इकाई - 5 बागवानी एवं वृक्षारोपण , कृषि विज्ञान कक्षा 7

इकाई - 5 बागवानी एवं वृक्षारोपण

  • बाग लगाते समय ध्यान देने योग्य बातें 
  • बाग के लिए स्थान का चयन 
  • पूर्व योजना , पौधे लगाना 
  • विभिन्न फलदार वृक्षों की दूरी 
  • बाग लगाने की विधियाँ 
  • कायिक प्रवर्धन की विधियाँ - कलम बाँधना , चश्मा लगाना 
  • शाक वाटिका का अर्थ , महत्व , शाक वाटिका लिए ध्यान देने योग्य बातें 
  • वृक्षारोपण का अर्थ एवं महत्व 

विस्तृत क्षेत्र में वैज्ञानिक ढंग से फलों , सब्जियों तथा फूलों की खेती को बागवानी कहते हैं । वर्तमान में बागवानी आमदनी का अच्छा स्रोत बन गयी है । किसान बागवानी से सम्बन्धित विभिन्न फसलों की खेती करके अच्छी आय प्राप्त कर रहें हैं । इसके अतिरिक्त बागवानी का कृषि विविधीकरण में विशेष महत्व है । पर्यावरण संतुलन बनाए रखने तथा रोजगार सृजन में इसकी विशेष भूमिका है ।

 बागवानी को मुख्यत : तीन भागों में विभक्त किया गया है ।
 1 पुष्योत्पादन - फूलों की खेती । 
2 सब्जी उत्पादन - सब्जियों की खेती । 
3 फलोत्पादन - फलों की खेती । 
यहाँ हम फलों की बागवानी का विस्तृत अध्ययन करेंगे । 

 बाग लगाते समय ध्यान देने योग्य बातें 

बाग की स्थापना करना एक विवेक पूर्ण कार्य है क्योंकि बाग स्थापित होने के बाद उसमें किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं किया ' जा सकता । किसी भी प्रकार की त्रुटि अन्तिम समय तक बनी रहती है । परिणाम स्वरूप उपज प्रभावित होती है । बाग लगाते समय निम्नलिखित बिन्दुओं पर ध्यान देना आवश्यक है - 

* स्थान का चयन
* जलवायु 
* सिंचाई की सुविधा 
* जल निकास की सुविधा 
* यातायात की सुविधा 
* बाजार की निकटता 
* कुशल श्रमिक की उपलब्धता आदि 

 बाग लगाने के लिए स्थान का चयन 

1 . भूमि की किस्म - नया बाग लगाने के लिए यह आवश्यक है कि भूमि समतल हो तथा जल निकास की अच्छी व्यवस्था हो । बाग लगाने के लिए दोमट मिट्टी सर्वोत्तम मानी जाती है । बलुई दोमट तथा चिकनी दोमट मिट्टी में भी बाग सफलता पूर्वक लगाया जा सकता है । 

2 . सिंचाई की सविधा - फल वृक्षो की सचारु रूप से वद्धि के लिए पर्याप्त मात्रा में पानी कि व्यवस्था होनी चाहिए । जहाँ पानी कम उपलब्ध में हो वहाँ सिंचाई के रूप में टपक सिंचाई ( Drip Irrigation ) का प्रयोग करते हैं । यह सिंचाई की उत्तम विधि है इसमें जल की बचत होती है तथा फलों की गुणवत्ता बढ़ जाती है । 

3 . जल निकास की व्यवस्था - बाग का चयन करते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि वर्षा ऋतु में पानी न रुके । जल रुकने पर फल वृक्ष ठीक से नहीं पनपते हैं । इसलिए जल निकास की व्यवस्था होनी । चाहिए । 

4 . यातायात की सुविधा - फल - वृक्षों से फल लेने के बाद फलों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने के लिए यातायात की सुविधा होनी चाहिए । जिससे फलों को बाजार तक आसानी से पहुँचाया जा सके ।

