प्राकृतिक आपदाएँ ,कृषि विज्ञान कक्षा 7

इकाई - 8 प्राकृतिक आपदाएँ 


  • बाढ़
  • सूखा 
  • भूस्खलन 


मानव जीवन का उद्भव और विकास प्रकृति की गोद में होता है । मानव अपने सुख सुविधा के लिए प्रकति से संसार प्राप्त करता है । मनुष्य से प्रकृति की स्वाभाविक संरचना प्रभावित होती है । प्राकृतिक साधनों का उपयोग मनुष्य द्वारा जब अत्यधिक किया जाता है तो प्रकृति का सन्तुलन बिगड़ जाता है और प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है । इन्हें प्राकृतिक आपदाएँ कहते हैं । इन आपदाओं पर न तो मानव का नियंत्रण होता है और न ही इनका कोई समुचित समाधान होता है । कुछ सावधानियों से इन प्राकतिक आपदओं को कम किया जा सकता है पर इन्हें पूर्णत : रोका नहीं जा सकता । 
अपने देश में प्राकृतिक आपदाओं से जन जीवन को बहुत हानि उठानी पड़ती है चूंकि भारत कृषि प्रधान देश है , इसलिए कृषि में काफी क्षति होती है । इससे पूरे देश की अर्थ व्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है । इस इकाई में हम बाढ़ , सूखा और भूस्खलन जैसी मुख्य प्राकृतिक आपदाओं के विषय में जानकारी प्राप्त करेंगे ।



बरसात के मौसम में लगातार भारी वर्षा के कारण नदियों में जल स्तर अचानक बढ़ जाता है तथा नदी का जल कगारों को पार कर खेत - खलिहान से प्रबल वेग से प्रवाहित होने लगता है । इस प्राकृतिक आपदा को बाढ़ कहते हैं । इससे कृषि एवं बागवानी के साथ - साथ पशुओं आदि को भारी क्षति होती है । बाढ़ का पानी फैल जाने के कारण खरीफ की फसलें नष्ट हो जाती हैं । रबी के फसलों की बुवाई भी समय से नहीं हो पाती है । फलत : उपज कम होती है । इन परिस्थितियों में भारतीय किसान सम्पन्न नहीं हो पाता है । वनों की अन्धाधुन्ध कटाई तथा बड़े - बड़े उद्योगों द्वारा अत्यधिक मात्रा में कार्बन - डाई ऑक्साइड गैस छोड़े जाने के कारण पृथ्वी के तापमान में अत्यधिक वृद्धि हो जाती है । जिससे पहाड़ों की बर्फ पिघलने लगती है और बाढ़ का कारण बनती है । बाढ़ से धन जन की हानि होती है । करोड़ों की फसल नष्ट हो जाती है । लोग बेघर हो जाते हैं । देश की अर्थिक स्थिति पर बुरा प्रभाव पड़ता है । भारत के उत्तरी भाग एवं पूर्व समुद्र तटीय क्षेत्रों में प्रति वर्ष लाखों लोग बाढ़ की चपेट में आते हैं । जिससे इन क्षेत्रों में विनाशकारी स्थिति उत्पन्न हो जाती है । 



सूखा एक ऐसी प्राकृतिक आपदा है , जिसके कारण हमारे देश में कृषि की उपज पर बहत बरा प्रभाव पड़ता है । अनावृष्टि , वर्षा । की अनिश्चितता एवं असमान वितरण सूखे के प्रमुख कारण हैं । भारत में कृषि प्राय : मानसून पर निर्भर करती है । वर्षा न होने से सूखे की स्थिति पैदा होती है । लहलहाती फसलें खेतों में सूख जाती है तथा अकाल पड़ जाता है । 
मानसूनी वर्षा होने की प्रारम्भिक तिथि और अन्त होने की तिथि में अनिश्चिता होती है । कभी - कभी सम्भावित समय से एक माह पर्व वर्षा आरम्भ हो जाती है और इसके समाप्त होने के समय में भी ऐसी ही विसंगति होती है । कभी वर्षा का आरंभ और अन्त समय से होता है परन्त बीच में काफी अन्तर आ जाने से मनुष्य पशु - पक्षी और वनस्पतियाँ दष्प्रभावित होती है । यही कारण हाक कषकों को खरीफ की फसल का समुचित लाभ नहीं मिलता । मान जाडे के मौसम में वर्षा से गेहूँ व अन्य फसलों में अच्छी वृद्धि होती है । 
वर्षा न होने पर असिंचित क्षेत्रों में फसलें दुष्प्रभावित होता हैं और उगज घट जाती है । कृषक को लाभ नहीं हार गबाट जाती है । कृषक को लाभ नहीं होता है , जिससे कृषि को वह एक व्यवसाय के रूप में नहीं कर पाता और केवल मापन का एक प्रणाली के रूप में स्वीकार करना कभी - कभी अत्यधिक हानि होने पर कृषकों द्वारा निराश होकर आत्म हत्या करने के भी उदाहरण सामने आये हैं । 

