and Hidden Curriculum ) दीर्घ एवं लघु उत्तरीय प्रश्न | ( पाठ्यक्रम विकास एवं आकलन



    पाठ्यक्रम का आशय , प्रकृति , अवधारणा तथा मूल प्रच्छन्न पाठ्यक्रम




    पाठ्यक्रम की अवधारणा  अथवा पाठ्यक्रम का अर्थ एवं परिभाषा


     शिक्षा एक व्यापक एवं गतिशील प्रक्रिया है । यह मानव विकास की आधारशिला है । यह एक जीवनपर्यन्त चलने वाली प्रक्रिया है , जिसके द्वारा व्यक्ति के व्यवहार में लगातार परिवर्तन होता रहता है । शिक्षा प्रकाश का वह स्रोत है जिससे जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में हमारा सच्चा पथ - प्रदर्शन होता रहता है । इसे मनुष्य का तीसरा नेत्र भी कहा गया है । जो मनुष्य को समस्त तत्त्वों के मूल को समझने की । क्षमता प्रदान करता है तथा उस उचित व्यवहार करने के लिए तैयार करता है । शिक्षा मनुष्य के जीवन को सार्थक बनाने के लिये अत्यंत आवश्यक है । भारत की तरह विश्व की अन्य सभ्यताओं में भी प्रारम्भ से ही शिक्षा को महत्त्वपूर्ण स्थान मिला है । अरस्तु ने ठीक ही लिखा है पशिक्षित व्यक्ति अशिक्षित व्यक्तियों से उतने ही श्रेष्ठ होते हैं जितने जीवित मतकों से । " शिक्षा आदिकाल से ही किसी न किसी रूप में दी जाती रही है । सर्वप्रथम शिक्षा बालक को उसके माता - पिता द्वारा दी जाती थी और वे ही बालक को जीवन की विभिन्न परिस्थितियों से अवगत कराते थे । परन्तु धीरे - धीरे समाज में ज्ञानार्जन की भावना बढ़ी । समाज का स्थान गौण हो गया तथा समाज में शिक्षा का अनुभव किया जाने लगा । साथ ही इस बात की भी आवश्यकता अनुभव की जाने लगी कि शिक्षा विशेष व्यक्तियों द्वारा विशेष स्थानों पर ही प्रदान की जाये । इस प्रकार शिक्षक तथा विद्यालयों का विकास हुआ । इस प्रकार शिक्षक एवम् विद्यालय शिक्षा के औपचारिक माध्या के अन्तर्गत आते हैं , क्योंकि नियोजन कुछ निश्चित उद्देश्यों की पर्ति के लिये व्यवस्थित ढंग से संस्थापित संस्थाओं में किया जाता है । साथ ही इसके ठीक विपरीत ऐसी परिस्थितियाँ जो व्यक्ति को शिक्षित करती हैं तथा साथ ही व्यवहार परिवर्तन करने में सहायक होती हैं , वे शिक्षा के अनौपचारिक साधनों में गिनी जाती हैं । विद्यालय में शिक्षा के कुछ विशिष्ट उद्देश्यों की पूर्ति के लिये योजनाबद्ध व सनियोजित ढंग से । ज्ञान प्रदान किया जाता है । ये उद्देश्य व्यक्ति के व्यवहार परिवर्तन के ढंग , मात्रा , दिशा , सौधनों आदि से संबंधित हो सकते हैं । ये सभी उद्देश्य किसी विशेष माध्यम से ही पूर्ण किये जा सकते हैं तथा इन माध्यमों में सर्वाधिक उपयुक्त व महत्त्वपूर्ण नाम पाठ्यक्रम का आता है । इस प्रकार कुछ निश्चित उद्देश्यों की पर्ति के लिये व्यवस्थित ढंग से नियोजित किये जाने के कारण पाठ्यक्रम को शिक्षा के एक औपचारिक माध्यम के रूप में देखा गया है ।


