शैक्षिक नेतृत्व एवं प्रबन्धन - शैक्षिक नेतृत्व का अर्थ एवं प्रकार

शैक्षिक नेतृत्व एवं प्रबन्धन - 3
शैक्षिक नेतृत्व का अर्थ एवं प्रकार 
( Meaning and Types of Educational Leadership ) 

 नेतृत्व का अर्थ स्पष्ट करते हुए नेतृत्व के प्रकार तथा आवश्यकता की विवेचना कीजिए । 

   नेतृत्व का अर्थ 

' नेतृत्व शब्द अंग्रेजी के ' Leadership ' का हिन्दी रूपान्तरण है जिसका अर्थ है - आगे - आगे चलना । इस प्रकार जो व्यक्ति कार्य को पूरा करने के लिए तथा दूसरों के मार्गदर्शन के लिए आगे चले वहीं नेता हैं । नेतृत्व से एक प्रकार की अनुकरणीयता का बोध होता है जितने अधिक अनुगामी होंगे उतना ही अधिक प्रभावशाली नेतृत्व माना जायेगा । 

परिभाषाएँ
( 1 ) चेस्टर बर्नार्ड के अनुसार , " नेतृत्व वह व्हावहारगत गुण है जिससे वह अन्य व्यक्तियों या उनकी क्रियाओं को निर्देशित करता है । " 

( 2 ) मार्टिन एम . ब्रोडबैल के अनुसार , “ नेतृत्व व्यक्ति के समूह को निश्चित दिशा में ले जाने का साधन है । " 

( 3 ) मैरी पारकर फालेट के अनुसार , “ विभाग या संगठन का अध्यक्ष नेता नहीं होता बल्कि नेता वह है जो अपने समूह को शक्ति प्रदान कर सकता है , जो जानता है कैसे प्रोत्साहित करें तथा कैसे सभी से जो दे सकते हैं , को प्राप्त किया जाए । "

 नेतृत्व के प्रकार 

फालेट महोदय ने नेतृत्व के तीन प्रकार बताया है - ( 1 ) व्यक्ति जनित नेतृत्व , ( 2 ) पद जनित नेतृत्व , ( 3 ) कार्य जनित नेतृत्व । 

किम्बल यंग ने नेतृत्व को सात वर्गों में विभक्त किया है - जैसे - ( i ) राजनैतिक नेता , ( ii ) प्रजातंत्रात्मक नेता , ( iii ) नौकरशाही नेता , ( iv ) कूटनीतिज्ञ नेता , ( v ) सुधारक नेता , ( vi ) आन्दोलक नेता तथा ( vii ) सिद्धान्तवादी नेता । इस प्रकार बोगार्डस ने नेता को निम्नलिखित पाँच वर्गों में विभक्त किया है - ( 1 ) प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष नेता , ( 2 ) सपक्षीय एवं वैज्ञानिक नेता , ( 3 ) सामाजिक , अधिशासी तथा मानसिक नेता , ( 4 ) पैगम्बर , संत , विशेषज्ञ तथा मालिक नेता , ( 5 ) स्वेच्छाकारी , करिश्माई , पैतृक तथा प्रजातांत्रिक नेता । 

मान्यता के आधार पर नेतृत्व को तीन वर्गों में विभक्त किया गया है - 

( 1 ) स्वतः नियुक्त , ( 2 ) समूह द्वारा नियुक्त , ( 3 ) कार्यकारिणी द्वारा नियुक्त नेतृत्व के इन सभी प्रकार को हम मोटे तौर पर दो वर्गों में स्वभाव के अनुसार व्यक्त कर सकते हैं -
1 . प्रजातान्त्रिक नेतृत्व , 2 . राजतान्त्रिक नेतृत्व

( 1 ) प्रजातान्त्रिक नेतृत्व - प्रजातान्त्रिक नेतृत्व वह होता है , जिसमें नेता अपने निर्णय समी या आधकांश सदस्यों के परामर्श से लेता है । इस प्रकार के नेतृत्व में सभी सदस्या का राया तक्षा । सुझावों को वांछित महत्व दिया जाता है । इसमें प्रत्येक व्यक्ति को अपनी बात कहने का अधिका । होता है । इस प्रकार के नेतत्व में सत्ता का विकेंद्रीकरण होता है । इस प्रकार के नेतृत्वमा नेता सदस्या के साथ समानता का व्यवहार करता है । इसके सभी सदस्य समान भागाचारास कार्य कर हैं । 