 5 . बाजार की निकटता - बाजार , बाग से निकट होना चाहिए जिससे बाग से प्राप्त फलों को आसानी से बेचा जा सके ।

 6 . जलवायु - फल का बाग लगाते समय जलवायु का ध्यान देना आवश्यक है । जलवायु के अनुसार ही फल वृक्षों का चयन करना चाहिए । जैसे - उष्ण कटिबन्धीय जलवायु वाले फल वृक्ष आम , अमरूद , केला , पपीता , नींबू , ऑवला आदि हैं । तराई क्षेत्रों की उपोष्ण कटिबन्धीय जलवायु के फल लीची , नाशपाती , कटहल , आम , पपीता आदि हैं । जबकि शीतोष्ण क्षेत्रों के लिए उपयोगी फल सेब , चेरी , आड़ , अलूचा , नाशपाती आदि हैं । इस प्रकार अच्छे फल वृक्षों के लिए स्थान का चयन जलवायु के अनुसार किया जाना चाहिए । 

7 . ईट भट्ठों से दूरी - कोई भी बाग ईंट भट्टे से लगभग 1 किमी दूरी पर लगाना चाहिए , क्योंकि इससे निकलने वाले धुंए से फलों में कोयलिया ( Black Tip ) रोग लग जाता है ।

 8 . जंगल से दूरी - बाग हमेशा जंगल से दूर लगाने चाहिए जिससे जंगली जानवरों से होने वाली क्षति से बाग को बचाया जा सके । 

9 . सहकारी समितियाँ तथा कुशल मजदूर की उपलब्धता - बाग के नजदीक सहकारी समितियों का होना लाभदायक है । इससे फल विपणन में सुविधा होती है । साथ ही कुशल अनुभवी मजदूर उपलब्ध होने से । खेती में कृषि कार्य से लेकर फल तोड़ाई तक किसी भी प्रकार की असुविधा नहीं होती है । 

10 . बाग के लिए चयनित क्षेत्र में कीट एवं बीमारियों का प्रकोप नहीं होना चाहिए ।

पूर्व योजना बनाकर पौधे लगाना 

मृदा भूमि का चयन करने के बाद पौधे लगाने के पहले कल प्रारम्भिक तैयारियों की आवश्यकता होती है , जो निम्नलिखित हैं 

1 . भूमि को समतल करना - भूमि ऊँची नीची अथवा ढाल होने पर उसे समतल कर लेना चाहिए । भूमि समतल नहीं होने से वर्षा ऋतु में मृदा कटाव होने की संभावना बनी रहती है । 

2 . भूमि में खाद डालना - समतल भूमि में गर्मी के दिनों में जताई करके सड़ी गोबर की खाद , कम्पोस्ट खाद मिला देना चाहिए । 

3 . पानी का प्रबंध करना - बाग लगाने से पहले सिंचाई का प्रबन्ध होना चाहिए । इसके लिए जहाँ नहर की व्यवस्था नहीं है वहाँ नलकूप की व्यवस्था होनी चाहिए । 

4 . जंगली जानवरों तथा अनावश्यक प्रवेश को रोकना - जंगली जानवरों को रोकने के लिए बाड़ लगाना चाहिए । इसके लिए स्थाई रूप से दीवार या कटीले तारों का प्रबन्ध होना चाहिए या नागफनी या राम बांस , करौंदा इत्यादि की बाड़ लगा देनी चाहिए । 

5 . वायु रोधी पौधे लगाना - फलदार वृक्षों को आँधी तूफान के अलावा लू तथा ठण्डी हवाएँ काफी हानि पहुँचाती हैं । इसके नियंत्रण के लिए बाग के उत्तर - पश्चिम दिशा में ऊँचे उठान वाले पेड़ लगाकर बाग को बचाया जा सकता है । देशी आम , शीशम , महुआ , यूकेलिप्टस आदि वृक्ष वायुरोधी के रूप में लगाए जाते हैं । 

6 . अमिक आवास एवं सड़कों का निर्माण - बाग में सुविधापूर्वक कार्य करने तथा बाग के हर भाग में पहुंचने के लिए सड़क तथा रास्ते बना देना चाहिए । बाग में श्रमिक आवास की भी व्यवस्था करनी चाहिए ।