    पाठ्यक्रम का शाब्दिक अर्थ


    पाठयक्रम शब्द ऑग्ल भाषा के Curriculum ( क्यूराक्यूलम ) शब्द का हिन्दी सापांत आंग्ल भाषा का Curriculum शब्द लॅटिन भाषा के Currere ( क्युरर ) शब्द से चना अर्थ है - दौड़ का मेवान । यदि हम पाठ्यक्रम के शाब्दिक अर्थ पर विचार करें तो हमें जात पाठ्यक्रम एक मार्ग है , जिस पर चलकर बालक अपन शिक्षाप्राप्त क लक्ष्य का पूर्ण करते है । शब्दों में शिक्षा एक दौड है जो पाठयक्रम के मार्ग पर दाड़ा जाता हआर इसक द्वार बच्चे काम विकास करने का लक्ष्य प्राप्त किया जाता है । अन्य शब्दा में , हम कह सकत ह कि पाठ्यक्रम एक दौड़ का मैदान है अथवा ऐसा साधन है जिसके द्वारा शिक्षा व जावन क लक्ष्या का प्राप्ति होती है।





    पाठ्यक्रम का संकुचित अर्थ 

    - पाठ्यक्रम के संकुचित अया मशिक्षा स तात्पर्य उस ज्ञान से भी बालक स्कूल , कॉलेज या विश्वविद्यालय से प्राप्त कर या शिक्षा का आदान - प्रदान चहारदीवारी भीतर रहकर किया जाये , शिक्षा एक निश्चित विधि द्वारा दा जाय , इसका एक नाश्चत कालावधिक समय सीमा हो , उसी प्रकार संकचित अर्थ में पाठ्यक्रम भी केवल विभिन्न विषयों के पुस्तकीय जानना ही सीमित नहीं है । 
    जिस प्रकार संकुचित अर्थों में शिक्षा छात्र को पुस्तकीय ज्ञान का प्राप्त करने के लिये प्रेरित करती । है । उसी प्रकार संकुचित पाठ्यक्रम में बालकों से केवल अपनी विषय वस्तु समझने व रटने की आशा की जाती है । इन दोनों के ही माध्यम से बालक वास्तविक जीवन की कठिनाइया व सच्चाइयों को नहीं समड़ा पाता है ।



    पाठ्यक्रम का व्यापक अर्थ 


    शिक्षा के व्यापक अर्थ के अनुसार यह समस्त संसार शिक्षा क्षेत्र है और प्रत्येक व्यक्ति , बालक , युवा , वृत , स्वी , पुरुष सभी शिक्षर्थी हैं । वे सब जीवनपर्यन्त कुछ न कुछ सीखते हैं । अतः व्यक्ति का सारा जीवन ही उसका शिक्षा काल है । शिक्षा प्राप्त करने व प्रदान करने का कोई निश्चित स्थान नहीं होता । यह सर्वत्र ही हमें किसी न किसी रूप में प्राप्त होती रहती है । इसके अंतर्गत सिखाने वाला व्यक्ति भी सीखने वाले व्यक्ति से कुछ न कुछ सीखता रहता है । जीवन की छोटी - छोटी घटनाएं भी हमें शिक्षा देती रहती है । ठीक इसी प्रकार , व्यापक अर्थों में पाठ्यक्रम भी विभिन्न विषयों के पुस्तकीय ज्ञान तक सीमित न होकर अपने अन्दर उन समस्त अनुभवों को समेटे रहता है जिसे पुरानी पीढ़ी आने वाली पीढ़ी को हस्तान्तरित करती है । । विषयों के लिखित व पुस्तकीय ज्ञान के साथ ही व्यापक पाठ्यक्रम में विभिन्न पाठ्यक्रम सहगामी गतिविधिया भी समाहित होती हैं । 
    संक्षेप में हम सकते है कि संकुचित अर्थों में पाठ्यक्रम को कुछ विषयों की सूची माना जाता है । जिन्हें बालक को विद्यालय में पढ़ना होता है । परन्तु व्यापक व विस्तृत दृष्टिकोण से पाठ्यक्रम के अन्तर्गत वे सभी क्रियायें आ जाती है जिन्हें बालक विद्यालय में रहते हए शिक्षक के संरक्षण में सम्मा करता है , फिर चाहे वे लिखित हों या क्रियात्मक । 