( 2 ) राजतान्त्रिक नेतृत्व - प्रजातान्त्रिक नेतृत्व के ठीक विपरीत निरंकुशवादी नेतृत्व होता है , इस प्रकार के नेतृत्व में सम्पूर्ण सत्ता एक ही व्यक्ति में निहित होती है । अन्य सदस्यों को समय सम्मति देने का अधिकार नहीं होता है । इसी प्रकार नेता सभी के साथ समानता का व्यवहार नहीं करता है । सत्ता का भी विकेन्द्रीकरण न होकर सत्ता कुछ ही हाथों में सिमट कर रह जाती है । यही नंता ही समूह की समस्त नीतियों का निर्धारण करता है तथा उन नीतियों का क्रियान्वयन कैसे हो यह भी वही स्वयं निर्धारित करता है । नेता अकेला ही सर्वेसर्वा होता है । वह स्वयं ही सर्वोच्च पद पर रहता है । स्वयं ही न्यायाधीश तथा कार्यमालिक होता है तथा वही प्रत्येक के भाग्य का निर्णय करता है । 

नेतृत्व की आवश्यकता 

नेतृत्व की आवश्यकता क्यों होती है ? यह नेतृत्व के कार्यों पर निर्भर करता है और नेतृत्व के कार्य ही नेतृत्व के महत्व को स्पष्ट करते हैं । नेतृत्व के निम्नलिखित कार्य होते हैं - 

( I ) उद्देश्य निर्धारण - नेतृत्व का सबसे प्रथम कार्य है अपने समूह तथा समूह के कार्यों के उद्देश्यों का निर्धारण करना । उद्देश्य ही समूह के व्यवहार तथा कार्यों को दिशा प्रदान करते हैं । कक्षा में शिक्षक नेतृत्व करता है इसलिए कक्षा में वह कक्षा - क्रियाओं के उद्देश्य निर्धारित करता है । 
( ii ) संगठन करना - नेतृत्व का दूसरा कार्य समस्त कार्य प्रणाली का संगठन करना है । इसके लिए वह सभी प्रकार के संसाधनों की व्यवस्था भी करता है । 
( iii ) नीति निर्धारण - नेतृत्व या नेता का एक कार्य नीतियों का निर्धारण करना भी है । नेता समूह के लिए आदर्श , कार्य - प्रणाली , दायित्व तथा नीति का निर्धारण करता है । उसके अनुयायी इन्हीं आर्दशों तथा नीतियों का पालन करते हुए कार्य करते हैं । 
( iv ) समन्वय करना - नेतृत्व का ही यह कर्तव्य है कि वह विभिन्न क्रियाओं , संगठनों , प्रणालियों तथा उद्देश्यों में परस्पर समन्वय स्थापित करे । 
( v ) नियन्त्रण करना - नेता अपने समूह के सदस्यों के कार्यों तथा व्यवहारों पर नियंत्रण कर । यह सुनिश्चित करता है कि समूह के कार्य तथा व्यवहार निर्धारित नीतियों एवं उद्देश्यों के अनुरूप हों । वह इस बात पर भी नियन्त्रण करता है कि समूह के सदस्यों के आन्तरिक सम्बन्ध समूह के आदर्शों के अनुसार हों ताकि सदस्यों के पारस्परिक सम्बन्धों का ताना - बाना टूटने न पाये । 
( vi ) प्रतिनिधित्व करना - नेता अपने समूह का प्रतिनिधित्व करता है । वह अपने समूह के हितों का ध्यान रखता है , उनके कल्याण के लिए कार्य करता है तथा उनके विचारों की अभिव्यक्ति करता है । 
( vii ) प्रेरणा प्रदान करना - नेता अपने समूह के सदस्यों को समय - समय पर प्रेरणा प्रदान करता है । यह प्रेरणा सामान्यतया एक विशिष्ट दिशा में व्यवहार करने या वांछित उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए दी जाती है । शिक्षक एक नेता के रूप में अपने छात्रों को अध्ययन करने हेतु प्रेरणा प्रदान करता है ।
( viii ) क्रियान्वयन करना - नेतत्व का एक कार्य समूह के उद्देश्य , आदर्श तथा नीतियों का । क्रियान्वयन करना भी है । इसके लिए वह समूह के सदस्यों के लिए कार्य - प्रणाली निर्धारित करता है , दिशा - निर्देश देता है , उत्तरदायित्वों का विभाजन करता है तथा अन्य वे सभी कार्य करता है जो इस हेतु आवश्यक होते हैं । 
( ix ) पुरस्कार एवं दण्ड की व्यवस्था करना - नेता यह भी सुनिश्चित करता है कि वह अपने अनुयायियों को आवश्यकता पड़ने पर दण्ड तथा पुरस्कार दे । उसे समूह द्वारा ऐसा करने की शक्ति प्राप्त होती है । उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि कक्षा - कक्ष में अध्यापक एक नेता होता है और उसे यह सभी कार्य एवं दायित्व पूरे करने होते हैं । 