 7 . जल निकास का प्रबंध - बाग में वर्षा या बाढ़ का पानी न रुक सके इसके लिए भूमि की ढाल के अनुसार जल निकास की नालियाँ बना लेनी चाहिए ।

 8 . क्षेत्रों का विभाजन - अलग - अलग प्रजाति के फलों के पकने के अनुसार क्षेत्र का विभाजन यथा स्थान कर लेना चाहिए ।

 9 . खाद के गहने - बाग में गड्ढे निकास स्थान से दर , दक्षिण दिशा में बना लेने चाहिए । इसके लिए ऐसे स्थान का चयन करना चाहिए जहां बाग का कूड़ा करकट , सूखी पत्ती , पशुओं का मल - मूत्र सुगमता से पहुंचाया । जा सके । 

विभिन्न फलदार वृक्षों की दूरी 

बाग में पौधे सघन अवस्था में लगाने से शुरु में अच्छी पैदावार होती है लेकिन बाद में फल वृक्षों के घने होने से पदावार कम हो जाती है । घने बाग होने से सर्य का प्रकाश सभी पौधों को ठीक से नहीं मिल पाता है जिससे पैदावार पर विपरीत प्रभाव पड़ता है । विभिन्न फलदार वृक्षों की दरी उस फल की किस्म के ऊपर निर्भर करती है । मिट्टी की किस्म , सिचाई की सुविधा के ऊपर भी निर्भर करती है । इस तरह विभिन्न फल वृक्षों के बीच की दूरी अलग - अलग होती है । कुछ । फल वृक्षों के लगाने की दूरी निम्नवत् है -

बाग लगाने की विधियाँ

 बगीचे में वृक्ष लगाने का कार्य अत्यन्त ही महत्त्वपूर्ण है । पौधों को बाग में लगाते समय किसी भी प्रकार की गलती होने पर उसकी सजा अन्तिम समय तक भोगनी पड़ती है । इसलिए पेड़ लगाने का कार्य सूझ - बूझ से करना चाहिए । बाग लगाने की जानकारी जिला उद्यान अधिकारी कार्यालय से लेनी चाहिए । 

पौधे लगाने का समय 

बाग में पौधे लगाने का सबसे अच्छा समय जुलाई से अगस्त का महीना होता है । पतझड़ वाले पेड़ों को दिसम्बर से फरवरी महीने तक लगाना ठीक रहता है । पौध लगाने से पहले रेखांकन करना आवश्यक है । उद्यान का अच्छा रेखांकन वही कहा जाता है जिससे बाग के प्रत्येक फल वृक्ष को वृद्धि करने के लिए उचित स्थान मिल सके । भूमि में अधिक से अधिक पौधे लग जायें । यदि बाग में एक से अधिक प्रकार के फल वृक्ष लगान हो तो प्रत्येक फल वृक्ष अलग - अलग स्थान में लगाना चाहिए । फलों की देखभाल तथा तोड़ने की सुविधा के लिए एक ही साथ पकने वाले फलों को एक स्थान पर लगाना चाहिए । जहाँ तक हो सके फल वृक्षों को एक सीधी रेखा में लगाना चाहिए । बाग लगाने की विधियाँ निम्नलिखित हैं

 वर्गाकार विधि 


 बाग में पौधे लगाने की यह विधि सबसे अच्छी और सरल है । इस विधि में पंक्ति और पौधे की आपसी दूरी बराबर होती है । इस विधि में दो पंक्तियों के चार पौधे आपस में मिलकर एक वर्ग बनाते हैं ।

1 . आयताकार विधि - इस विधि में पौधे वर्गाकार विधि की तरह ही लगाये जाते हैं अन्तर केवल इतना रहता है कि पंक्ति से पंक्ति की दूरी , पौधों की आपसी दूरी से अधिक होती है । जिससे वृक्षों की संख्या में वृद्धि हो जाती है इस विधि में चार पौधों को आपस में मिलाकर एक आयताकार आकृति का निर्माण होता ।