सूखे से बचाने के लिए और मानसून को अनुकूल दिशा देने के लिए वृक्षारोपण और वनों के संरक्षण की आवश्यकता है । २० वषा में वृद्धि की जा सकती है . वर्षा के जल को तालाबों , झीलों और बांधों द्वारा एकत्र करने से भी कुछ हद तक सूख स सुरक्षा की जा सकती है । 



भूस्खलन के अन्तर्गत बड़ी - बड़ी चट्टानें टूटकर निचले ढाल के सहारे गिरती हैं और अनायास ही खतरनाक स्थिति पैदा हो जाती है यदि वहां पर मानव आबादी है तो अत्यधिक क्षति होती है । क्योंकि भूस्खलन में एक साथ चट्टानों का बड़ा भाग टूटकर गिरने लगता है । 
भूस्खलन में अनेक कारण और दशायें एक साथ कार्य करती हैं । ढाल का स्वभाव ' जल रिसाव ' भूकम्पन और चट्टानों की संरचना में विभिन्न पर्ती की स्थिति आदि अनेक कारण भूस्खलन के लिए उत्तरदायी हैं । कभी - कभी चट्टानों का निचला आधार खत्म हो जाता है तो ऊपरी चट्टानों का ध्वस्त होकर गिरना आवश्यक हो जाता है । कभी - कभी कोयले आदि की खानों से इतनी अधिक मात्रा में खनिज पदार्थों को निकाल लिया जाता है कि उनका आधार समाप्त हो जाता है और वह धसने लगती हैं । वर्षा या बाढ़ आने पर बड़ी - बड़ी नदियों के किनारे भारी मात्रा में कटाव हो जाता है तथा भूस्खलन होता है । भूस्खलन और बाढ़ के कारण अलखनंदा घाटी ( उत्तरांचल ) में सन् 1971 व 1979 के बीच हजारों मनुष्यों व पशुओं की मृत्यु हुई थी तथा वन सम्पदा का विनाश हुआ । उत्तराखण्ड विशेष रूप से भूस्खलन प्रभावित क्षेत्र है , यही कारण है कि वर्षा ऋतु में बद्रीनाथ व केदारनाथ की यात्रा बाधित हो जाती है तथा इस क्षेत्र में भूस्खलन से जन - धन की अपार हानि होती है । भारतवर्ष में राजस्थान , गुजरात , महाराष्ट्र , और आन्ध्रप्रदेश , विशेष रूप से प्राकृतिक आपदा से दुष्प्रभावित क्षेत्र हैं । इन राज्यों की कृषि सम्पदा और ग्रामीण अर्थ - व्यवस्था दिनों दिन दयनीय होती जा रही है । 

प्राकृतिक आपदाओं से सुरक्षा के उपाय प्राकृतिक आपदाओं से शत प्रतिशत बच पाना मनुष्य की क्षमता और शक्ति से बाहर है परन्तु सावधानी रखने से मनुष्य इन आपदाओं से अपने को सुरक्षित रख सकता है । 

प्राकृतिक आपदाओं से सुरक्षा के उपाय निम्नलिखित हैं : 
1 . अधिक से अधिक वृक्षारोपण करना । 
2 . वनों को पर्याप्त संरक्षण देना । 
3 बड़े उद्योगों से निकलने वाली कार्बन - डाई ऑक्साइड गैस की मात्रा घटाना । 
4 . आपदाओं के संबंध में मौसम विभाग द्वारा नियमित रूप से सूचना एकत्र करना । 
5 . दरदर्शन , आकाशवाणी और समाचार पत्रों द्वारा प्राकृतिक आपदाओं के सम्बन्ध में पूर्व सूचना का भली भांति प्रसारण करना । 
6 . सूखा प्रभावित क्षेत्रों में बड़े - बड़े बाँध बनवाना और जलाशयों में जल एकत्र करना । 
7 . बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में नदियों के किनारे बाँध बनाना , बिजली उत्पन्न करना और सिंचाई के लिए नहरें बनाना ।
8 . जनता और सरकार के समुचित सहयोग से जन जीवन सुरक्षित व संरक्षित रख सकते हैं तथा आपदाओं से बचा जा सकता है ।