    पाठ्यक्रम की परिभाषाएँ 


    प्राचीन काल में पाठ्यक्रम को पाठ्यवस्तु का पर्यायवाची माना जाता था । इस दृष्टिकोण पाठ्यक्रम का क्षेत्र बहुत ही सीमित , संकुचित व मौखिक प्रकृति का होता था । प्राचीन समय में शिक्षा का उद्देश्य ज्ञान के कुछ क्षेत्रों व कुशलताआ पर अधिकार करा देना मात्र समझा जाता था । इस पाठ्यक्रम के प्राचीन मतानुसार कुछ परिभाषाएं इस प्रकार द्रष्टव्य हैं


    ( 1 ) कनिंघम के अनुसार , “ पाठ्यक्रम कलाकार ( शिक्षक ) के हाथ में एक साधन है जिसस अपनी सामग्री ( शिक्षार्थी ) को अपने आदर्श ( उद्देश्य ) के अनुसार अपनी चित्रशाला ( विद्यालय ) म सके । "

    ( 2 ) डॉ . सफाया के मतानुसार , “ पाठ्यक्रम स्कूलों में निर्देशन के कार्य के लिये एक निर क्रम में व्यवस्थित किये गये विषयों के समूह अथवा अध्ययन का विषय - वस्तु के रूप मजानामा रूप में जाना गया है । "

    ( 3 ) फ्रोबेल के अनुसार , “ पाठ्यक्रम को मानव जाति के सम्पूर्ण ज्ञान त्या अनुभव का सार समझना चाहिए । "
    ( 4 ) पुनरो के शब्दों में “ पाठ्यक्रम में वे समस्त अनुभव निहित हैं , जिनको विद्यालय द्वारा शिक्षा के उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए उपयोग में लाया जाता है । " ।

    ( 5 ) कार्टर सी . वी . गुड के द्वारा प्रतिपादित पुस्तक ' डिक्शनरी ऑफ एजूकेशन ' में पाठ्यक्रम की निम्नांकित परिभाषायें दी गयी हैं

    ( i ) यह विशिष्ट अध्यापन सामग्री की एक सामान्य योजना है जिसे स्कूल विद्यार्थियों को प्रस्तुत करता है और जिसके द्वारा विद्यार्थी स्नातक की योग्यता प्राप्त करता है या किसी व्यवसाय य उद्योग में । प्रवेश करने का प्रमाण - पत्र प्राप्त करता है । 
    ( ii ) अध्ययन के किसी प्रमुख क्षेत्र में उपाधि प्राप्त करने के लिये निर्धारित किये गये क्रमबद्ध विषयों अथवा व्यवस्थित विषय - समूह को पाठ्यक्रम के नाम से संबोधित किया जाता है । 
    ( iii ) विद्यालय के निर्देशन में निर्धारित शैक्षिक अनुभवों का समूह , जो व्यक्ति को समाज में समायोजित करने के उद्देश्य से बनाये जाते हैं , पाठ्यक्रम कहलाता है ।



    आधुनिक अवधारणा के अनुसार पाठ्यक्रम की परिभाषाएँ 


    आधुनिक अवधारणा की दृष्टिकोण से पाठ्यक्रम की कुछ प्रमुख परिभाषाएँ इस प्रकार हैं 
    ( 1 ) हेनरी के अनुसार , “ पाठ्यक्रम में वे सभी क्रियायें आती हैं , जो स्कूल में विद्यार्थियों को दी जाती है । "

     ( 2 ) क्रो एवम् क्रो के अनुसार , “ पाठ्यक्रम विद्यार्थी के उन समस्त अनुभवों से संबंधित होता है , जो उसे विद्यालय में और उससे बाहर प्राप्त होते हैं , जो उसके सामाजिक , मानसिक , आध्यात्मिक तथा नैतिक विकास में सहायक हैं । "