2 . त्रिकोण विधि - इस विधि में पौधे वर्गाकार विधि के समान लगाये जाते हैं । अन्तर केवल इतना रहता है कि दूसरी पंक्ति में पौधों को पहली पंक्ति के पौधों के सामने न लगाकर उनके बीच त्रिकोण रूप में लगाते हैं । इस विधि में वर्गाकार विधि की अपेक्षा कुछ अधिक पौधे लगाये जाते हैं । इस विधि में दो पंक्तियों के तीन वृक्ष मिलकर एक समद्विबाहु त्रिभुज का निर्माण करते हैं । 

3 . पंचभुजाकार विधि - यह विधि भी वर्गाकार पद्धति के समान है इसका रेखांकन वर्गाकार की तरह होता है । इस विधि में , चार पौधों के मध्य में एक पौध लगाया जाता है जो अस्थाई होता है । इसे स्थाई वृक्षों के बड़ा हो जाने पर हटा दिया जाता है । इस विधि को पूरक विधि भी कहते 

4 . पट्कोण विधि - यह विधि त्रिकोण विधि के समान होती है । इसमें वर्गाकार विधि की अपेक्षा 15 % पौधे अधिक लगाये जाते हैं । इस विधि में पेड़ षट्कोण रूप में दिखाई देते हैं । यह विधि शहर के पास की भूमि के लिए उपयुक्त होती है । इस विधि में छः वृक्ष आपस में मिलकर एक षट्भुजाकार आकृति तैयार करते हैं तथा सातवा वृक्ष इनके बीच में होता है । इस विधि में बाग कुछ घना हो जाता है । इस विधि को समद्विबाहु त्रिभुज विधि के नाम से भी जाना जाता है । 

कायिक प्रवर्धन की विधियाँ

 पौधे के किसी भी वानस्पतिक भाग से नये पौधे तैयार करना कायिक प्रवर्धन कहलाता है । कायिक प्रवर्धन कई प्रकार किया जा सकता है । यथा तना एवं जड़ कर्तन , कलिकायन , कलम बाँधना . कन्द प्रकन्द धनकन्द , पत्ती कर्तन आदि ।

चश्मा लगाना 

इस विधि में सर्वप्रथम मूलवृन्त तैयार किये जाते हैं । जब ये पेन्सिल की मोटाई के आकार के हो जाते हैं । तब वांछित कलिका लाकर , जमीन से 15 सेमी . ऊपर मूलवृन्त में चाकू से चीरा लगाकर कलिका को इस प्रकार प्रवेश कराया जाता है कि आख बाहर की ओर निकली रहे । अब 100 गेज पालीथीन की पट्टी से आँख को छोडते हए बाँध देते हैं , जिसस कलिका अपने स्थान पर टिकी रहे । इस प्रक्रिया के बाद मूलवृन्त की चोटी को तिरछा काट देते हैं । लगभग अध्यारोपित कलिका एक माह बाद प्रस्फुटित होकर शाखा बनाती है । इस नई पौध को छ : माह बाद खोद कर वांछित स्थान पर रोपण कर दिया जाता है । 

कलम बाँधना

 इस विधि में सर्वप्रथम मूलवृन्त तैयार कर लिये जाते हैं । जब इनका तना पेन्सिल के मोटाई का हो जाता है तो वांछित सांकुर डाली लाकर मूलवृन्त पर आवश्यक प्रक्रिया अपना कर बाँध दी जाती है । इस विधि को कलम बाँधना कहते हैं । जिस सांगुर डाली को मूलवृन्त पर रोपित करना हो वह तीन माह से पुरानी न हो तथा रोपण से पहले इस सांकुर डाली से । पत्तियों को काटकर हटा देना चाहिए । साकुर डाली की मोटाई मूलवृन्त के समान होनी चाहिए । 15 सेमी . लम्बी सांकुर डाली से । खूटी बना लेते हैं । अब मूलवृन्त को 30 सेमी . ऊपर से काटकर हटा देते हैं तथा ऊपर कटे हुए भाग के बीच में 2 . 5 सेमी गहरा चीरा लगाकर सांकर डाली को प्रवेश करा देते हैं फिर पालीथीन की पट्टी से मजबूती से इस सन्धि को बाँध देते हैं । एक माह बाद सांकुर डाली से नई शाखा निकलती है और इस प्रकार नया पौधा तैयार हो जाता है । अब इसे वांछित स्थान पर रोपित कर देते हैं । । 