प्रश्न 2 . नेतृत्व के विभिन्न सिद्धान्तों का उल्लेख करते हुए नेता के सामान्य गुणों का वर्णन कीजिए । 
  अथवा
प्रभावी नेता के प्रमुख गुणों का लिखिए । [ कानपुर 2018 ] 

उत्तर - नेतृत्व के सिद्धान्त नेतृत्व का विकास कैसे होता है इस सम्बन्ध में अलग - अलग विद्वानों ने अलग - अलग सिद्धान्त रखे हैं । वर्तमान में नेतृत्व के विकास से सम्बन्धित निम्न सिद्धान्त देखने को मिलते हैं - 

( 1 ) अयोग्यता में योग्यता का सिद्धान्त - इस सिद्धान्त की व्याख्या हम मनोविज्ञान के क्षतिपूर्ति के सिद्धान्त के आधार पर करते हैं कि मनुष्य जब किसी एक क्षेत्र में अयोग्यता रखता है तो वह अपनी इस अयोग्यता की क्षतिपूर्ति स्वरूप अन्य क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करता है । इस सिद्धान्त के अनुसार कुछ व्यक्तियों में कुछ कमियां होती हैं फलतः वे अपनी कमियों की क्षतिपूर्ति हेतु अन्य क्षेत्रों में उत्तम कार्य कर नेता बन जाते हैं । उदाहरण के लिए , अध्ययन में कमजोर छात्र अच्छा . खिलाड़ी बनकर टीम का नेता बन जाता है । 

( 2 ) संयोग का सिद्धान्त - इस सिद्धान्त के अनुसार कभी - कभी कोई व्यक्ति संयोग से ही नेता बन जाता है । किसी व्यक्ति को नेता बनने का संयोग तभी मिलता है जब उसके लिए निम्न तीन परिस्थितियाँ एक साथ उत्पन्न होती हैं - 
( i ) व्यक्ति की श्रेष्ठ व्यक्तिगत योग्यता । 
( ii ) किसी प्रकार के संकट या समस्या का पैदा होना । 
( iii ) व्यक्ति को समस्या समाधान के लिए अपनी योग्यता प्रदर्शन के अवसर मिलना । 

( 3 ) विलक्षणता का सिद्धान्त - कुछ विद्वानों का मानना है कि नेतृत्व व्यक्ति की विलक्षण प्रतिभाओं का परिणाम है । इसके अनुसार कुछ व्यक्तियों में कुछ विशिष्ट योग्यताएं तथा गुण होते हैं । जो दूसरों में नहीं होते हैं । वे अपने विशिष्ट गुणों के कारण समूह के अन्य सदस्यों को अपना अनुयायी बनाकर उसका नेता बन जाते हैं । इसे गण - सिद्धान्त भी कहते हैं । 

