महिला शिक्षा
“आप
किसी राष्ट्र में महिलाओं की स्थिति देखकर उस राष्ट्र के हालात बता सकते हैं”
-जवाहरलाल
नेहरू
किसी भी राष्ट्र के सामाजिक और आर्थिक विकास में
महिलाओं की भूमिका को अनदेखा नहीं किया जा सकता। महिला और पुरुष दोनों समान रूप से
समाज के दो पहियों की तरह कार्य करते हैं और समाज को प्रगति की ओर ले जाते हैं।
दोनों की समान भूमिका को देखते हुए यह आवश्यक है कि उन्हें शिक्षा सहित अन्य सभी
क्षेत्रों में समान अवसर दिये जाएँ, क्योंकि
यदि कोई एक पक्ष भी कमज़ोर होगा तो सामाजिक प्रगति संभव नहीं हो पाएगी। परंतु देश
में व्यावहारिकता शायद कुछ अलग ही है, वर्ष
2011 की
जनगणना के अनुसार, देश
में महिला साक्षरता दर मात्र 64.46 फीसदी
है, जबकि
पुरुष साक्षरता दर 82.14 फीसदी
है। उल्लेखनीय है कि भारत की महिला साक्षरता दर विश्व के औसत 79.7 प्रतिशत से काफी कम है।
भारत में महिला शिक्षा वर्तमान परिदृश
§ भारत
में पुरुषों की तुलना में महिलाओं की साक्षरता दर काफी कम है। वर्ष 2011 की जनगणना के आँकड़े दर्शाते हैं
कि राजस्थान (52.12 प्रतिशत)
और बिहार (51.50 प्रतिशत)
में महिला शिक्षा की स्थिति काफी खराब है।
§ जनगणना
आँकड़े यह भी बताते हैं कि देश की महिला साक्षरता दर (64.46 प्रतिशत) देश की कुल साक्षरता दर
(74.04 प्रतिशत)
से भी कम है।
§ बहुत
कम लड़कियों का स्कूलों में दाखिला कराया जाता है और उनमें से भी कई बीच में ही
स्कूल छोड़ देती हैं। इसके अलावा कई लड़कियाँ रूढ़िवादी सांस्कृतिक रवैये के कारण
स्कूल नहीं जा पाती हैं।
§ कई
अध्ययनों के अनुसार, भारत
में 15-24 वर्ष
आयु वर्ग की युवा महिलाओं की बेरोज़गारी दर 11.5
प्रतिशत है, जबकि
समान आयु वर्ग के युवा पुरुषों के मामले में यह 9.8
प्रतिशत है।
§ वर्ष
2018 में
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग द्वारा जारी रिपोर्ट में कहा गया था कि 15-18 वर्ष आयु वर्ग की लगभग 39.4 प्रतिशत लड़कियाँ स्कूली शिक्षा
हेतु किसी भी संस्थान में पंजीकृत नहीं हैं और इनमें से अधिकतर या तो घरेलू
कार्यों में संलग्न होती हैं या भीख मांगने जैसे कार्यों में।
§ आँकड़े
यह भी बताते हैं कि भारत में अभी भी लगभग 145
मिलियन महिलाएँ हैं,
जो पढ़ने या लिखने में असमर्थ हैं।
§ उल्लेखनीय
है कि भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में शहरी क्षेत्रों की अपेक्षा स्थिति और अधिक
गंभीर है।
भारत में महिला शिक्षा का इतिहास
भारत में महिला शिक्षा की वर्तमान स्थिति को समझने
के लिये आवश्यक है कि इतिहास में इसकी विकास यात्रा को भी समझा जाए। इसे मुख्यतः 3 भागों (1) प्राचीन वैदिक काल, (2) ब्रिटिश इंडिया और (3) स्वतंत्र भारत में विभाजित कर
देखा जा सकता है।
प्राचीन वैदिक काल
§ भारत
में महिला शिक्षा का इतिहास प्राचीन वैदिक काल से जुड़ा हुआ है। उल्लेखनीय है कि
लगभग 3000 से
अधिक वर्ष पूर्व वैदिक काल के दौरान महिलाओं को समाज में एक प्रतिष्ठित स्थान
प्राप्त था और उन्हें पुरुषों के समान समाज का एक महत्त्वपूर्ण अंग समझा जाता था।
§ वैदिक