शाक वाटिका 

अपने निवास स्थान के आस - पास या घर के अहाते के अन्दर सब्जियाँ उगाई जाती हैं । उसे ही हम शाक वाटिका कहते हैं । शाक का अर्थ होता है साग - सब्जी तथा वाटिका का अर्थ होता है : छोटा सा उद्यान अर्थात साग - सब्जी उद्यान । इस प्रकार की वाटिका में घरेलू स्तर पर सब्जियाँ उगाई जाती हैं । इसे हम गृह वाटिका या रसोई उद्यान ( किचन गार्डेन ) के नाम से भी जानते हैं । इसमें घर के सदस्यों के उपयोग के लिए सब्जियाँ उगाई जाती हैं । 

शाक वाटिका लगाने का उद्देश्य 

परिवार के लोगों को पूरे वर्ष ताजी सब्जियों की आपूर्ति करना ।
* बाजार की तुलना में घर में उगाई गई सब्जियाँ सस्ती पड़ती हैं जिससे कुछ आर्थिक बचत होती है । 
* शाक वाटिका में काम करना अधिकांश लोगों को अच्छा लगता है । इस प्रकार इसमें रुचि रखने वाले घर के  सदस्यों तथा अवकाश प्राप्त व्यक्तियों को मनोरंजन तथा खाली समय के सदुपयोग का अवसर मिलता है । 
* विद्यालय जाने वाले बालक - बालिकाओं को बागवानी में कुछ करके सीखने का अवसर प्रदान करना । 
* शाक वाटिका की फसलों की सिंचाई के लिए घर के स्नानघर तथा रसोई से गिरने वाला पानी सिंचाई के द्वारा उपयोग में लाना ।

 * फसलों को खाद की भी जरूरत होती है । उसके लिए साग - सब्जियों का छीलन , अनाज का भूसा लकड़ी की राख तथा अन्य कूड़ा कचरा , शाकवाटिका के एक कोने में कम्पोस्ट गड्ढा बनाकर करना और सड़ने के बाद उनका खाद के रूप में उपयोग करना ।

* वाटिका नाम लेने से ही एक हराभरा लहलहाता सुन्दर दृश्य मन में उतर आता है । शाक वाटिका से भी हमारे घर आंगन की शोभा बढ़ती है । हरियाली तो रहती ही है कुछ सब्जियाँ जैसे - नेनुआं , लौकी , कुम्हड़ा ( कद्दू ) भिण्डी आदि के फूल जब खिलते हैं तो अत्यन्त मनोहारी दृश्य उपस्थित होता है । घर का दृश्य हरा - भरा मनोरम दिखे , शाकवाटिका का यह भी उद्देश्य होता है । 