( 4 ) सन्तुलन का सिद्धान्त - इस सिद्धान्त के समर्थकों की मान्यता है कि नेतृत्व का विकास तभी होता है जब किसी व्यक्ति के समस्त या अधिकांश नेतृत्व गुणों का सन्तुलित विकास होता है । यदि नेतृत्व गुणों का असन्तुलित विकास होता है , अर्थात् कोई एक - दो गुण बहुत अधिक विकसित होते हैं तथा कुछ अन्य अपेक्षाकृत उतने ही विकसित हो पाते हैं तो उस व्यक्ति का नेतृत्व संकट में पड़ जाता है । उदाहरणार्थ , यदि किसी नेता में शारीरिक शक्ति का बहुत अधिक विकास हो जाये तो वह भले - बुरे की चिन्ता किये बिना भारतीय तथा अकरणीय कार्य कर बैठता है फलतः । उसका नेतृत्व खतरे में पड़ जाता है । 

( 5 ) समूह प्रक्रिया सिद्धान्त - कछ विद्वानों का विचार है कि नतृत्व समूह - प्रक्रिया का । परिणाम होता है । समूह के सदस्यों में परस्पर अन्तः क्रियाएँ , विचार - विमर्श तथा परामर्श हात रहते । है । इन्हीं के आधार पर कोई व्यक्ति समस्त समह में से नेता उभरकर आता हा जा व्याक्त समूह का । आवश्यकताआ तथा समस्याओं को तष्टि प्रदान कर देता है , समूह उसी का अपना नता मान लेता ।
       उपरोक्त वर्णन से यह स्पष्ट है कि नेता बनने के लिए प्रायः सभी सिद्धान्त ठाक लगत है । कब । कौन कैसे नेता बने यह पृथक - पृथक परिस्थितियों पर निर्भर करता है । वास्तविक रूप स नता बनना । किसी एक तत्त या कारक पर निर्भर नहीं करता है , इसके लिए दो तत्व प्रमुख रूप स उत्तरदायी । नहैयाक्त के व्यक्तित्व सम्बन्धी गण तथा परिस्थितियाँ इन्ह हम वशानुगत कारक तवा वातावरणीय कभी कह सकते हैं । वंशानुगत कारकों से व्यक्तित्व गुणों का विकास होता है तथा । वातावरणी के नेता बनने के लिए उपयुक्त परिस्थितियां पैदा करते हैं । इन दोनों कारका में अन्तःक्रिया णामस्वरूप ही कोई व्यक्ति नेता बन पाता है । यही कारण है कि पृथक - पृथक परिस्थितियों से यक् - पृथक् गुण वाले व्यक्ति नेता बन जाते हैं । उदाहरण के लिए , हिटलर अपनें देश में नेता बन गया , क्योंकि वहाँ परिस्थितियाँ उसके अनुकूल थीं , यदि हिटलर अमेरिका में जन्मा होता तो कभी भी ने नहीं बन सकता था । 

नेता के सामान्य गुण - एक प्रभावी नेता में कौन - कौन से गुण होने चाहिए , इस सम्बन्ध में भी विद्वानों ने गुणों की अलग - अलग संख्या बताई है । जैसे आलपोर्ट ने 18 तथा बरनार्ड ने 28 गुणों की सूची दी है । इसी प्रकार और भी अनेक विद्वानों ने इनकी संख्या पृथक् - पृथक् बताई है । इन सभी का यदि विश्लेषण करें तो निम्नलिखित गुण उभरकर आते हैं - 

( 1 ) शारीरिक गुण - एक प्रभावी नेता में कुछ शारीरिक गुणों का होना वांछनीय है । वह देखने में भद्दा न लगे , शरीर की ऊँचाई , समूह के सदस्यों से बहुत अधिक कम या ज्यादा न हो , उसका वजन सन्तुलित हो , वह न बहुत दुबला हो और न बहुत मोटा । उसमें स्फूर्ति , उत्साह तथा जोश हो । जिस नेता में स्फूर्ति उत्साह तथा जोश नहीं होता है वह समूह का सही प्रकार से नेतृत्व नहीं कर पाता है । 