अवधारणा के स्त्री शक्ति सिद्धांत के अनुसार, महिलाओं
की देवी के रूप में पूजा शुरू हुई- उदाहरण के लिये शिक्षा की देवी सरस्वती।
§ वैदिक
शास्त्र कहते हैं कि “लड़कों
के साथ लड़कियों को उचित देखभाल के साथ पोषित और प्रशिक्षित किया जाना
चाहिये।"
§ वैदिक
साहित्य में उन महिलाओं का भी उल्लेख किया गया है जिन्होंने वैदिक अध्ययन का
रास्ता चुना।
ब्रिटिश इंडिया
§ इस
काल में पहला ऑल-गर्ल्स बोर्डिंग स्कूल वर्ष 1821
में दक्षिण भारत के तिरुनेलवेली में स्थापित किया गया
था।
§ वर्ष
1840 तक
स्कॉटिश चर्च सोसाइटी द्वारा दक्षिण भारत में निर्मित छह स्कूल मौजूद थे जिनमें
कुल 200 लड़कियों
का नामांकन कराया गया था।
§ वर्ष
1848 में
पुणे में गर्ल्स स्कूल की शुरुआत करने वाले ज्योतिबा फुले और उनकी पत्नी सावित्री
बाई पश्चिमी भारत में भी महिला शिक्षा के क्षेत्र में अग्रणी थे।
§ पश्चिम
भारत में महिला शिक्षा की शुरुआत पुणे में गर्ल्स स्कूल के निर्माण के साथ हुई
जिसे वर्ष 1848 में
ज्योतिबा फुले और उनकी पत्नी सावित्री बाई ने शुरू किया था।
§ उल्लेखनीय
है कि 1850 तक
मद्रास मिशनरियों ने स्कूल में लगभग 8,000
से अधिक लड़कियों का नामांकन कराया था।
§ ईस्ट
इंडिया कंपनी के कार्यक्रम वुड्स डिस्पैच ने वर्ष 1854
में महिलाओं की शिक्षा और उनके लिये रोज़गार की
आवश्यकता को स्वीकार किया।
§ वर्ष
1879 में
स्थापित बेथ्यून कॉलेज वर्तमान में एशिया का सबसे पुराना महिला कॉलेज है।
§ गौरतलब
है कि महिलाओं की समग्र साक्षरता दर वर्ष 1882
में 0.2
प्रतिशत से बढ़कर वर्ष 1947 में 6 प्रतिशत हो गई।
स्वतंत्र भारत
§ स्वतंत्रता
के समय देश में महिला साक्षरता दर काफी कम थी, जिसे
सरकार द्वारा नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता था। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए
वर्ष 1958 में
सरकार ने महिला शिक्षा पर एक राष्ट्रीय समिति का गठन किया, जिसकी सभी सिफारिशें स्वीकार कर ली गईं। इन
सिफारिशों का सार यह था कि महिला शिक्षा को भी पुरुष शिक्षा के सामानांतर पहुँचाया
जाए।
§ वर्ष
1959 में
इसी विषय पर गठित एक समिति ने लड़कों और लड़कियों के लिये एक समान पाठ्यक्रम को
विभिन्न चरणों में लागू करने की सिफारिश की।
§ वर्ष
1964 में
स्थापित शिक्षा आयोग ने बड़े पैमाने पर महिला शिक्षा के विषय में बात की और वर्ष 1968 में भारत सरकार से एक राष्ट्रीय
नीति विकसित करने की सिफारिश की।
महिला शिक्षा की आवश्यकता
§ महिलाओं
को शिक्षित करना भारत में कई सामाजिक बुराइयों जैसे- दहेज़ प्रथा, कन्या भ्रूण हत्या और कार्यस्थल पर उत्पीड़न आदि को
दूर करने की कुंजी साबित हो सकती है।
§ यह
निश्चित तौर पर देश के आर्थिक विकास में भी सहायक होगा, क्योंकि अधिक-से-अधिक शिक्षित महिलाएँ देश के श्रम
बल में हिस्सा ले पाएंगी।
§ हाल
ही में स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा एक सर्वेक्षण जारी किया गया है, जिसमें बच्चों की पोषण स्थिति और उनकी माताओं की
शिक्षा के बीच सीधा संबंध दिखाया गया है।
§ इस