शाक वाटिका का निर्माण 

एक आदर्श शाक वाटिका के लिए 25 मीटर लम्बी तथा 10 मीटर चौड़ी भूमि पर्याप्त होती है । यह जरूरी नहीं कि इतनी अमि हो तभी शाक वाटिका बनाई जा सकती है । इसके लिए जो भी भूमि उपलब्ध हो उसी में एक उपयोगी शाकवाटिका बन सकती है । अभिविन्यास की कुशलता होनी चाहिए । आज कल तो भूमि के अभाव में लोग छतों पर , आँगन में गमले रखकर उनमें सब्जियां भी उगाते हैं । शाक वाटिका का निर्माण निम्नवत् करना चाहिए 
* भूमि की सफाई , गुड़ाई , करके शाकवाटिका 25X10 मीटर का आकार देना चाहिए । 
* चारों ओर से मेंड़ बन्दी करके उसके किनारे बाड़ से घेरे - बन्दी करनी चाहिए । 
* बाड़ के लिए कंटीले तार और खम्भों का प्रयोग करते हैं । 
* बाड़ , करौंदे की भी लगाई जा सकती है । किन्तु इसे तैयार होने में अधिक समय लगता है ।
* वाटिका में आने - जाने का रास्ता बनाना चाहिए । 
* रास्ते के किनारे सिंचाई की नाली रखनी चाहिए । 
 *पूरी भूमि को सुविधा जनक आयताकार क्यारियों में विभाजित कर लेना चाहिए । 
* वाटिका के अन्त में , एक कोने पर कम्पोस्ट गड्ढा रखना चाहिए ।
* कद्दू वर्ग ( कोहड़ा , लौकी , नेनुआं , तरोई , करेला , टिण्डा , चिचिण्डा आदि ) की सब्जियाँ , वाटिका के बाड़ के सहारे उगाना चाहिए ।
* जाड़े में बाड़ के तीन ओर मटर उगाई जा सकती है । प्रवेश द्वार के पास सेम उगाई जा सकती है । 
* जड़ और कन्द वाली सब्जियों जैसे मूली , शलजम , गाजर , अदरक , लहसुन , आदि क्यारियों की मेड़ों पर उगाई जा सकती है ।
* शाकवाटिका में कुछ मन पसन्द फूल के साथ - साथ कम स्थान घेरने वाले कछ फल वृक्ष जैसे - पपीता , फालसा , नींबू , अंगूर भी लगाये जा सकते हैं । इसके लिए वाटिका में बहवर्षीय पौधों का स्थान भी निर्धारित करना चाहिए ।
* पर्याप्त भूमि होने पर कलमी आँवले का भी एक पेड़ लगाया जा सकता है ।


फसल चक्र 

उचित फसल चक्र अपना कर पूरे वर्ष ताजी सब्जियाँ फूल और फल प्राप्त किये जा सकते हैं । सब्जियों के कुछ फसल चक्र नीचे दिये जा रहे है । 

मूली ( जुलाई - अगस्त ) , मटर ( अक्टूबर - मार्च ) , करेला ( मार्च - जून ) ।
बैगन ( अगस्त - मार्च ) , टिण्डा ( मार्च - अगस्त ) 
लौकी ( जुलाई - नवम्बर ) , टमाटर ( दिसम्बर - मई ) 
मूली ( जुलाई - अगस्त ) , मटर ( अक्टूबर - मार्च ) , भिण्डी ( मार्च - जून ) 
फूलगोभी ( जुलाई - नवम्बर ) , प्याज ( नवम्बर - मई ) 
पानगोभी ( नवम्बर - माच ) , नोरई , लौकी ( अप्रैल - सितम्बर ) 
अदरक ( जून - अक्टूबर ) , मिर्चा , पालक , मेंथी , सोआ , धानियाँ , सौंफ ( अक्टूबर - जनवरी ) , करेला , भिण्डी , कद्दू वर्ग की सब्जियाँ ( फरवरी - जून ) 

शाक वाटिका के लिए ध्यान देने योग्य बातें । 

शाक वाटिका के लिए ध्यान देने योग्य बातें निम्नलिखित हैं 
* किसी भी ऋतु में क्यारियों को खाली नहीं छोड़ना चाहिए । 
* सब्जियों की बुवाई लाइनों में करनी चाहिए ।
* टमाटर बैंगन , गोभी , मटर , शलजम आदि सब्जियों के बीजों की 2 - 3 लाइनें लगातार 8 - 10 दिन के अन्तर पर बोना चाहिए । ताकि लगातार अधिक समय तक सब्जियाँ प्राप्त होती रहें । 
* सब्जियों की उन्नतशील बीजों की समय पर बुवाई करना चाहिए । 
* सब्जियों की निराई - गुड़ाई समय से करनी चाहिए तथा कीट पतंगों से सुरक्षा करना चाहिए । 