    ( 3 ) व्यूसैम्प के अनुसार , " विद्यालय में बालकों के शैक्षिक अनुभव के लिये एक सामाजिक समूह की रूपरेखा पाठ्यक्रम कहलाता है । ”

    ( 4 ) बेन्ट और क्रोनेनबर्ग के शब्दों में , “ पाठ्यक्रम पाठ्यवस्तु का सुव्यवस्थित रूप है , जो बालक की आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु तैयार किया जाता है । "

    ( 5 ) माध्यमिक शिक्षा आयोग के अनुसार , " पाठ्यक्रम का अर्थ केवल उन सैद्धांतिक विषयों से नहीं है जो विद्यालयों में परंपरागत रूप से पढ़ाये जाते हैं , बल्कि इसमें अनुभवों की वह संपूर्णता भी सम्मिलित होती है , जिनको विद्यार्थी विद्यालय , कक्षा , पुस्तकालय , प्रयोगशाला , कार्यशाला , खेल के मैदान तथा शिक्षक एवम् छात्रों के अनेकों अनौपचारिक सम्पकों से प्राप्त करता है । इस प्रकार विद्यालय का संपूर्ण जीवन पाठ्यक्रम हो जाता है , जो छात्रों के जीवन के सभी पक्षों को प्रभावित करता है और उनके सन्तुलित व्यक्तित्व के विकास में सहायता देता है । "

    ( 6 ) हॉर्नी के शब्दों में , “ पाठ्यक्रम वह है जो शिक्षार्थी को पढ़ाया जाता है । यह सीखने की क्रियाओं व शांतिपूर्वक अध्ययन करने से कहीं अधिक है । इसमें उद्योग , व्यवसाय , ज्ञानोपार्जन , अभ्यास तथा क्रियायें सम्मिलित होती हैं । इस प्रकार यह शिक्षार्थी के स्नायुमण्डल में होने वाले गतिवादी एवम संवेदनात्मक तत्वों को व्यक्त करता है । समाज के क्षेत्र में यह उस सब की अभिव्यक्ति करता है जो कछ जाति ने संसार के संपर्क में आने से लिये हैं । " पाठ्यक्रम की उपरोक्त सभी परिभाषाओं का विवेचन करने के बाद निष्कर्ष रूप में हम कह सकते हैं कि पाठ्यक्रम का क्षेत्र बहुत ही विस्तृत है । यह छात्र के जीवन के सभी पहलुओं को स्पष्ट करता है फिर चाहे वे शारीरिक , मानसिक , आध्यात्मिक , सामाजिक , धार्मिक , राष्ट्रीय , बौद्धिक या नैतिक किसी से भी जुड़े हों । वर्तमान समय में पाठ्यक्रम शिक्षकों को गौण स्थान देकर तथा विद्यार्थी की क्षमताओं एवं अभिरुचियों को केन्द्र में रखकर बनाया जाता है । इसका ध्यय बालक का सर्वांगीण विकास करना एवम बालक को इस योग्य बनाना होता है कि वह अपने साथ - साथ अपने समाज , समुदाय व देश का भी विकास व उद्धार कर सके ।


    –-------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
    " परीक्षा से संबंधित किसी भी कोई भी प्रश्न हमसे आप पूछ सकते है "

    हमारी वेबसाइट www.yashrajeducation.com पर आप UPTET, CTET, BEd से संबंधित प्रश्न को पढ़ सकते है UPTET, CTET, BEd से संबंधित मैंने बहुत कुछ दे रखा है आप पढ़े
    और दूसरों को भी शेयर करे, ताकि दूसरो को भी सहायता हो सके ।
    हमारे टेलीग्राम चैनल से भी जुड़ सकते है
     @yashrajeducation

    हमारी अन्य वेबसाइट :- 
    www.researchonagronomy.in
    www.Gyanikida.co.in

    "हमारी वेबसाइट अभी नई है अगर कोई भूल चूक हो जाती है तो मैं क्षमा चाहता हूं , लेकिन हमारी उस भूल को हमे Email करे , Email करने के लिए नीचे Option दिया गया है "                             धन्यवाद