( 2 ) बुद्धि - नेता में उच्च बौद्धिक योग्यताएं होनी चाहिए । बुद्धि के आधार पर वह समूह की विभिन्न समस्याओं का समाधान कर सकता है , समूह के लिए उद्देश्य तथा नीतियाँ निर्धारित कर सकता है । बेव तथा हीलिंगवर्थ आदि ने नेता के लिए उच्च बौद्धिक क्षमताओं का होना अनिवार्य बताया है । 

( 3 ) उद्दीपकता - नेता में स्फूर्ति , प्रसन्नता , स्पष्टता , तत्परता तथा समय की पाबन्दी जैसे गुणों । का होना नितान्त अनिवार्य है । कोई भी समूह ऐसे व्यक्ति को नेता पद पर पसन्द नहीं करता है जो आलसी , निस्तेज , ढीला - ढाला , लापरवाह तथा हमेशा दुःखी रहने वाला हो । 

( 4 ) दूरदर्शिता - नेता ऐसा हो जो दूर की सोचे , भविष्य की सोचे , वर्तमान का सामना करे तथा भूतकाल से सीखे । यदि नेता में दूरदर्शिता का अभाव है तो वह अपने अनुयायियों के भावी कल्याण की योजना नहीं बना सकता है । उसमें इतनी योग्यता हो कि वह कारण - प्रभावों में सम्बन्ध स्थापित कर सके । 

( 5 ) आत्म - विश्वास - नेता में आत्म - विश्वास होना चाहिए । जिस नेता में आत्म - विश्वास होता है वह उचित निर्णय ले सकता है । आत्म - विश्वास के अभाव में वह निर्णय लेने में संकोच करेगा ।
जो नेता अपने आप पर विश्वास नहीं करता वह दूसरों पर क्या विश्वास करेगा तथा दूसरे भी उस पर क्या विश्वास करेंगे । 


( 6 ) संकल्प - शक्ति - प्रत्येक नेता के सामने कभी न कभी कठिन समस्याएं आ जाती है जिनके विषय में उसे कठोर निर्णय लेने होते हैं । नेता में जब तक दृढ़ - इच्छा शक्ति नहीं है , तब तक वह इन गम्भीर समस्याओं से लड़ नहीं सकता है । कठोर समय में भी साहस के साथ बिना विचलित हुए जो नेता कार्य करता है वही अपने अनुयायियों का आदर्श बन पाता है । नेता में आत्म - संयम , उत्तरदायित्व वहन करने की क्षमता तथा संकल्प - शक्ति का होना अत्यंत आवश्यक है 

( 7 ) सामाजिकता - नेता में सामाजिकता  का गुण भी होना चाहिए । यदि नेता में सामाजिकता नहीं है तो वह दूसरे सदस्यों से सम्बन्ध स्थापित नहीं कर सकता है । सामाजिकता के अभाव में वह न तो सामाजिक - सम्बन्धों को समझ पायेगा और न सामाजिक क्रिया - प्रतिक्रियाओं को ही समझ पायेगा । सामाजिकता स्थायी नेतृत्व के लिए भी आवश्यक है । 

( 8 ) लोचशीलता - नेता में लोचशीलता हो । वह ऐसा हो जो बदली हुई परिस्थितियों के साथ ही साथ अपने आप को बदल ले । यदि नेता लकीर का फकीर बना रहता है , सामयिक परिवर्तनों के साथ बदलता नहीं , नये विचारों को अपनाता नहीं वह अपने समूह को उन्नति की ओर नहीं ले जा सकता है । अपरिवर्तनशील नेता को वैसे भी पग - पग पर कठिनाई आती है । नेता में लोचशीलता का होना अत्यंत आवश्यक है । उसमें प्रत्येक नई समस्या पर नये दृष्टिकोण से विचार करने की क्षमता हो । यदि वह प्रत्येक समस्या को एक ही विधि से हल करना चाहता है तो यह उसकी भूल होगी । उपरोक्त गुणों के अलावा नेता में उच्च कल्पना - शक्ति , अच्छी स्मृति , मृदुभाषी , व्यवहारिकता जैसे अन्य गुणों का होना भी उपयोगी रहता है ।



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