शाक वाटिका की सफलता में बाधक बातें शाक वाटिका की सफलता में बाधक बातें निम्नलिखित हैं ।

 * शाक वाटिका में उचित जल - निकास का न होना । 
* शाक वाटिका में छाया होने के कारण पौधों का विकास न होना । 
* शाकोत्पादन की ठीक से जानकारी न होना । 
* शाक वाटिका की सुरक्षा की पर्याप्त सुविधा न होना । 
* सब्जियों के उन्नतशील बीज उपलब्ध न होना । 
* सब्जियों की बुवाई उचित दूरी पर पंक्तियों में न बोना । 

शाक वाटिका का महत्त्व शाक वाटिका का महत्त्व निम्नवत् है 
* प्रत्येक समय ताजी सब्जियों मिल जाती हैं । 
* घर के पास व्यर्थ भूमि का उपयोग हो जाता है । 
* घर के व्यर्थ पानी का सब्जियों की सिंचाई में उपयोग हो जाता है । 
* घर के सदस्यों के खाली समय का सदुपयोग हो जाता है । 
* अतिथि के असमय आ जाने पर भी आसानी से सब्जियाँ प्राप्त हो जाती हैं । 
* घर का वातावरण स्वच्छ और सौन्दर्यपूर्ण हो जाता है । 
अत : शाक भाजी की कमी को पूरा करने के लिए थोड़ी बहुत शाक भाजी अवश्य उगानी चाहिए । अपने घरों में शाक । वाटिका तैयार करने से ताजी सब्जियाँ प्राप्त कर परिवार के लोगों का स्वास्थ्य सुधारा जा सकता है । 

वृक्षारोपण एवं इसका महत्व 

वृक्षारोपण में फल वृक्षों के अलावा कुछ विशेष स्थानों के लिए विशेष तरह के वृक्षों को लगाया जाता है । वृक्षों की । पर्यावरण प्रदूषण को नियंत्रित करने में अहम भूमिका होती है । वृक्षारोपण करने से हमें कई तरह के लाभ होते हैं । इनसे इमारती - लकड़ी , ईधन , यात्रियों के लिए छाया , तथा मृदा कटाव ( Soil Erosion ) को रोकने , कागज उद्योग के अलावा इनका औषधीय महत्त्व भी है हमारे देश में भारत सरकार हर वर्ष वृक्षारोपण को महत्त्व देने के लिए । वन महोत्सव का आयोजन करती है । स्थान विशेष के अनुसार खाली पड़ी भूमियों में वृक्ष लगाना ही वृक्षारोपण है । सड़कों , नहरों , रेल की पटरियों के किनारे सार्वजनिक स्थलों , घरों के आस - पास वृक्षारोपण कर बिगड़ते पर्यावरण को सुधारा जा सकता है । आम , कटहल , जामुन , महुआ आदि फलदार वृक्षों के अतिरिक्त पीपल , पाकड़ , बरगद , अशोक , शीशम , अर्जुन , सागौन आदि वृक्षों का रोपण किया जाता है । औषधीय एवं सगन्धीय पौधों को भी रोपित किया जा सकता ।

 वृक्षारोपण की कुछ महत्वपूर्ण बातें !
1 . सड़कों के किनारे मजबूत वृक्ष लगाते हैं ताकि आँधी - तूफान में पेड़ टूटकर मार्ग अवरुद्ध न कर सकें । 
2 यथा सम्भव सड़कों के किनारे सदाबहार वृक्ष लगाने चाहिए । पतझड़ वाले वृक्ष अपनी पत्तियाँ गिराकर यातायात प्रभावित करते हैं । 
3 . सार्वजनिक स्थलों एवं विद्यालयों में छायादार तथा आकर्षक फूल वाले वक्ष लगाने चाहिए । 
4 . घरों के आस - पास फलदार वृक्ष लगाए । 
5 . बंजर भूमि में सूखा लथा बाढ़ सहन करने वाले वृक्ष लगाना चाहिए ।