सर्वेक्षण से यह बात सामने आई है कि महिलाएँ जितनी अधिक शिक्षित होती हैं, उनके बच्चों को उतना ही अधिक पोषण आधार मिलता है।
§ इसके
अलावा कई विकास अर्थशास्त्रियों ने लंबे समय तक इस विषय का अध्ययन किया है कि किस
प्रकार लड़कियों की शिक्षा उन्हें परिवर्तन के एजेंट के रूप में उभरने में सक्षम
बनाती है।
महिला शिक्षा के मार्ग में बाधाएँ:
§ भारतीय
समाज पुरुष प्रधान है। महिलाओं को पुरुषों के बराबर सामाजिक दर्जा नहीं दिया जाता
है और उन्हें घर की चहारदीवारी तक सीमित कर दिया जाता है। हालाँकि ग्रामीण
क्षेत्रों की अपेक्षा शहरी क्षेत्रों में स्थिति अच्छी है, परंतु इस तथ्य से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि आज
भी देश की अधिकांश आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है।
§ हम
दुनिया की सुपर पॉवर बनने के लिये तेज़ी से प्रगति कर रहे हैं, परंतु लैंगिक असमानता की चुनौती आज भी हमारे समक्ष
एक कठोर वास्तविकता के रूप में खड़ी है। यहाँ तक कि देश में कई शिक्षित और कामकाजी
शहरी महिलाएँ भी लैंगिक असमानता का अनुभव करती हैं।
§ समाज
में यह मिथ काफी प्रचलित है कि किसी विशेष कार्य या परियोजना के लिये महिलाओं की
दक्षता उनके पुरुष समकक्षों के मुकाबले कम होती है और इसी कारण देश में महिलाओं
तथा पुरुषों के औसत वेतन में काफी अंतर आता है ।
§ देश
में महिला सुरक्षा अभी एक बड़ा मुद्दा बना हुआ है,
जिसके कारण कई अभिभावक लड़कियों को स्कूल भेजने से
कतराते हैं। हालाँकि सरकार द्वारा इस क्षेत्र में काफी काम किया गया है, परंतु वे सभी प्रयास इस मुद्दे को पूर्णतः संबोधित
करने में असफल रहे हैं।
महिला शिक्षा हेतु सरकार के प्रयास
§ ‘बेटी बचाओ, बेटी
पढ़ाओ’ की
शुरुआत वर्ष 2015 में
देश भर में घटते बाल लिंग अनुपात के मुद्दे को संबोधित करने हेतु की गई थी। यह
महिला और बाल विकास मंत्रालय, स्वास्थ्य
एवं परिवार कल्याण मंत्रालय तथा मानव संसाधन मंत्रालय की संयुक्त पहल है। इसके तहत
कन्या भ्रूण हत्या रोकने, स्कूलों
में लड़कियों की संख्या बढ़ाने, स्कूल
छोड़ने वालों की संख्या को कम करने, शिक्षा
के अधिकार के नियमों को लागू करने और लड़कियों के लिये शौचालयों के निर्माण में
वृद्धि करने जैसे उद्देश्य निर्धारित किये गए हैं।
§ कस्तूरबा
गांधी बालिका विद्यालय योजना की शुरुआत वर्ष 2004
में विशेष रूप से कम साक्षरता दर वाले क्षेत्रों में
लड़कियों के लिये प्राथमिक स्तर की शिक्षा की व्यवस्था करने हेतु की गई थी।
§ महिला
समाख्या कार्यक्रम की शुरुआत वर्ष 1989
में राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 के लक्ष्यों के अनुसार महिलाओं की
शिक्षा में सुधार व उन्हें सशक्त करने हेतु की गई थी।
§ यूनिसेफ
भी देश में लड़कियों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने हेतु भारत सरकार के साथ
काम कर रहा है।
§ इसके
अलावा महिला शिक्षा के उत्थान की दिशा में झारखंड ने भी एक बड़ी पहल की है। झारखंड
स्कूल ऑफ एजुकेशन ने कक्षा 9 से
12वीं
तक की सभी छात्राओं को मुफ्त पाठ्य पुस्तक, यूनिफॉर्म
और नोटबुक बाँटने का फैसला किया है।